घर की ज़िम्मेदारियां और अपनी पीढ़ियों का ख्याल रखते-रखते जब मां-बाप बूढ़े हो जाते हैं, तो वे घर के बुज़ुर्ग कहलाते हैं। घर के बुज़ुर्ग घर की छत की तरह होते हैं, जिनकी छाया में हम सुरक्षित महसूस करते हैं। वो घर के हर सदस्य को साथ जोड़कर रखते हैं, और अनुसासन से रहना सिखाते हैं।
अपनी सारी ज़िंदगी अपने बच्चों के लिए बिताने के बाद, जब वो उम्र के इस पड़ाव में आते हैं, तो उनकी ज़िंदगी में बहुत से बदलाव आ जाते हैं। शरीर में अब बाहर जाकर काम करने की ताकत नहीं होती, इसलिए वो पूरी तरह अपने बच्चों पर आश्रित हो जाते हैं। हालांकि, कुछ बुज़ुर्ग फिर भी अपनी शक्ति के अनुसार घर के कामों में हाथ बंटाना पसंद करते हैं। उनका इन कामों को करने का मकसद ये होता है कि कहीं कोई उन्हें बेकार होने का एहसास ना करा दे। उम्र के इस पड़ाव में जहां शरीर जवाब देने लगता है, वहीं मन में अकेलेपन और परिवार में रहकर भी परिवार से अलग होने का एहसास मन को डराने लगता है।
ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि जब हम घर की ज़िम्मेदारियां संभालने लगते हैं, तो अपने बुजुर्गों की राय और उनके फैसलों को नज़रंदाज़ करने लगते हैं। और यही सबसे बड़ी वजह बन जाती है कि वो घर में रहते हुए भी अपनी ज़रूरत खत्म होती हुई महसूस करने लगते हैं। इसलिए हमारा फर्ज़ बनता है कि हम अपने घर के बुजुर्गों की ज़िंदगी सूनी होने से बचाने के लिए उनकी बात को महत्व दें, उनकी बात सुनें और उन्हें अकेलेपन का शिकार न होने दें।
आइए इस वरिष्ठ नागरिक दिवस या वृद्धजन दिवस (International Day for Older Persons) पर एक ऐसा माहौल बनाएं, जहां जवान और बुजुर्गों एक साथ मिलकर खुश रहें।
वृद्धजन दिवस या वरिष्ठ नागरिक दिवस कब है? (Vridhjan Divas ya Varishth Nagrik Divas kab hai?)
साल में दो बार बुजुर्गों का दिन मनाया जाता है। 1 अक्टूबर 2024 को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस है, जिसे मनाने की शुरुआत सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने वरिष्ठ नागरिकों को सम्मानित करने के लिए की थी। और दूसरा दिन, 21 अगस्त को मनाया जाता है, जिसे वरिष्ठ नागरिक दिवस के नाम से जाना जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद बुजुर्गों के योगदान को पहचानना और उन्हें सम्मानित करना है।
बुजुर्गों का दिन मनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? (Bujurgon ka din manane ki zaroorat kyun padi?)
समाज में बुजुर्गों को लेकर बदलती मानसिकता, दुर्व्यवहार और उनके साथ घरों में होने वाली नज़रअंदाज़गी को देखते हुए, बुजुर्गों के सम्मान और उनके महत्व का एहसास करने के लिए, हमें बुजुर्गों का दिन या वृद्धजन दिवस मनाने की ज़रूरत है। उम्र के आखिरी पड़ाव पर जहां मन फिर से बच्चे जैसा हो जाता है, वहीं बुजुर्गों को घर से निकाल देना या उनके साथ दुर्व्यवहार करना बहुत गलत है। जब हम छोटे थे तब उन्होंने हमें संभाल लिया, और आज जब उन्हें हमारी ज़रूरत है, तब उन्हें वृध्दाश्रमों में छोड़ देना कहां की समझदारी है?
घर को मिलाकर रखने वाले और अपनी पीड़ितों को अच्छे संस्कार देने वाले बुज़ुर्ग ही तो है। फिर उनकी ज़रूरतें और महत्व को समझना तो हमारी ही ज़िम्मेदारी है।
यूं रहें बुजुर्ग और जवान मिलकर (Yun rahein bujurg aur jawan milkar)
अक्सर घरों में जब बुज़ुर्ग और जवानों की सोच नहीं मिलती, तो घर में दूरियां बढ़ जाती हैं। नौबत यहां तक आ जाती है कि दोनों का एक ही घर में रहना मुश्किल हो जाता है, जवानों को बुज़ुर्ग बोझ लगने लगते हैं। लेकिन, इससे निपटना बहुत ज़रूरी है।
आइए जानें कैसे हम ऐसा माहौल बनाएं कि बुजुर्ग-जवान मिल कर रह सकें:
सोच और विचारों का आदर
जवानों को बुज़ुर्गों के अनुभवों और सलाह का सम्मान करना चाहिए। इसके साथ ही, बुज़ुर्गों को भी जवानों की सोच और दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अपने-अपने विचारों को एक-दूसरे पर थोपने की जगह तसल्ली से बातचीत करनी चाहिए।
स्वास्थ्य का ख्याल
बुज़ुर्गों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Mental wellbeing) का ध्यान रखना ज़रूरी है। इसके लिए हम अपने बुजुर्गों की नियमित स्वास्थ्य जांच करा सकते हैं, और उनके साथ योगा और ध्यान कर सकते हैं। जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे और आपसी संबंध भी मजबूत होंगे।
शांति से काम लें
जवानों को बुज़ुर्गों के साथ अपनी सीमाओं और उनकी ज़रूरतों को समझने की कोशिश करनी चाहिए। उनसे बात करते वक्त शांति और धैर्य रखना चाहिए ताकि परिवार में खुशहाली बनी रहे।
उनकी राय का सम्मान
घर के ज़रूरी फैसलों में बुजुर्गों की राय को भी बराबर का सम्मान दें। उनके फैसलों को शांति से सुनें और कभी-कभी उनकी मर्ज़ी के अनुसार भी काम करें।
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