हम सब अपने जीवन में बहुत से रिश्तों के रूप में महिलाओं से जुड़े हुए हैं। हम सबके जीवन में स्त्रियों ने अलग-अलग रूप में अपनी जगह बना रखी है। जन्म लेते ही हम दुनिया के बहुत ही खूबसूरत रिश्ते के साथ एक महिला से बंधते हैं, जिसे हम मां कहते हैं। मां जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारी फिक्र अपने दिल में लिए घूमती है। हमें पालती है और बड़ा करती है। एक परिवार में हम महिलाओं या स्त्रियों के अन्य रूपों से भी जुड़ते हैं। एक स्त्री कभी बहन, भाभी, दादी, और कभी अर्धांगिनी बनकर हमारे जीवन में अपनी अहम भूमिका निभाती है।
इन सब रिश्तों के बीच हम भूल जाते हैं कि वो औरत जो हमारे सामने है वो सिर्फ हमारी मां, बहन या पत्नी ही नहीं है। उसकी पहचान और वजूद इन रिश्तों के अलावा भी बहुत कुछ है। वो एक नारी है।
‘एक नारी सब पर भारी’ ये बात तो आपने भी सुनी होगी न। आज जहां देश अपनी तरक्की की ऊंचाइयों को छू रहा है। वहीं महिलाएं भी कुछ कम तरक्की नहीं कर रहीं। एक औरत कम धनिया देने पर सब्जी वाले से लड़ना भी जानती है और देश की अर्थव्यवस्था को संभालना भी। औरत दुर्गा के रूप में पूजी जाती है और वक्त आने पर वो खुद दुर्गा का रूप भी ले लेती है। नारी शक्ति के ऊपर एक और कहावत है कि, ‘नारी जब अपने पर आए तो भगवान से भिड़ने से भी पीछे नहीं हटती।’ इसका उदाहरण हमारे इतिहास में सावित्री ने सत्यवान की जान बचा कर दिया है।
एक महिला अपने सम्मान के लिए जौहर जैसा साहसी कदम भी उठा लेती है और ज़रूरत आने पर लक्ष्मीबाई की तरह तलवार उठाने से भी नहीं चूकती। महिलाओं ने देश की आज़ादी में भी कुछ कम हिस्सेदारी नहीं निभाई है। इसकी मिसाल हैं, भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू। जिनके जन्मदिन को ‘भारतीय महिला दिवस’ के रूप में हर महिला को समर्पित किया गया है।
आइए हम सोलवेदा के इस आर्टिकल में भारतीय महिला दिवस (National Women Day), सरोजिनी नायडू और हर उस महिला की शक्ति के बारे में बात करें, जिसे सफल होने के लिए किसी मेडल या पहचान की ज़रूरत नहीं है। वो खुद में ही हर मायने में सफल है।
हर रोज़ एक नई चुनौती का सामना करती महिलाएं (Har roz ek nayi chunauti ka samana karti mahilayein)
‘कोमल है कमजोर नहीं वो…’ इस गीत की पंक्तियां महिलाओं को समर्पित हैं।
एक वक्त था जब महिलाएं घर की चार दीवारों में रहती थीं। घर से बाहर निकल कर अपने सपने पूरे कर पाना, उनके लिए बहुत मुश्किल था। हालांकि, तब से अब तक बहुत-सी परिस्थितियों में सुधार आया है। आज महिलाएं सिर्फ घर में कैद नहीं रह गईं, वो बाहर निकल कर चांद तक चंद्रयान पहुंचाने में भी कामयाब हुई हैं।
दुखद है कि परिस्थितियां बदलने के बाद भी, उन्हें हर रोज़ अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है। वो आज भी समलैंगिकता के भेदभाव से एक अनदेखी लड़ाई लड़ रही हैं। लेकिन, ऑफिस हो या घर वो उतनी ही हिम्मत और जज़्बे के साथ अपने काम में लगी हैं। वो हर चुनौती और मुश्किल का डट कर सामना कर रही हैं। वो अपनी सफलताओं से पूरी दुनिया को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं कि हम रुकेंगे नहीं और अपने सपनों को हासिल करके रहेंगे।
भारतीय महिला दिवस की शुरुआत और तारीख (Bhartiya Mahila Divas ki Shuruaat aur tareekh)
सरोजिनी नायडू की जयंती को पूरे देश में राष्ट्रीय महिला दिवस या भारतीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देश को आज़ादी दिलाने के लिए हुए स्वतंत्रता आंदोलन में सरोजिनी नायडू की अहम भूमिका है। वे देश की हर महिला के लिए प्रेरणा है। उनके कामों और महिलाओं के अधिकारों के लिए उनकी मेहनत को देखते हुए सरोजिनी नायडू के जन्मदिन के मौके पर भारतीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष, 13 फरवरी को भारत की कोकिला की 144वीं जयंती मनाई जायेगी और पूरे भारत वर्ष में भारतीय महिला दिवस की बधाई दी जाएगी।
सरोजिनी नायडू कौन थीं? (Sarojini Naidu kaun thi?)
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में सबसे खास नामों में से एक सरोजिनी नायडू है। सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हुआ था। वह बचपन से बुद्धिमान थीं। जब सरोजिनी नायडू 12 साल की थीं, तब से उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, देश की आज़ादी और महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
उनकी कविता और गीत गाने की खूबी को देखकर महात्मा गांधी के द्वारा उन्हें ‘भारत कोकिला’ या ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ (Nightingale of India) का उपनाम दिया गया था। आज हम सब उन्हें इस नाम से भी पहचानते हैं।
1925 में, सरोजिनी नायडू को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। इसके साथ ही 1947 में उन्हें संयुक्त प्रांत की राज्यपाल के रूप में भी चुना गया था। सरोजिनी नायडू भारत के डोमिनियन (Dominion of India) में राज्यपाल का पद संभालने वाली पहली महिला थीं। जब देश आज़ाद हुआ तो उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनने का गौरव सरोजिनी नायडू को मिला और 2014 में सरोजिनी नायडू की जयंती को भारतीय महिला दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की गई।
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