ज़रा सोचिए कि पृथ्वी पर पानी ना हो, तो अपनी धरती देखने में कैसी लगेगी? शायद सूखी, बढ़ा हुआ तापमान और गंभीर जलवायु संकट देखने को मिलेगा। यह तो महज़ एक कल्पना है, लेकिन अगर हमने जल संकट और जलसंरक्षण (Water conservation) के मुद्दों को यूं ही अनदेखा किया तो ये दिन दूर नहीं होगा। भारत के परिदृश्य में यह संख्या काफी डरावनी है। यूनिसेफ के मुताबिक, भारत के 718 जिलों में से दो-तिहाई जिले अभी से ही जल संकट से जूझ रहे हैं। “अत्यधिक जल की कमी” से प्रभावित ये जिले भूजल की कमी का सामना कर रहे हैं और ये चिंता का एक गंभीर विषय है।
आज जिस तरह से भारत में बारिश के पैटर्न में तेज़ी से बदलाव हो रहा है, यह एक अलार्म है। अचानक से बाढ़ और बारिश की समस्याओं के बीच जल संरक्षण करना एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का एक बड़ा कारण यह भी है, क्योंकि जब बारिश होती है तो ज्यादातर पानी बह जाता है, जिससे जल-स्तर रिचार्ज नहीं हो पाता है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों पर पड़ता है। किसान अपनी आजीविका यानि की खेती के लिए पानी पर निर्भर हैं और इसके अभाव में उनके लिए यह सबसे बड़ी समस्या बन जाती है। हो सकता है आपको यह समस्या सिर्फ नाम मात्र की लगे, लेकिन यह कहीं ना कहीं हम सभी को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकती है। यदि किसान को कृषि के लिए पानी नहीं मिलेगा, तो उनकी आजीविका तो प्रभावित होगी ही, साथ ही हम भी अन्न से वंचित हो सकते हैं। इसलिए अक्सर कहा जाता है कि पानी बचाओ या जल बचाओ।
लेकिन समाज में कुछ लोग हैं, जिन्होंने जलसंरक्षण का बीड़ा अपने कंधों पर उठा लिया है। मुंबई की उद्यमी मैथिली अप्पलवार भी उनमें से एक हैं। उन्होंने अपने लाभकारी सामाजिक उद्यम ‘अवाना’ के ज़रिए किसानों को जलसंरक्षण कार्यक्रम से जुड़ने में मदद कर रही हैं। 2017 में अवाना की स्थापना के बाद उन्होंने विभिन्न राज्यों में 20,000 से अधिक कृत्रिम तालाबों का निर्माण करवाया है। जिसका मुख्य उद्देश्य जलसंरक्षण करना है। इन तालाबों से लगभग 6000 से अधिक खेतों के लिए 3.5 बिलियन लीटर पानी की बचत हुई है।
अवाना का जलसंरक्षण कार्यक्रम ‘जलसंचय’ कई मायनों में किसानों की समस्याओं का समाधान करता है। जलसंरक्षण के लिए बने कृत्रिम तालाबों से किसानों को मदद मिलती है। इनका जलसंचय कार्यक्रम किस तरह से जलसंरक्षण (Jalsanrakshan) क्षेत्र में कैसे काम करता है? इस सवाल के जवाब में मैथिली ने बताया कि “ज़मीन में एक बड़ा गड्ढा खोदा जाता है, फिर इसे जियोमेम्ब्रेन से ढका जाता है, जो जल को रिसने से रोकता है, ताकि इसमें संचित होने वाले जल को लंबे समय के लिए संरक्षित किया जा सके और सिंचाई के काम में लाया जा सके। आप इस संरक्षित जल का इस्तेमाल पूरे साल कर सकते हैं।”
सोलवेदा ने मैथिली से अवाना के साथ अपने काम के बारे में खास बातचीत की। भारत में जल संकट पर काबू पाने की दिशा में क्या कदम उठाए जा सकते हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग और देश के नागरिकों की भूमिका क्या हो सकती है।
अवाना की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे की प्रेरणा क्या थी?
मेरा जन्म उत्तर-पूर्वी महाराष्ट्र के एक जिले यवतमाल के एक परिवार में हुआ है। यह एक ऐसा राज्य है, जहां पर किसानों में आत्महत्या की दर पूरे देश में सबसे ज्यादा है। अवाना की स्थापना 2017 में इस विचार के साथ हुआ था कि हमें किसानों में आत्महत्या की दर को कम करना था। किसानों की मानसिक स्थिति को समझ कर उनके समस्याओं का समाधान किया जा सके। जब मैंने अवाना की शुरुआत की तो मेरा ध्येय था कि किसानों की आय में कैसे सुधार किया जा सकता है। मैंने उनकी चुनौतियों को करीब से देखा-समझा और पाया कि किसानों के लिए पानी की कमी ही सबसे बड़ी समस्या है। सरकार द्वारा निर्मित जल संरचनाएं, जल बचाओ, पानी बचाओ अभियान भी उनके समस्या का समाधान नहीं कर पा रहे थे। किसानों को अनियमित रूप से पानी दिया जाता है और जिससे उनकी फसल को नुकसान होता है और आय भी प्रभावित होती है। शायद यही कारण है कि भारत के अन्नदाता आज भी गरीबी रेखा के तहत आते हैं। मुझे यहीं से प्रेरणा मिली कि मुझे जलसंरक्षण के क्षेत्र में काम करना चाहिए और किसानों की समस्याओं को हल करने का प्रयास करना चाहिए।
बतौर युवा उद्यमी आपको किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा व आप उनसे किस तरह से निपट पाईं?
किसी भी शहरी व्यक्ति या उद्यमी को ग्रामीण क्षेत्र में अलग ही नज़रिए से देखा जाता है। ग्रामीण लोग सोचते हैं कि कोई भी उद्यमी गांव में सिर्फ अपने फायदे के लिए आता है। अपने जुनून और इच्छा को पूरा करने के बाद वापस चला जाएगा। यही सोच मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। एक युवा महिला के रूप में ग्रामीण क्षेत्र में अपनी गंभीरता या अस्तित्व को समझना खुद में एक बहुत बड़ी चुनौती है। जब मैंने शुरू किया, तब मुझे बहुत सारे लिंगभेद और अजीब व्यवहार का सामना करना पड़ा। कई बार लोग मुझसे पूछते थे कि ‘अकेले ही निकल पड़ी, पिता कहां है तुम्हारे’। एक बार मैंने एक ड्रेस पहनी थी तो मुझसे पूछा गया था कि, ‘पति कहां हैं तुम्हारे?’ यह काफी चौंकाने वाला था। उस वक्त मैं महज 19 साल की थी और मैं इन परिस्थितियों से निपटने के लिए इतनी परिपक्व नहीं थी। लेकिन मैंने इन बातों को दरकिनार कर के अपने लक्ष्य पर ध्यान बनाए रखा।
इन सबके बीच मुझे चुनौतियों का सामना करने के लिए सबसे ज्यादा हिम्मत मेरे समुदाय से मिलती थी। मैंने पाया कि जब हम किसी भी जगह पर पांच-छह बार जाते हैं, तो वहां के लोग आप पर विश्वास करने लगते हैं और आपको सच्चा मानने लगते हैं।
वर्तमान समय में जल संकट और जलसंरक्षण भारत के प्रमुख मुद्दे हैं। इसके लिए क्या उपाय किया जा सकता है?
मोटे तौर पर हम देश में पानी की खपत का प्रतिशत देखें, तो तकरीबन 80 फीसदी पानी का इस्तेमाल कृषि क्षेत्र में होता है। अब यदि किसी शहरों में आज जल संकट व्याप्त है, तो इसका सीधा संबंध उस शहर के बगल के गांव से हो सकता है। जहां पर सिंचाई के लिए अभी भी भूमितगत जल का प्रयोग किया जा रहा है। इसलिए जल संकट से निपटने का उपाय यह है कि ग्रामीण भारत से जल संकट का समाधान, जिससे पूरे देश में जल संकट को प्रभावी तरीके से कम किया जा सकता है।
शिक्षित युवाओं का जलसंरक्षण के लिए जागरूक होना कितना ज़रूरी है?
आज युवाओं के लिए सभी क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन जलसंरक्षण में कृषि प्रौद्योगिकी का क्षेत्र आने वाले कल का मार्ग है। लेकिन जलसंरक्षण का अर्थ सिर्फ जल को सिंचित करने से नहीं हैं, बल्कि जल को स्वच्छ और सुरक्षित रखना सबसे बड़ी चुनौती है। अगर युवा सोचते हैं कि उसमें करने के लिए बहुत कुछ है, तो वे सही हैं। लेकिन किसी एक-दो लोगों के सोचने से सिर्फ सतह पर ही प्रभाव दिखेगा। लेकिन जब युवाओं का एक बड़ा समूह मिल कर काम करता है, तो प्रभाव गहराई तक दिखाई देता है। अगर युवा वर्ग आज भी नहीं चेता, तो अगले 50 वर्षों में जलवायु संकट का सामना करना पड़ सकता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार पता चला है कि भारत का 5वां हिस्सा सूखे की मार झेल रहा है। इस समस्या का सामना करने में जलसंरक्षण की क्या भूमिका है?
ऐसा सोचना गलत है कि कोई एक संस्था जल संकट को दूर कर सकती है। लेकिन फिर याद आता है कि ‘कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों’। एक संस्था होने के नाते हम बड़ा तो नहीं लेकिन छोटे-छोटे बदलाव कर रहे होते हैं। दुनिया बहुत बड़ी है और इसमें हमारे जैसे बहुत से लोग हैं, जो अपना-अपना योगदान दे रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आने वाले समय में हम सब मिल कर अपने लक्ष्य तक पहुंचेंगे। मेरा मानना है कि मैं जो भी कर रही हूं, भविष्य में जल संकट से सामना करने में मदद करेगा।
आम आदमी जलसंरक्षण के तरफ कैसे छोटे-छोटे कदम उठा सकता है?
मेरा मानना है कि किसी भी बड़े बदलाव के लिए जागरुकता सबसे पहला कदम है। उसके साथ ही समस्या की जड़ को समझना बहुत ज़रूरी है। अब तो कई सारे गैर-लाभकारी संगठन हैं, जो जलसंरक्षण के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। ऐसे में आप अपने तरफ से उन संगठनों में दान देकर पर्यावरण के पहल का हिस्सा बन सकते हैं। यह बात आपको भी पता है कि किसी बड़ी समस्या का समाधान अकेले कोई नहीं कर सकता है। इसलिए किसी भी संगठन के साथ जुड़ कर स्वंयसेवक के रूप में समूह में काम करना आपको प्रत्यक्ष तौर पर परिणाम दिखाता है।
जलसंरक्षण जैसी मुहीम के साथ और अधिक लोग कैसे जुड़ सकते हैं?
जहां चाह है, वहां राह है। अगर किसी भी समस्या के प्रति खुद को जागरूक और संवेदनशील पाते हैं, तो आप उसे बेहतर तरीके से समझते हैं। इसके अलावा आपकी रुचि भी उस समस्या के समाधान की तरफ बढ़ेगी। मुझसे कई बार ऐसे लोग मिले हैं, जिन्होंने कहा है कि उन्हें जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है। मैं कई बार सोच कर हैरान होती हूं कि जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दे में लोगों को कैसे रुचि नहीं है! उन्हें भी इस बात को समझने की जरूरत है कि जलसंरक्षण हर आम नागरिक की जिम्मेदारी है। अंत में यही कहना चाहूंगी अगर आप अपना काम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?