हमें गर्व होना चाहिए कि हम एक ऐसे देश में पैदा हुए हैं, जिसने विश्व को स्वस्थ रहने का एक ऐसा मार्ग दिखाया, जो आज से सैकड़ों साल बाद भी जीवंत रहेगा। ज़रा सोचिए कि आज से सदियों बाद भी जीवन कैसा होगा, कौन सी नई बीमारियां या समस्याएं लोगों के सामने आएंगी? हो सकता है कि भावी पीढ़ी किसी भी मनोवैज्ञानिक स्थिति या स्वास्थ्य समस्या के लिए एक गोली पर निर्भर हो जाए। जिसे वे ‘मैजिक टैबलेट’ कह सकते हैं। जो किसी भी बीमार को ठीक कर देगी या उसे नहीं होने देगी। अब भविष्य को लेकर कुछ भी कहा जाए, लेकिन वर्तमान में इस मैजिक टैबलेट का नाम ‘योग’ है। जो बीमारियों को ठीक करने के साथ ही उसे पास फटकने से भी रोकने में कारगर है।
योग दवा नहीं है, लेकिन यह फिर भी हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मददगार है। डॉक्टर कोई भी दवा सिर्फ बीमार व्यक्ति को दे सकते हैं, लेकिन योग कोई भी कर सकता है। चाहे वो किसी रोग से पीड़ित हो या ना हो। योग (Yoga) करने से ना सिर्फ हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं, बल्कि हम अपने भारतीय संस्कृति और जीवशैलियों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रसार भी करते हैं।
भारत की मिट्टी में पनपा योग आज सागर की गहराइयों और आकाश की ऊंचाइयों का मोहताज नहीं है। वह पृथ्वी के हर कोने तक पहुंच चुका है। 100 वर्षों में योग विज्ञान व उसका अभ्यास आधुनिक शहरी जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। योग को इतना अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई विद्वानों और शोधकर्ताओं ने अपना पूरा जीवन लगा दिया। आज योग छोटी से लेकर बड़ी समस्या के लिए किया जाने वाला एक व्यायाम बन गया है, जैसे- अनिद्रा, पीटीएसडी, चिंता, क्रोध, तनाव, टीबी, कैंसर आदि।
अक्सर हम सोचते हैं कि जब योग इतना पुराना है, तो इसका प्रसार वर्तमान में क्यों हुआ? इसे समझने के लिए हमें आइंस्टीन की कहानी समझनी चाहिए। आइंस्टीन के सिद्धांतों को दुनिया ने पहले तो स्वीकार नहीं किया और ना ही समझने का प्रयास किया। लेकिन दशकों बाद और कई वर्षों के शोध का नतीजा देखने के बाद पूरी दुनिया ने माना कि आइंस्टीन के ब्रह्मांड का सिद्धांत सही था। ठीक इसी तरह से ही योग के पीछे के छिपे विज्ञान को भी स्वीकार करने में दुनिया को वर्षों लग गए।
जीवन में खुशियों को तलाशने के लिए कई लोग अपने जीवन जीने का तरीका ही बदल देते हैं। सोलवेदा ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हठ योग प्रशिक्षिका रीना भनोट से खास बातचीत की। एक लंबे समय से वह योग सिखाती आ रही हैं। नीदरलैंड में उन्होंने कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ पाने में मदद की है। हमारे साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के ज़रिए रीना ने योग सीखने, सिखाने व इसे आगे बढ़ाने की कहानी को साझा किया।
आप योग करने वालों के परिवार से संबंध रखती हैं। योग के लिए आपको प्रेरणा कहां से मिली?
जब मैं 6 साल की थी, तब मेरी मां ‘तृप्ता भनोट’ के पीठ के निचले हिस्से में लगातार दर्द होता था। इसका आगे चलकर ऑपरेशन किया गया। हमें उम्मीद थी कि सर्जरी के बाद स्थिति सामान्य हो जाएगी। लेकिन स्थिति जस की तस बनी रही। इस दौरान किसी ने मेरे परिवार को सिद्ध समाधि योग (SSY) के बारे में बताया। उस वक्त श्रीश्री रविशंकर द्वारा एक पार्क में योग के बारे में पढ़ाया जाता था, जिसे बाद में हम सभी आर्ट ऑफ लिविंग के नाम से जाना। मेरी मां वहां पर जाने लगीं और कई महीनों के बाद मैंने पहली बार अपनी मां को मुस्कुराते हुए देखा।
इसके बाद मेरे मां के हौसले बुलंद हो गए और उन्होंने बिहार स्कूल ऑफ योग से प्रोफेशनल ट्रेनिंग (Professional Tanning) लेना शुरू कर दिया। मां ने प्राकृतिक चिकित्सा, रेकी और प्राणिक उपचार के बारे में सीखा। मैं और मेरे भाई-बहन उनके साथ गर्मी की छुट्टियों में सेमिनार और कोर्सेज में जाया करते थे। मेरी मां अब एक प्रसिद्ध योग चिकित्सक हैं।
जब मैं बड़ी हुई और अपनी पढ़ाई पूरी की, तो मेरा योग प्रेम मुझे उसके बारे में और अधिक जानने के लिए प्रेरित करता रहा। इसके बाद मैंने योग की मुश्किलों को समझना शुरू किया। मेरे बचपन में अनजाने में किया गया योग आज मेरा व्यवसाय बन चुका है।
हठ योग आज लोकप्रिय शब्द है। यह क्या है? क्या यह सबके लिए है?
हठ योग… योग का एक रूप है। जो वर्तमान में सबसे अधिक प्रचलित रूप माना जाता है। योग शास्त्रों के मुताबिक, हठ योग दो मंत्रों का संयोजन है। ‘हं’ का संबंध सूर्य (पिंगला) या आवश्यक ऊर्जा या प्राण से है और ‘थम’ का संबंध चंद्रमा (इडा) या मानसिक ऊर्जा से है। हठ योग इन्हीं दो पहलुओं के बीच सामंजस्य बैठाने का तरीका है।
हठ योग आपको अपने शरीर की स्पष्ट समझ के लिए अभ्यास का एक तरीका हो सकता है। हठ योग के ज़रिए आप सिम्पेथेटिक, पैरासिम्पेथेटिक और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं। आप उसे पिंगला नाड़ी, इडा नाड़ी और सुषुम्ना नाड़ी के रूप में भी समझ सकते हैं। हठ योग को कोई भी कर सकता है, क्योंकि यह किसी भी आयु, लिंग या शारीरिक स्थिति का मोहताज नहीं है। आप हठ योग का अभ्यास अपनी गति से कर सकते हैं।
आप कई वर्षों से योग सिखा रही हैं। पहले भारत फिर नीदरलैंड व अब सिंगापुर में। क्या आपने इन देशों में योग के प्रति लोगों के नज़रिए में कोई अंतर पाया?
अलग-अलग देशों में मेरा अनुभव काफी अलग रहा है।
योग की जन्मभूमि भारत में इसे आराधना की तरह माना जाता है। यहां पर योग सिखाने वाले को एक शिक्षक की भांति आसन पर बैठाया जाता है और काफी विनम्रता से उनके योग क्रियाओं को सीखा जाता है। एम्स्टर्डम जाने से पहले मैंने लगभग 3 साल तक भारत में योग सिखाया है।
उस वक्त योग अमीरों तक ही सीमित था। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ लोगों में योग दर्शन की समझ बढ़ी और आज यह भारत में हर तबके तक पहुंच चुका है। जैसा कि आप जानते हैं कि योग महसूस की जाने वाली चीज़ है। इसलिए योग करने के दौरान हमें खुद की तलाश करनी चाहिए और यह चीज़ यहां के लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी फलदायी सिद्ध हुई है।
नीदरलैंड में योग को एक्सरसाइज के रूप में देखा जाता है। वहां पर एक ऐसा वर्ग है, जिसे योग की संस्कृति व इतिहास में बिल्कुल भी रुचि नहीं है। वे सिर्फ योग क्रियाओं को करने में रुचि रखते हैं, ना ही कोई मंत्र का उच्चारण करना पसंद करते हैं और ना ही ध्यान करना। लेकिन मेरे पास कुछ ऐसे लोग भी आते थे, जो आध्यात्मिकता की तलाश करते थे, उन्हें वो सभी चीज़ें करनी अच्छी लगती थी, जो अन्य लोग नहीं करना चाहते थे। नीदरलैंड के लोग तर्कों और तथ्यों पर ज्यादा विश्वास करते हैं, इसलिए वो योग के तथ्यों के बारे में जानने के बाद उसके प्रति प्रतिबद्ध होते हैं।
वहीं, सिंगापुर मेरे लिए काफी नई जगह है। मैं यहां पर ऐसे लोगों से मिली हूं, जो योग के प्रति काफी उत्साही हैं।
आप “आईडेंटिफाइंग ऑफ इनर पैटर्न” के विषय पर काम करती हैं। ये कौन सा पैटर्न है? हम योग से उनकी पहचान कैसे कर सकते हैं?
मेरा मानना है कि हमारा शरीर व मस्तिष्क ऑटोपायलट मोड पर काम करता है। हम अक्सर समान परिणामों की तरफ आकर्षित होते हैं, ज्यादातर लोग एक ही समस्या का समान तरीके से हल करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हम एक निश्चित विश्वास प्रणाली या सीख के साथ बड़े होते हैं। अगर हम अपने आसपास देखें, तो लोगों के जीवन जीने का तरीका लगभग समान होता है। हमारी प्रतिक्रियाएं समान होती हैं, चाहे वो कोई कठिन परिस्थिति हो या बीमारी। हम अपने पूर्व अनुभव के द्वारा ही एक मानसिक रूपरेखा तैयार करते हैं और उसी के अनुसार काम करते हैं।
हममें जन्म के बाद या मां के गर्भ से ही कई धारणाओं के अंश देखने को मिलते हैं, जैसे- “अगर मैं दो कप से ज्यादा चाय पीता हूं, तो मुझे सिरदर्द होने लगता है” या “मेरा रिश्ता बहुत लंबा नहीं चलेगा” या “मेरे परिवार में डिप्रेशन, डायबिटीज या कैंसर की बीमारी है, जो मुझे भी हो सकती है”। ये बातें या विश्वास ही एक से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि इस भ्रम या चक्र को तोड़ा कैसे जाए। इसका एक मात्र उपाय है आपका आत्मविश्वास। जी आपने सही सुना, जैसे ‘लोहा लोहे को काटता है’, ठीक वैसे ही आत्मविश्वास भी आत्मविश्वास में परिवर्तन से धारणाओं में बदलाव ला सकता है। लेकिन यह चुनाव आपका है, क्या आप खुद को फिर से स्थापित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए अगर आपको दो कप से ज्यादा चाय पीने पर सिरदर्द हो रहा है, तो यह वह अतिरिक्त चाय का कप नहीं है, जो आपके सिरदर्द का कारण है, बल्कि आपकी मानसिक या शारीरिक स्थित के कारण है। बस यहीं पर योग आपकी मदद कर सकता है और पीढ़ियों से चली आ रही अवधारणा को तोड़ सकता है।
एक बार जब आप दुनिया के शोर का म्यूट बटन दबाते हैं, तब आप अपने अंतर्आत्मा की आवाज़ को सुनना शुरू करते हैं। इस शोर को शांत करने में योग आपकी मदद कर सकता है।
हमें बताएं कि इनर पैटर्न या लूप का सामना करने में योग कैसे मदद करता है?
योग आपके शरीर के लिए एक उपकरण की तरह काम करता है। योग एक जाना माना क्षेत्र है, जिसके बारे में सभी जानते हैं। सिर्फ योग के सही आसन, प्राणायाम और विश्राम लेने की तकनीकों को जानने से आप अपनी सभी समस्याओं से निजात पा सकते हैं।
योग आपके भीतर की चेतना को जगा कर उसे समूचे शरीर और मस्तिष्क में प्रसारित करने का काम करता है। इसके बाद हम अपने शरीर को समझने लगते हैं और किसी भी बीमारी के कारणों के बारे में जानने लगते हैं। इसमें हमारा रहन-सहन और खान-पान सब कुछ शामिल है।
आसान शब्दों में समझें, तो सिर्फ कुछ दिनों के लिए आप अपनी सांसों की गति और स्थिति पर ज्यादा ध्यान दें। इसके बाद आपके सांस की गति ही आपको आत्म-उपचार की तरफ लेकर जाएगी।
वर्तमान में योग फिटनेस का दूसरा नाम है। लेकिन योग विशेषज्ञ इसे सिरे से खारिज करते हैं कि योग फिटनेस का नाम नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के समग्र कल्याण से जुड़ा है। इस बारे में आपकी क्या राय है?
जिम में बनाया गया एक मस्क्यूलर शरीर देखने में भले संदर दिख रहा हो, लेकिन यह कभी भी एक स्वस्थ शरीर में तब्दील नहीं हो सकता है। जबकि योग आपको शारीरिक रूप से स्वस्थ, मज़बूत और लचीला बनाता है। इसके अलावा यह मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से भी स्वस्थ रखता है। योग में छोटे समय के फायदों की बजाय उम्र भर का फायदा मिलता है। बेशक आज लोगों की विचारधारा के अनुसार फिटनेस और योग के बीच नाम मात्र का अंतर रह गया है। लेकिन फिटनेस इंडस्ट्री भी अब योग के लाभों से मुंह नहीं फेर नहीं सकती है। यही वजह है कि अब फिटनेस ट्रेनर भी अपनी एक्टिविटीज़ में योग को शामिल कर रहे हैं और उन्हें नए नामों से रीब्रांड कर रहे हैं।
अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि यदि आप नियमित रूप से योग करते हैं, तो इसका परिणाम आपको जीवन भर देखने को मिलेगा। योग में कुछ अजीब आकर्षण हैं, जो आपके किसी भी एक्सरसाइज के पूरक की तरह काम करता है।