क्लोज फ्रेंड

दोस्तों का छोटा सर्कल: क्यों ये बुरा नहीं है?

क्या सच में ज़्यादा दोस्तों या मित्रों का समूह होना ज़रूरी है? इसका जवाब है– बिल्कुल नहीं! दोस्तों का छोटा सर्कल होना बुरा नहीं, बल्कि कई बार फायदेमंद साबित हो सकता है।

आजकल की दुनिया में सोशल मीडिया और नेटवर्किंग की वजह से ऐसा लगता है कि मित्रों का समूह जितना ज़्यादा बड़ा होगा, उतना बेहतर है। हमारी फ्रेंड लिस्ट, फॉलोअर्स और लाइक्स को ही हमारी पॉपुलैरिटी का पैमाना माना जाता है। लेकिन, क्या सच में ज़्यादा दोस्तों या मित्रों का समूह होना ज़रूरी है? इसका जवाब है– बिल्कुल नहीं! दोस्तों का छोटा सर्कल होना बुरा नहीं, बल्कि कई बार फायदेमंद साबित हो सकता है। हां, दोस्तों के बड़े सर्कल के साथ हम पार्टी करने जा सकते हैं, घूमने जा सकते हैं, गेम्स खेल सकते हैं, लेकिन जहां सुकून और ज़िंदगी की बात आती है तो आंखों के सामने हमारे इक्के-दुक्के पक्के दोस्त ही उतर आते हैं।

मैं आपको अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताती हूं कि मेरी ज़िंदगी में मेरे मात्र दो ही खास दोस्त या क्लोज फ्रेंड हैं। एक मेरी स्कूल की दोस्त और दूसरी कॉलेज की दोस्त। पर दोनों मेरी इतनी अच्छी दोस्त हैं कि मेरी हर मुश्किल में मेरे साथ खड़ी रहती हैं और मुझे समझाती भी हैं।

यकीन मानिए,‌ मैंने बहुत सारे मित्रों के समूह में भी रहकर देखा है। स्कूल खत्म होते ही जब मैं पहली बार कॉलेज गई थी, तब मेरी बहुत से लोगों से दोस्ती हुई। सिर पर बहुत से दोस्त बनाने का शौक जो लगा था और मेरी तरह मेरे मित्रों का समूह भी शायद खूब सारे दोस्त चाहता था, इसलिए हम सब में दोस्ती हुई। 

हम सब एक साथ रहते थे, घूमते और पढ़ते थे, मगर हम सब में कहीं न कहीं वो खास दोस्तों वाली बात नहीं थी, और इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब हमारे मित्रों का समूह छोटे-छोटे समूहों में बंट गया। यानी एक बड़े से ग्रुप में सबकी एक गहरी बॉन्डिंग होने की बजाय दो या तीन-तीन लोग अपने में ही खास दोस्त बने हुए थे। उनके अलग राज़ और अलग प्लानिंग देख कर मुझे समझ आया कि एक बड़ा सा मित्रों का समूह हमारे किसी काम का नहीं होता। क्योंकि इतने सारे लोगों में सबकी अपनी-अपनी बातें और विचार होते हैं, जहां हम खुद को खोया हुआ सा महसूस करते हैं, और आखिर में हमें किसी एक या दो ऐसे लोगों की ज़रूरत होती है, जो हमें समझें। हमारी बात को महत्व दें और हमारे करीबी बने रहें।

इसलिए मेरी मानें तो, मैं तो यही कहूंगी कि कम मित्रों का समूह बिल्कुल भी बुरा नहीं है।

कम दोस्त, छोटा सर्कल नहीं है बुरा (Kam dost, chhota circle nahin hai bura)

आइए जानते हैं कि कम मित्रों का समूह कितना फायदेमंद है:

समय और एनर्जी की बचत

जब हम बहुत सारे लोगों के साथ जुड़े होते हैं तो यह थका देने वाला हो सकता है, क्योंकि हमें अपनी बात और विचार हर इंसान को अलग-अलग और‌ बार-बार समझाना पड़ता है। वहीं छोटे सर्कल में रहने से आप अपनी एनर्जी और समय सही जगह खर्च कर पाते हैं। इससे आपको उन रिश्तों पर फोकस करने का मौका मिलता है, जो आपके लिए सच में मायने रखते हैं। आप दोस्तों के साथ अच्छा समय बिता पाते हैं और ज़िंदगी का बैलेंस भी बना रहता है।

सच्चे दोस्त और भरोसा

छोटे सर्कल में दोस्ती का मतलब होता है कि आप कुछ ही लोगों पर पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं। करीबी दोस्तों पर विश्वास करना आसान होता है क्योंकि आप उन्हें अच्छे से जानते हैं। उन्हें आपके राज़ पता होता है और आपको उनके। वो आपके इमोशंस की कद्र करते हैं और मुश्किल वक्त में साथ खड़े रहते हैं। वो‌ हमारी खुशियों (Happiness) में शामिल भी होते हैं और खुश भी होते हैं। जब मित्रों का समूह बड़ा होता है तो उसमें अक्सर भरोसा कायम करना मुश्किल होता है क्योंकि सबके साथ इतनी नज़दीकी नहीं होती, और सबके साथ वो गहरा सा कनेक्शन बनाना भी मुश्किल होता है। 

मुश्किल वक्त में मजबूत सपोर्ट

जब आपका सर्कल छोटा होता है, तो मुसीबत में आपके दोस्तों का सपोर्ट काफी सॉलिड होता है। करीबी दोस्त या क्लोज फ्रेंड हर मुश्किल में साथ देते हैं, और हमारी मानसिक स्वास्थ्य (Mental Wellbeing) का ख्याल रखते हैं। बड़े सर्कल में ये सपोर्ट इतना गहरा नहीं होता क्योंकि ज़्यादातर लोग बस दूर से ही मदद करते हैं, और वो लोग हमारे साथ गहरी दोस्ती महसूस करने में सक्षम नहीं होते। 

खुद को बेहतर समझने का मौका

छोटे सर्कल में रहकर हम खुद को भी बेहतर जान पाते हैं। करीबी दोस्त हमें समझते हैं, मोटिवेट करते हैं और हमारे अंदर की अच्छाई को बाहर लाते हैं। वो हमारी ताकत और कमजोरियों को पहचानते हैं और हमारे पर्सनल ग्रोथ में मदद करते हैं। सच में, दोस्त व्यक्तित्व को निखारने में मददगार होते हैं, जिससे हम खुद के बारे में भी ज़्यादा जागरूक हो जाते हैं।

आपको दोस्तों का बड़ा सर्कल पसंद है या छोटा, हमें कमेंट में ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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