मैं जब स्कूल में थी तो मैंने महसूस किया कि लड़के चाहे कितने भी अच्छे दोस्त क्यों न बन जाएं, मगर जितना सहज मैं लड़कियों से बात करने में थी, उतना लड़कों से कभी नहीं हो पाई। बड़ी होने पर मैं जितना अपनी बहन और मां से सहज से उतना भाई और पापा से नहीं। हां भाई और पापा के साथ भले मैं वक्त ज़्यादा गुज़ारती थी मगर फिर भी मां और बहन से एक अलग तरह की सहजता रही। मुझे लगता है ऐसा होना शायद प्राकृतिक है। आप पुरुषों से प्यार कर सकते हैं, उनसे कई तरह के रिश्तों से जुड़ सकते हैं, मगर एक स्त्री से स्त्री का रिश्ता ही अलग होता है।
दूसरी तरफ आपने लोगों को यह भी कहते सुना होगा कि एक महिला ही महिला की दुश्मन होती है। ये भी कुछ हद तक सचा माना जा सकता है, क्योंकि कई बार जितना एक पुरुष से ईर्ष्या नहीं होती, उससे कहीं अधिक महिला को महिला से होती है। समाज में एक महिला दूसरी महिला के लिए क्या कर सकती है, इस पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है।
इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हम इसी के बारे में थोड़ा और विस्तार से बात करेंगे। इसके अलावा हम महिला दिवस की जानकारियों को भी देखेंगे।
कितना अलग है पुरुष से स्त्री और स्त्री से स्त्री का रिश्ता? (Kitna alag hai purush se stree aur stree se stree ka rishta?)
अब तक हमने हमेशा पुरुष और स्त्री के रिश्ते पर बातें की है। हम अक्सर पुरुष के जीवन में महिलाओं की भूमिकाओं पर ध्यान देते हैं, पर क्या कभी आपने एक महिला से दूसरी महिला के संबंधों पर ध्यान दिया है? जैसे एक स्त्री बहुत से रिश्तों के रूप में एक पुरुष के जीवन में अपनी छाप छोड़ती है, वैसे ही एक स्त्री भी स्त्री के जीवन में कभी मां, कभी बहन और कभी बेटी जैसे बहुत से रिश्तों के रूप में अपनी भूमिका निभाती है।
कहते हैं एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की बात बिना कहे समझ सकती है। एक मां अपनी बेटी को जीवन में आने वाली हर परिस्थिति के बारे में पहले से सतर्क करती है, क्योंकि उसने भी उन्हीं परिस्थितियों का अपने जीवन में पहले ही अनुभव कर लिया होता है। एक स्त्री अपने अनुभवों के आधार पर ही दूसरी स्त्री को सचेत करती है।
पुरुषों के मुकाबले एक महिला दूसरी महिला से अपने मन के भाव और दुख-सुख बांटने में ज़्यादा सहज महसूस करती है। महिलाएं या स्त्रियां, स्त्रियों के साथ ही ज़्यादा सुरक्षित महसूस करती है, क्योंकि वहां उन्हें न तो अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है और वो जैसी वास्तव में है, वैसे रह पाती हैं। तो चलिए आइए इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के बारे में और जानें।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार कब मनाया गया? (Antarrashtriya Mahila Divas pahli baar kab manaya gaya?)
महिला दिवस को मनाने के पीछे साल 1908 में न्यूयॉर्क में हुई एक रैली का अहम योगदान है। साल 1908 में न्यूयॉर्क में 12 से 15 हज़ार महिलाओं ने एक रैली निकाली। रैली करने वाली इन महिलाओं या स्त्रियों की मांग थी कि, वो जितने घंटे काम करती हैं, उसमें से उनकी नौकरी के कुछ घंटे कम किए जाए। साथ ही उन्हें वेतन भी उनके काम के मुताबिक दिया जाए। इसके साथ ही इन लोगों की यह भी मांग थी कि उन्हें वोट देने का भी अधिकार मिले।
यह सब मांगें इसलिए की गईं क्योंकि महिलाओं को ऑफिस के साथ घर भी संभालना होता था और पूरी मेहनत करने के बाद भी पुरुषों के मुकाबले कम वेतन मिलता था। यही नहीं बल्कि उन्हें वोट देने का अधिकार भी नहीं था। इस आंदोलन के एक साल बाद अमेरिका के सोशलिस्ट पार्टी ने पहले नेशनल वीमेन्स डे (National Women’s Day) की घोषणा की थी।
बाद में साल 1911 में डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, जर्मनी में पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सेलिब्रेट किया गया था। इसके बाद 8 मार्च, 1975 को संयुक्त राष्ट्र ने महिला दिवस को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी। इसके बाद से हस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा।
कब है महिला दिवस? (Kab hai Mahila Divas?)
दुनिया भर में हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन खासतौर पर महिलाओं और उनसे जुड़े मुद्दों को समर्पित है। ये दिन समाज में महिलाओं की भूमिका और योगदान को समर्पित हैं।
नारी शक्ति सिर्फ एक नारा नहीं (Nari shakti sirf ek naara nahi)
महिलाओं के चुनौती और मुश्किलों से भरे जीवन से तो हम सब ही वाकिफ हैं। आज से नहीं जाने कितने ही सालों से महिलाएं समाज से अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। उन्हें कभी अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ता है तो कभी अपने सपनों के लिए लड़ना पड़ता है। हालांकि, इसके बावजूद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने जीवन की हर कठिनाई का डट कर सामना किया है।
कहते हैं स्त्री देवी दुर्गा का रूप होती है, पर ज़रूरत पड़ने पर स्त्रियों ने काली का रूप भी धरा है, उन्होंने अपने सम्मान और हक के लिए निडरता से इस समाज और दुनिया का मुकाबला किया है। नारी सशक्तिकरण सिर्फ एक नारा नहीं है, नारियों ने समय-समय पर नारी सशक्तिकरण का परचम लहराया है और यह साबित किया है कि वो कोमल हो सकती है पर कमज़ोर तो बिल्कुल भी नहीं है।
हमें महिला दिवस की ज़रूरत क्यों है? (Humein mahila divas ki zarurat kyun hai?)
महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव मिटाने और समाज में उनकी स्थिति को लेकर जो घटिया मानसिकताएं बनी हुई हैं, उन्हें खत्म करने के लिए ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की नींव रखी गई है। आज भी बहुत सी ऐसी महिलाएं और लड़कियां हैं जो अपने ही परिवार और समाज से अपने सपनों और आज़ादी के लिए लड़ रही हैं। उन्हें आज भी पर्दे में रहने को कहा जाता है। घर से बाहर निकलना उनके लिए वर्जित है। महिलाओं के लिए ये घटिया कानून किसी कोर्ट ने नहीं बल्कि लोगों की घटिया मानसिकताओं ने बनाए हैं। इन्हीं को तोड़ने और लोगों को महिलाओं और स्त्रियों के महत्व और सम्मान का एहसास कराने हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।
इस महिला दिवस पर अन्य महिलाओं को बढ़ाएं आगे (Is Mahila Divas par anay mahilaon ko badhayein aage)
इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हमने ध्यान ‘महिला से महिला के रिश्ते’ पर केंद्रित किया है। यह भी समाज का एक बड़ा मुद्दा है, जिसे लेकर ज़्यादा बात नहीं की जाती है। ऊपर हमने बात की एक महिला से महिला का रिश्ता अनोखा होता है। लेकिन, अजीब बात ये है कि पुरुषों के साथ-साथ कई महिलाएं भी दूसरी महिलाएं को स्वतंत्र नहीं देखना चाहती हैं।
ज़्यादतर घरों में महिलाएं ही अपनी बच्चियों को सिर्फ घर के काम के लायक समझती हैं, महिलाएं स्कूल, कॉलेज और ऑफिस में दूसरी महिलाओं को नीचा दिखाती हैं। यही नहीं बल्कि कई बार महिला के साथ गुनाह करने में भी एक महिला ही पुरुष का साथ देती है। महिलाओं के उत्थान के लिए ज़रूरी है कि एक महिला दूसरी महिला के बढ़ते कदम न रोकें, उनके उड़ते पंखों को न काटें।
स्त्री को साथ मिलकर सभी स्त्रियों के लिए एक सुरक्षित और बेहतर समाज बनाना होगा। एक महिला जब तक दूसरी महिला के अधिकारों के लिए नहीं लड़ेगी तब तक महिला दिवस का कोई मायने नहीं है। देश की करोड़ों महिलाएं इस मुहिम में साथ हैं। वक्त है हर एक महिला को इससे जुड़ने की और साथ आगे बढ़ने की।
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