जीवन जीने के लिए नदियों से बेहतरीन कोई उदाहरण नहीं होता है। नदियां हमारे लिए प्रकृति द्वारा दिया गया एक नायाब तोहफा हैं। नदियों के बहते पानी को देखने से मन में शांति की अनुभूति होती है। नदियां सिर्फ प्रकृति को सुंदर नहीं बनाती हैं, बल्कि खुद में एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को समेटे रहती हैं। नदी विभिन्न जीवों के जीवन का आधार भी हैं। नदियां जहां से भी होकर गुजरती हैं, उस भूमि को उपजाऊं बनाती हैं। ये परिवहन और व्यापार का भी माध्यम बनती हैं। यहां तक कि नदियों का पानी जल ऊर्जा के तौर पर बिजली उत्पादन में भी किया जाता है। साथ ही नदियां हमारे लिए व सभ्यताओं को जिंदा रखने के लिए भी ज़रूरी हैं। इतिहास गवाह है कि लगभग सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। उदाहरण के तौर पर नील नदी और सिंधु नदी के किनारे की प्राचीन सभ्यताओं को ही देख लें। ऐसी ही कुछ दुर्लभ नदियां हैं, जो विलुप्त होने के बाद भी फिर से बहीं।
यह सच है कि पानी हमारे जीवन का आधार है, कोई भी बिना पानी के जीवित नहीं रह सकता। ब्रिटिश कवि डब्ल्यूएच ऑडेन कहते हैं कि, “हज़ारों लोग बिना प्रेम के जीते हैं, लेकिन कोई भी बिना पानी के जीवित नहीं रह सकता।” ज़रूरी बात यह है कि जल के स्रोत कम हैं। इसके बावजूद, हम इन जल साधनों को अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तरह हल्के में लेते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया का 80 प्रतिशत अपशिष्ट जल नदियों, झीलों और महासागरों में वापस फेंक दिया जाता है।
हम शायद ही कभी खुद को दोषी मानेंगे कि हम नदियों को प्रदूषित करते हैं या बांध बनाकर उनके प्रवाह को रोकते हैं। लेकिन, जलीय वनस्पतियों व जीवों से भरपूर नदियां जीवित तो हैं पर हम उनका ध्यान नहीं रखते हैं, जिससे वे दुर्लभ नदियां धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती हैं। जब ये मछलियों और जलीय पौधों को जीवित रखने में असमर्थ हो जाती हैं, तो नदियां विलुप्त हो जाती हैं। इसका कारण उनके पानी में ऑक्सीजन की कमी तथा बढ़ती अम्लता होती है। जिस कारण से नदियों के वनस्पतियों और जीवों की मृत्यु हो जाती है।
किसी दुर्लभ नदी के विलुप्त होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन वह फीनिक्स की तरह पुनः जीवित हो सकती है। यहां तक कि जब कोई नदी पूरी तरह से प्रदूषित हो गई हो या सूख गई हो, तब भी उसे पुनर्जीवित (Revive) किया जा सकता है।
यहां कुछ ऐसी दुर्लभ नदियां हैं, जिन्हें पुनर्जीवन परियोजनाओं के ज़रिए फिर से बहते हुए देखा गया।
चोंगगीचेओन नदी, दक्षिण कोरिया (Cheonggyecheon nadi, Dakshin korea)
चेओंगगीचेओन दुर्लभ नदी एक पतली धारा (नाला) के रूप में बहती है। यह दुर्लभ नदी दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल शहर से होते हुए पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर बहती है। यह नदी पीले सागर में गिरने से पहले हान नदी से मिलती है। कोरियन युद्ध के दौरान अधिकतर लोग सियोल के लिए पलायन कर गए। जिसके बाद लोग चेओंगगीचेओन नदी के किनारे अस्थाई मकान बना कर रहने लगे और नदी में प्रदूषण बढ़ने लगा। तब तत्कालीन प्रदूषित नदी को कंक्रीट से ढक दिया गया था। 1976 में चोंगगीचेओन नदी के रास्ते में 5.6 किमी. लम्बा, 16 मीटर चौड़ा एक राजमार्ग बनाया गया था।
जुलाई 2003 में सियोल के तत्कालीन मेयर ली मायुंग-बक ने चोंगगीचेओन नदी को पहले की स्थिति में करने के लिए प्रस्ताव जारी किया। इस परियोजना का उद्देश्य सियोल के वातावरण को अच्छा व अर्बन डिजाइन के साथ पर्यावरण के अनुकूल बनाना था। इसलिए राजमार्ग तोड़ दिया गया और यहां चोंगगीचेओन नदी के लिए एक कृत्रिम रास्ता बनाया गया, जिसके किनारे पार्कों का निर्माण किया गया। इसे पुनर्जीवित करने के लिए हान नदी, उसकी सहायक नदी व भूमिगत जल से लगभग 120,000 टन पानी इस नदी की धारा में डाला गया। चोंगगीचेओन आज एक ‘कृत्रिम’ नदी होने के बावजूद वहां के लोगों को पारिस्थितिक लाभ दे रही है। जिस उद्देश्य से इस नदी को पुनर्जीवित किया गया था वह सफल हुआ। वातावरण के सुधार में इसका काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। यह नदी आस-पास के क्षेत्र को औसतन 3.6 डिग्री सेल्सियस ठंडा रखती है और मछलियों, पक्षियों और कीटों को वास्तविक आवास देती है।
वरत्तर नदी, भारत (Bharatara nadi, Bharat)
भारत में भी कई दुर्लभ नदियां हैं, जिसमें से एक थी वरत्तर नदी, जो दक्षिणी केरल की तीसरी सबसे बड़ी नदी पम्बा की सहायक नदी है। एक समय था जब यह नदी सैकड़ों घरों के जीवन का आधार थी। लेकिन, कुछ दशक पहले अवैध रेत खनन और भूमि अतिक्रमण ने वरत्तर नदी का गला घोंट दिया। अचल संपत्ति के विकास के लिए इस विलुप्त होती हुई नदी पर और अधिक अतिक्रमण किया गया।
पर्यावरण विधायी समिति ने 2002 में वरत्तर नदी का निरीक्षण किया और पाया कि दो-तिहाई भाग पर ही अतिक्रमण किया गया है और नदी को अभी भी बचाया जा सकता है। दुर्लभ नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘वरात्ते आर’ अभियान शुरू किया गया। मलयालम में ‘वरात्ते आर’ का अर्थ है ‘नदी को बहने दो’। इस अभियान में केरल के लोगों ने वरत्तर नदी को पुनर्जीवित करने का फैसला किया। संसाधनों और जनशक्तियों को एक जुट कर नदी के रास्ते में गैरकानूनी रूप से बनाए गए रेत के मलबे को साफ किया गया। अवैध रेत खनन पर रोक लगाई गई। इन सब के बाद सबसे दिलचस्प बात यह रही कि नदी का रास्ता साफ होने के कारण, जब मानसून आया तो नदी एक बार फिर से अपने रास्ते पर बहने लगी।
पेनब्स्कॉट नदी, संयुक्त राज्य अमेरिका (Penbasket nadi, Sanyukt Rajya America)
पारिस्थितिक तंत्रों को आपस में जोड़े रखने के लिए यह नदी एक अहम कड़ी है। यह वनस्पतियों और जीवों के बीच पारस्परिक संतुलन बनाए रखती है। इसलिए जब पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होता है, तो संभावित रूप से नदी पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, प्राचीन काल से अटलांटिक सैल्मन नामक मछली की नस्ल पेनब्स्कॉट नदी में निवास करती आ रही है। लेकिन मिलफोर्ड बांध, वेस्ट एनफील्ड बांध और वेल्डम बांध के निर्माण के साथ सैल्मन मछली का प्रजनन मार्ग भी बाधित हुआ। इसके अलावा, जब नदी के किनारे लकड़ी की कटाई जैसी गतिविधियों ने भी पारिस्थितिक तंत्र पर बुरा असर डाला, जिससे पेनबस्कॉट नदी का नाम दुर्लभ नदियों में शामिल होने लगा, क्योंकि बांधों से उनका जल प्रवाह बाधित कर दिया था। इस कारण से सैल्मन मछली भी लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल हो गई।
इसके बाद पेनब्स्कॉट परियोजना शुरू की गई। जिसका उद्देश्य जलविद्युत उत्पादन को प्रभावित किए बिना अटलांटिक सैल्मन की आबादी को बढ़ाना था। सबसे परिवर्तनात्मक नदी बहाली परियोजनाओं में से एक, इस नदी के मार्ग को 2,000 मील तक खोला गया। मछलियों के प्रवास में बाधा बनने वाले दो बांधों को ढहा दिया गया और तीसरे बांध के आसपास बाईपास बनाया गया। अब मछलियां इस बाईपास का इस्तेमाल अपने प्रजनन आवास तक पहुंचने के लिए करती हैं। जिसका नतीजा यह हुआ कि लुप्तप्राय अटलांटिक सैल्मन की आबादी अन्य मछलियों जैसे रिवर हेरिंग, शेड, अमेरिकन ईल के साथ बढ़ गई है।
अरवरी नदी, भारत (Arvari nadi, Bharat)
हम अक्सर सोचते हैं कि नदी को पुनर्जीवित करना एक बहुत बड़ा काम है। लेकिन भारत के जलवाहक नाम से मशहूर पर्यावरणविद् डॉ. राजेंद्र सिंह ने इस काम को बहुत ही आसान बना दिया। उन्होंने अपने दम पर राजस्थान की कई दुर्लभ नदियां पुनर्जीवित की हैं। उदाहरण के लिए, 60 वर्षों से अधिक समय से सूखी पड़ी अलवर जिले की अरवरी नदी को पुनर्जीवित किया गया। डॉ. सिंह ने ग्रामीणों की मदद से नदी के किनारे 375 जोहड़ (मुख्य रूप से हरियाणा और राजस्थान राज्य में उपयोग किए जाने वाले वर्षा जल भंडारण टैंक) बनवाए। कई वर्षों बाद उनकी मेहनत रंग लाई जब अरवरी नदी फिर बहने लगी। आज 45 किलोमीटर लंबी यह नदी पूरे वर्ष बिना सूखे बहती रहती है।
अरवरी नदी को 2004 में अंतर्राष्ट्रीय नदी का पुरस्कार भी मिला था। डॉ. सिंह अपनी सफलता से प्रोत्साहित होकर एक एनजीओ चलाते हैं, जिसने नदी के किनारे पर रेत के अवैध खनन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने और उनकी टीम ने बीते कई वर्षों में 8600 से अधिक जोहड़ बनाए हैं और राजस्थान की पांच नदियों को पुनर्जीवित किया है। जिसके लिए डॉ. सिंह को 2001 में मैगसेस पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
थेम्स नदी, यूनाइटेड किंगडम (Themes nadi, United Kingdom)
1950 के दशक के अंत में यूनाइटेड किंगडम की दूसरी सबसे लंबी नदी थेम्स को जैविक रूप से मृत घोषित कर दिया गया था। युद्ध के दौरान नदी को साफ रखने वाले कई विक्टोरियन सीवरों को नष्ट कर दिया गया था, जिससे थेम्स एक बदबूदार नाले में बदल गई। युद्ध समाप्त होने के लगभग एक दशक बाद तक ब्रिटेन ने इसकी सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया था। इसके बाद जब सीवर प्रणाली में सुधार कार्यक्रम चालू हुआ तब इस दुर्लभ नदी की ओर ध्यान गया।
समय के साथ लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी, जिसके कारण नदी में फेंके जाने वाले कीटनाशकों और फर्टिलाइज़र्स के खिलाफ कड़े कानून बनाए गए। विलुप्त हो चुकी इस नदी को एक नया जीवन मिला। अब थेम्स नदी एक विकसित शहर के बीच बहने वाली सबसे साफ नदियों में से एक है। अब तो इसमें मछलियां भी फिर से वास करने लगी हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि 1950 के दशक तक जिस नदी में कोई मछली नहीं रहती थी, आज उसमें 125 से अधिक प्रजाती की मछलियां निवास करती हैं। इस प्रकार से ये सभी दुर्लभ नदियां फिर से अपनी धारा को लेकर बहने लगी हैं।