ऐसे शिक्षाविद् जिन्होंने शिक्षा को दिया नया आयाम

विश्व में कई ऐसे शिक्षाविद् और दार्शनिक हुए हैं, जिन्होंने हमारी शिक्षा व्यवस्था को एक नया आयाम दिया है। साथ ही न जाने कितनों का समग्र विकास करने में अहम भूमिका निभाई है।

हम हमेशा शिक्षा और साक्षरता का जिक्र एक साथ करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का अर्थ किताब पढ़ना और परीक्षा में लिखना ही रह गया है। हम उम्मीद करते हैं कि शिक्षा हमारे लिए सुनहरे भविष्य का द्वार खोल देगी। आज हमारे बीच काफी साक्षर लोग मौजूद हैं, लेकिन क्या यह शिक्षा हमें जिम्मेदार व्यक्ति बना रही है?

यदि हम इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलता है कि अशिक्षित लोग भी समझदार और तेज होते हैं। उदाहरण के लिए अकबर अथवा संत कबीर को ही देख लीजिए। जहां अकबर किसी के व्यक्तित्व को परखने की नजर रखते थे, वहीं उनके पास शानदार कूटनीतिक दिमाग भी था। दूसरी ओर कबीर एक औलिया संत थे, जिनके दर्शन ने हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही प्रभावित किया।

साफ है कि शिक्षा का अर्थ शिक्षित होने अथवा पोस्ट हासिल करने से कहीं ज्यादा है। शिक्षा का असल उद्देश्य, तो हमें आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करने, तार्किक बात रखने में सक्षम बनाकर समाज के हित में काम करने लायक बनाना ही है। अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर सोलेवेदा उन शिक्षाविद् (Educationist) एवं दार्शनिकों को सलाम करता है, जिन्होंने समग्र शिक्षा पद्धति विकसित कर मानव जाति के संपूर्ण विकास की नींव रखी।

सुकरात (Sukrat)

यूनान के इस दार्शनिक का मानना था कि पुराने ज्ञान से ही नया ज्ञान मिलता है। आज हम जितना वर्तमान ज्ञान के बारे में सोचते हैं। उतने ही इस पर सवाल खड़े हो जाते हैं। अक्सर एक सवाल नए सवालों को जन्म देकर हमारे दृष्टिकोण को विस्तृत कर देता है। इसी तर्क को ध्यान में रखकर उन्होंने सुकरात सर्कल के शिक्षणशास्त्र की रचना की। इस शिक्षा पद्धति में समान श्रेणी के लोग एक ही समस्या पर विचार करते हैं। इसमें से कुछ छात्रों को आंतरिक और बाह्य समूह में बांटा जाता है। आंतरिक समूह के छात्रों को एक विषय या मुद्दे पर गहन चिंतन के बाद खुले दिल से सवाल पूछने के लिए कहा जाता है। इससे प्रेरक चर्चा होती है और सभी प्रतिभागियों को संबंधित विषय पर अपना दृष्टिकोण रखने की आजादी भी हासिल होती है। बाह्य समूह इस प्रक्रिया का केवल निरीक्षण करता है और बाद में अपने आंतरिक समूह के सहपाठियों को अपने आकलन से अवगत करवाता है। खुली चर्चा की इस पद्धति को आज आधुनिक शिक्षा में भी लागू किया जाता है। यह उस वक्त काम आती है, जब किसी ऐसी समस्या पर विचार करना हो, जिसका कोई एक या फिर सटीक समाधान नहीं होता है। साथ ही इस पर विभिन्न दृष्टिकोणों से देखना आवश्यक हो जाता है।

योहान पीस्तालोज्जि (Johann Pestalozzi)

योहान पीस्तालोज्जि स्वीडन के शिक्षाविद् थे। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि एक व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता को उजागर करने में उसकी सहायता करना है। उनका मानना था कि ऐसा करना संबंधित व्यक्ति की जिंदगी के बौद्धिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक पहलुओं के बीच संतुलन साधने से ही संभव हो सकेगा। इन तीनों पहलुओं में संतुलन साधने पर ही वह व्यक्ति अपने मूल स्वभाव से जुड़कर संपूर्ण बन सकता है। इस अंदरूनी संतुलन को साधने के लिए ही उन्होंने सूक्ष्म कला और शारीरिक व्यायाम को पाठ्यक्रम में शामिल करने की वकालत की थी। शिक्षा में जब अध्यात्म एवं जिम्मेदारी का अहसास जुड़ता है, तभी गुरु और शिष्य दोनों खुद की खोज और कायापलट के मार्ग पर निकल पड़ते हैं।

सावित्री बाई फुले (Savitri Bai Phule)

सावित्री बाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला। यह उन्होंने ऐसे वक्त में किया, जब महिलाओं के अधिकारों पर काफी प्रतिबंध थे। समाज सुधारक सावित्री बाई ने मानव जाति को बगैर ऊंच-नीच के समान माना और लिंग-भेद, जाति-भेद अथवा धर्म-भेद के समान अवसर प्रदान किए। उनका मानना था कि शिक्षा से ही समाज की बुराइयों को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने अपनी कविताओं को माध्यम बनाया और अपने ज्ञान को समाज तक पहुंचाया। पुणे में खोला गया उनका स्कूल देश की लड़कियों के लिए उम्मीद की किरण बन गया था। सावित्री बाई फुले महान शिक्षाविद् थीं।

ऐनी सलिवान (Anne Sullivan)

मात्र 20 वर्ष की आयु में ही अमेरिकी शिक्षाविद् ऐनी सलिवान ने एक दिव्यांग बच्ची हेलेन केलर को पढ़ाने की चुनौती स्वीकार कर ली थी। जो नेत्रहीन होने के साथ ही बोल भी नहीं पाती थी। जब उन्होंने देखा कि नियमित शिक्षाशास्त्र से हेलेन को कुछ नहीं बताया जा सकता, तो उन्होंने अपनी अनूठी शैली विकसित करने का फैसला लिया।

हेलेन की खामियों पर ध्यान देने की अपेक्षा उन्होंने हेलेन को सिर्फ बच्चा मान लिया। इसके बाद हेलेन को खेल-खेल में भाषा और शब्दों से मुलाकात करवाने की कोशिश शुरू कर दी। इस तरीके से दोनों के बीच दोस्ती हुई फिर धीरे-धीरे वो अपनी खामियों को ठीक करने लगी।

बाद में ऐनी ने एक विशेष इशारों वाली भाषा विकसित की, जिससे वह हेलेन केलर को पढ़ाने लगी। ऐनी की पद्धति छात्र केंद्रित थी। इस पद्धति ने हेलेन के साथ चमत्कारिक परिणाम दिए। ऐनी की इस लीक से हटकर तैयार की गई पद्धति का ही असर था कि हेलेन को दुनिया की पहली बधिर और नेत्रहीन स्नातक के रूप में रेडक्लिफ कॉलेज ने डिग्री प्रदान की। मैसाच्युसेट्स के प्रसिद्ध पर्किन्स स्कूल फॉर द ब्लाइंड ने डेफ ब्लाइंड प्रोग्राम, हेलन केलर को देखकर ही शुरू किया था। आज भी यह प्रोग्राम सलिवान की चाइल्ड सेंट्रिक (छात्र केंद्रित) पद्धति को केंद्र में रखकर चलाया जाता है।

एम्मानुएल लेविनास (Emmanuel Levinas)

फ्रेंच दार्शनिक एम्मानुएल लेविनास ने शिक्षा एवं शिक्षाशास्त्र में आध्यात्मिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। इस दृष्टिकोण से व्यक्ति अपने ज्ञान का उपयोग संपूर्ण मानवता को बेहतर बनाने में करने के लिए प्रेरित होता है। लेविनास का मानना था कि प्रत्येक मानवीय संबंध, शिक्षक और छात्र सहित सबको व्यक्तिगत ही माना जाना चाहिए। उनकी पद्धति शिक्षकों को छात्र के प्रति किसी भी पूर्वाग्रह से दूर रहने की सीख देती है। ऐसा करने पर शिक्षक भी स्वयं शिक्षा के माध्यम से खुद में परिवर्तन ला सकते हैं। एम्मानुएल लेविनास को इसलिए महान शिक्षाविद् माना जाता है।