क्या आपने कभी जिंदगी को, बच्चे की कन्फ्यूज़्ड आंखों से देखा है? बेशक, पेरेंट होने के नाते, आपने अपने बच्चे को अपनी जिंदगी, अपनी जिम्मेदारी और अपनी खुशियों की वजह बनते देखा होगा। लेकिन, क्या आपने कभी एक बच्चा बनकर देखने की कोशिश की है कि आखिर एक बच्चे को सबकुछ कैसा नजर आता है?
एक छोटे बच्चे को बोलना, चलना और अपनी भावनाओं को समझना भी नहीं आता है। ऐसे में एक बच्चे की जिंदगी किसी रहस्य से भरी किताब की तरह होती है, जिसके हर चैप्टर में नजरिए को बदलकर रख देने वाले सरप्राइज, चौका देने वाले मोड़ और जरूरी जानकारी भरी होती है। एक बच्चा अपना ज्यादातर समय यह समझने में लगा रहा होता है कि उसके आस-पास आखिर हो क्या रहा है। मां को छोड़कर, उसके लिए हर इंसान अजनबी होता है।
शुरुआत के दो सालों में तो बच्चे की जिंदगी पालने से शुरू होकर मां की गोद में खत्म हो जाती है। बच्चे के लिए यह वक्त जिंदगी में आने वाले प्री-स्कूल की दुनिया से बिल्कुल अलग होता है। अचानक से बच्चा एक ऐसी जगह चला जाता है, जहां उसे सिर्फ एक अजनबी और अपनी मां के पास जाने के लिए रोते हुए बच्चे नजर आते हैं। किसी भी बच्चे के लिए ये एहसास एक बुरे सपने की तरह होता है। पेरेंट होने के नाते, क्या आपको नहीं लगता है कि मां की गोद से प्री-स्कूल तक जाने के बीच बच्चे के लिए कोई पड़ाव छूट जाता है।
बैंगलोर की रहने वाली सुजाता ‘सु’ अय्यर को इसका एहसास काफी पहले हो गया था। एक मां होने के नाते, उन्होंने जिंदगी को अपने बच्चे की आंखों से देखा, जिससे उन्हें बच्चे की इस परेशानी के बारे में पता चला। यहीं से Mommy and Me with u की शुरुआत हुई। आज, म्यूजिशियन से एंटरप्रेन्योर बनीं सुजाता ने, बच्चों के लिए बनाए गए इस प्रोग्राम से उनकी जिंदगी में आने वाले बड़े बदलाव को काफी आसान बना दिया है। यह प्रोग्राम सुनिश्चित करता है कि बच्चों के पालने से निकलकर प्री-स्कूल जाने के सफर की शुरुआत – खुशी और हंसी से हो, न कि उनके आंसुओं से। सोलवेदा की एडिटर-इन-चीफ शालिनी के शर्मा से बातचीत के दौरान, सुजाता अय्यर ने एक मां और बिजनेस वुमन के रूप में अपने सफर को फिर से याद किया, ऐसा सफर जो इन्हें लड़खड़ा कर चलने वाले मासूम बच्चों और उम्मीद से भरी माताओं की दुनिया में ले गया।
हमें Mommy and Me with u के बारे में बताएं। यह पहल माताओं और बच्चों की मदद कैसे करता है?
MommyandMewithSu को खासतौर पर 12 से 24 महीने के बच्चों के लिए डिजाइन किया गया है। उम्र का यह पड़ाव बेहद नाजुक होता है, क्योंकि इस समय बच्चा प्री-स्कूल में जाने के लिए तैयार हो रहा होता है। इस वक्त बच्चा इस बात से बिल्कुल अनजान होता है कि आने वाला समय उसे कितना परेशान करने वाला है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि प्री-स्कूल के पहले दिन बच्चे कितनी बुरी तरह रोते हैं, क्योंकि यह उनके घर से अकेले बाहर निकलने का पहला दिन होता है। Mommy and Me with u जैसे प्री-स्कूल में जाने से, बच्चों को मौका मिलता है कि वे चीजों को बेहतर ढंग से देखें और समझें। इसके साथ ही वे प्री-स्कूल के अधिक इंटरएक्टिव माहौल के लिए भी तैयार होते हैं।
माताओं के लिए रखे जाने वाले सेशन में, एक मां को दूसरी कई मांओं से मिलने का, उनसे बात करने का मौका मिलता है। उन्हें एक-दूसरे के साथ आइडिया और बच्चों से जुड़ी परेशानियों का हल, शेयर करने का भी मौका मिलता है, जिससे उनके मातृत्व का सफर आसान बनता है। इस माहौल में जहां बच्चे अपने दोस्तों का ग्रुप बना रहें होते हैं, वहीं माताओं को भी दूसरी मांओं के साथ दोस्ती करने का समय मिल जाता है।
आप एक कलाकार हैं। फिर बिजनेस के ऐसे सफर का ख्याल आपके दिमाग में कैसे आया?
मां बनने के बाद मुझमें एक बड़ा बदलाव आया है। आर्टिस्ट के रूप में मेरा करियर बहुत अच्छा चल रहा था, मगर मुझे हमेशा बच्चों के आस-पास रहने का मन करता था। मैंने यूके और यूएस में मदर-टॉडलर प्रोग्राम किए हैं, जहां मैं माताओं और बच्चों से मिला करती थी। ये मेरे लिए किसी ट्रीटमेंट की तरह था। जब मैं भारत वापस आई, तो मैंने फ्रेंचाइजी के रूप में, 2010 में प्री-स्कूल की शुरुआत की। लेकिन, तब मुझे काफी नियमों के दायरे में रहकर काम करना होता था, जिसके कारण मैं अपनी क्रिएटिविटी का इस्तेमाल नहीं कर पाती थी। इसके बाद मैंने खुद का मदर-टॉडलर (मां-बच्चा) प्रोग्राम शुरू करने के बारे में सोचा, जिसे मैं अपने अनुभव की मदद से आसानी से कर सकती थी। तो इसी तरह से, साल 2013 में एक दिन, मैंने छोटी-सी क्लास ली, जिसमें छह बच्चे और छह पेरेंट्स थे।
आपने 2013 में Mommy and Me with u की शुरुआत की। जो आप चाहती थीं, उसकी शुरुआत करने में इतना लंबा समय कैसे लग गया?
जब मेरा बेटा सिर्फ 5 साल का था, तब उसने मुझसे पूछा था कि मैं नौकरी करती हूं या नहीं। यह पल मेरे लिए खुद को आंकने जैसा था। मैंने फैसला किया कि मैं संगीत के फील्ड में काम करूंगी, लेकिन मेरी शर्त थी कि मेरा बेटा हर उस जगह मेरे साथ चले जहां मैं गाने रिकॉर्ड करने जाऊं, मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। ये मेरी खुशकिस्मती है कि लोगों ने मेरी इस शर्त को माना। फिर जब तक मेरा बेटा नौ साल का हुआ, मैं एक प्रोफेशनल म्यूजिशियन बन चुकी थी। उसी वक्त किसी ने मुझे प्री-स्कूल की फ्रेंचाइजी ऑफर की थी। लेकिन, फिर मुझे लगा कि मेरा बेटा अब बड़ा हो चुका है, तो अब मैं नई चीजें एक्सप्लोर कर सकती हूं। यही वो वक्त था जब मेरे बच्चे ‘Mommy and Me with u’ ने जन्म लिया।
प्रोग्राम में सलाह देने के लिए आपका अप्रोच किस तरह का होता है?
हम मल्टीपल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हैं, जो एजुकेशनिस्ट हावर्ड गार्डनर के द्वारा शुरू की गई थी। अगर मुझे कुछ अलग या खास करना होता है, तो मैं अपने अनुभव को भी इसमें जोड़ती हूं। MommyandMewithSu में, हम एक्टिविटी से भरी किताबें, थीम बुक्स और फ्लैशकार्ड्स भी देते हैं। हर सेशन का कोई न कोई थीम होता है। बच्चा जब फ्लैशकार्ड देखता है और अपना दिमाग लगाकर किताब में वहीं तस्वीर ढूंढने की कोशिश करता है, तो इससे उसकी नॉलेज बढ़ती है। बच्चों को अलग-अलग चीजों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर के और उन्हें दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने में मदद कर के, मांऐं भी ‘बाइंडिंग एजेंट’ की तरह काम करती हैं।
अपने आस-पास रहने वाले लोगों की नकल करते हुए अक्सर बच्चे बड़ों की तरह बात करने लगते हैं। बच्चों के इस तरह के व्यवहार के पैटर्न को संभालने में मां-बाप का क्या रोल होना चाहिए?
बच्चे अपने चारों तरफ के माहौल और लोगों को देखकर ही सीखते हैं, इसलिए पेरेंट्स को भी अपने बात-व्यवहार को लेकर सावधान रहना चाहिए। बड़े और संयुक्त परिवार के लोगों को अपने बातचीत के तरीके पर खास ध्यान देना चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि बच्चे उनसे क्या सीख रहें हैं। मान लें, घर में किसी बात को लेकर बहस हो जाए, ऐसे में बड़े लोगों को सोच-समझकर और सम्मान के साथ एक-दूसरे से बात करनी चाहिए। मैं वही बता रही हूं, जो मैंने खुद अपने घर पर कर के देखा है।
यह बिल्कुल सामान्य है कि पेरेंट्स बनने के बाद ही लोग समझते हैं कि पेरेंट्स बनना कैसे है। ऐसे में किसी को बाहर से मदद लेने की क्या जरूरत है, जैसे कि रिश्तेदारों से?
हर कोई पेरेंटिंग समय के साथ नहीं सीख पाता है। जो लोग इस सफर के लिए तैयार नहीं होते हैं, उन्हें मदद लेने की जरूरत पड़ सकती है। बहुत से बच्चे अपने दादा-दादी के पास बड़े होते हैं। लेकिन, एक उम्र के बाद बुजुर्गों के लिए बच्चे को संभालना आसान काम नहीं होता है। ऐसी ही स्थिति में, मदर-टॉडलर प्रोग्राम Mommy and Me with u की जरूरत महसूस होती है।
यह प्रोग्राम बच्चे के इमोशनल इंटेलिजेंस को कैसे बढ़ाता है?
हमारी क्लास में, हम बच्चे को बोलना और बांटना सिखाते हैं, जिससे उनकी सोशल स्किल और इमोशनल इंटेलिजेंस बढ़ती है। ‘थैंक्यू’ ‘एक्सक्यूज मी’ और ‘सॉरी’ जैसे मैजिक वर्ड्स का बार-बार इस्तेमाल करने से बच्चे विनम्र बनते हैं और किसी बात को लेकर सोचते-विचारते हैं। बच्चे का मासूम-सा मन ऐसी चीजों को सीखना और समझना शुरू कर देता है। हम पेरेंट्स से भी ये शब्द घर में बार-बार दोहराने को कहते हैं, ताकि बच्चा इसे बार-बार सुनें और इन्हें बोलना बच्चे की आदत बन जाए।
पेरेंटिंग आसान नहीं है। इसके लिए पेरेंट्स को अपना कंट्रोलिंग व्यवहार और किसी भी तरह के डर को भूलने की जरूरत पड़ती है। बिना डर की पेरेंटिंग आपके नजर में कैसी है?
बच्चा बिना किसी डांट के डर के, कुछ भी करने में और बताने में सहज महसूस करे। ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि उसे ऐसा लगे कि उससे कुछ गलती हो जाएगी, इसलिए वो कुछ भी कर नहीं सकता। अगर किसी बच्चे को चीजें फेंकने की आदत है, तो उसे बॉल से खेलना सिखाएं ताकि वो अपनी एनर्जी का सही जगह पर इस्तेमाल कर सके। बच्चा अगर हाइपर है, तो उसके साथ तरह-तरह के गेम्स खेलें। कुछ मामलों में नियम बनाना मदद करता है, जैसे कि उनसे कहें कि जो चीज जहां से उठाएं, इस्तेमाल करने के बाद वापस वहीं रखें।
आज के पेरेंट्स के लिए आपका क्या मैसेज है?
अपने बच्चे पर यकीन करें और उनकी किसी भी राय का सम्मान करें। उनपर हजारों सवाल डाल देने की जगह पहले उन्हें ध्यान से सुनें। हो सकता है कि बच्चे ने किसी बैंगनी रंग के हाथी को सपने में देखा हो और वो इसके बारे में आपको बताना चाहता हो। उसे कभी ऐसा न कहें कि हाथी बैंगनी रंग के नहीं होते, बैंगन गुलाबी नहीं होता या केला लाल नहीं होता। अगर बच्चा बैंगनी रंग के हाथी की पेंटिंग बनाता है, तो उसे बनाने दें और उसकी तारीफ करें। बच्चे को कल्पना करने दें, जितना वो कर सकता है।