जैसा अन्न, वैसा मन
यह बात निर्विवाद रूप से वैज्ञानिक शोध के निष्कर्षों से प्रमाणित हो चुकी है कि अन्न का मनुष्य के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। भारतीय मनीषियों और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के महान चिकित्सकों ने इस बात को प्राचीन काल से ही सिद्ध किया है कि हमारा स्थूल शरीर हमारे मन की रचना है। अर्थात् प्रसन्नचित्त होकर बनाए गए भोजन को यदि प्रसन्न भाव से ग्रहण किया जाए तो इसका हमारे स्वास्थ्य पर बहुत गहरा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सात्विक भोजन हमारे स्वास्थ्य के लिए अमृत है।
प्रायः देखा जाता है कि गुणवत्तायुक्त भोजन करने के बावजूद, मानसिक रूप से चिंतित और अवसादग्रस्त व्यक्तियों के स्वास्थ्य में अक्सर कुछ ना कुछ समस्या अवश्य बनी रहती है। अन्न को एक श्रेष्ठ औषधि बनाने में, हमारी सकारात्मक भावनाएं संजीवनी बूटी की तरह काम करती हैं। हम सभी को व्यावहारिक रूप से यह अनुभव है कि प्रसाद के लिए बने हुए भोजन में एक विशेष प्रकार का स्वाद होता है क्योंकि प्रसाद को बनाते समय शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ मन में दिव्यता के भाव की प्रधानता होती है। यदि हम नियमित रूप से ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग के द्वारा अपनी भावनाओं का शुद्धिकरण करते हैं तो भोजन को सात्विक भोजन बनाने की कला सीख सकते हैं। यहां एक अंतर स्पष्ट करना आवश्यक है कि शाकाहारी भोजन और सात्विक भोजन में बहुत बड़ा अन्तर होता है। प्रत्येक शाकाहारी भोजन, सात्विक भोजन नहीं होता है। केवल परमात्म-स्मृति में और मन में पवित्र भावनाओं के साथ शाकाहारी भोजन बनाने पर ही वह सात्विक भोजन बनता है। सात्विक भोजन उच्च ऊर्जा और पोषक तत्वों से युक्त शरीर के आन्तरिक अंगों का पोषण करने वाला तथा मन को आनन्दमय बनाने वाला होता है। यह हमारे तन और मन दोनों को स्वस्थ तथा हृष्ट-पुष्ट बनाता है। होटलों में मिलने वाला भोजन स्वादिष्ट और शाकाहारी तो हो सकता है परन्तु सात्विक नहीं हो सकता है। भाग-दौड़ भरी जीवन की रफ्तार के बीच में हमें अपने मन तथा निरोगी काया के लिए समय निकालना अति आवश्यक है। तभी इस जीवन का सार्थक उपयोग सम्भव है। वर्तमान भौतिकवादी युग में एक मिथ्या बात हमारे मन में प्रवेश कर गई है कि धन ही हमारे जीवन का अन्तिम साध्य है तथा धन से हम आराम और खुशी से जीवन व्यतीत कर सकते हैं। परन्तु इस बात को पूरी तरह से स्वीकार करने में संकोच नहीं होना चाहिए कि धन से केवल वस्तुओं और सुविधाओं को खरीदा जा सकता है ना कि शान्ति, खुशी और मानवीय संवेदनाओं को। इसलिए सात्विक आहार ग्रहण करके हम अपने इन मूलभूत गुणों को अभी ही अनुभव कर सकते हैं।
करें योग, रहें निरोग
वर्तमान समय में, मनुष्य अपने सपनों की उड़ान पर जिन्दगी का सफर तय करना चाहता है। सपनों को साकार करने के लिए वह अपनी सम्पूर्ण मानसिक शक्तियों को केन्द्रित कर अपने सपनों की दुनिया में ही खो जाता है। आज के युवा होते बच्चों और युवा पीढ़ी को अपने सपनों से किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार्य नहीं है। इसके लिए वे हर प्रकार की कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। अपने स्वास्थ्य की उचित देखभाल और मानवीय संवेदनाओं का अपने जीवन में विकास करना, युवा पीढ़ी के चिन्तन से बाहर होता जा रहा है। जिसका दुष्परिणाम हमारी युवा पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है। विगत कुछ वर्षों में युवाओं में हार्ट-अटैक, मानसिक तनाव, अवसाद के कारण मृत्यु की घटनायें अधिक देखने को मिल रही हैं। कई अभिनेताओं की असामयिक मृत्यु ने जनमानस को झकझोर कर रख दिया है। आखिर जीवन का वह लक्ष्य भी किस काम का जिस जीवन यात्रा में शान्ति न हो।
जीवनकाल में लम्बे समय तक सक्रिय रहने के लिए, बाल्यकाल से ही तन और मन को स्वस्थ बनाने के लिए योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करना बहुत ही आवश्यक है। नियमित रूप से योग करने तथा सात्विक भोजन करने से, विशेषकर मानसिक तनाव से उत्पन्न होने वाली असाध्य बीमारियों के कारण असामयिक मृत्युदर पर नियन्त्रण पाना सम्भव है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा है कि अस्सी प्रतिशत स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या का कारण मनोदैहिक बीमारियां हैं। उदाहरण के लिए, मानसिक तनाव के कारण ब्लडप्रेशर की बीमारी प्रारम्भ होती है। बाद में इसके कारण शुगर तथा लीवर और किडनी के फेल होने की बीमारी मृत्यु का कारण बन जाती है। इसलिए निरोग रहने के लिए अपनी दिनचर्या में योग को सम्मिलित करना समय की मांग है। यह सत्य है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। जीवन में भावनात्मक रूप से उतार-चढ़ाव आने पर शरीर में अनेक प्रकार के हानिकारक हार्मोन्स उत्पन्न होते हैं। आधुनिक शोध से यह ज्ञात हुआ है कि असाध्य बीमारी कैन्सर की उत्पत्ति का एक कारण मानसिक आघात भी है।
योगः कर्मसु कौशलम्
भौतिक समृद्धि और उपलब्धियों के लिए जीवन में सक्रियता और कुशलता का होना आवश्यक है। घोर स्पर्धा के वर्तमान युग में थोड़ा भी आलस्य जीवन में आगे बढ़ने के अवसरों को छीन लेता है। जीवन में उन्नति के अवसरों के लिए कर्म में कुशलता और व्यवहार में सहजता अति आवश्यक है। आहार और दिनचर्या को व्यवस्थित करके ही वर्तमान के स्पर्धा युग में टिकना सम्भव है। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही जीवन में भारी तबाही का कारण बन सकती है इसलिए कर्म में कुशलता आवश्यक है। गीता में स्पष्ट कहा गया है- योग से कर्म में कुशलता आती है।’ वर्तमान समय में मनुष्यों को कौशल विकास केन्द्रों में प्रशिक्षण देकर कार्यकुशल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। परन्तु ट्रेनिंग से एक सीमित सीमा तक ही कर्म में कुशलता लाना सम्भव हो पाता है। इसलिए कर्म में असीमित कुशलता के लिए योग ही एकमात्र विकल्प है। राजयोग के अभ्यास से मन में अन्तर्निहित शक्तियों और चेतना के नये आयामों के विकास की नई सम्भावनाएं सदा बनी रहती हैं। इसलिए हाल ही के वर्षों में कारपोरेट सेक्टर, व्यापारिक संस्थानों और कारखानों में काम करने वाले लोगों में योग के प्रति आकर्षण देखा जा रहा है। योग को दिनचर्या में नियमित रूप से सम्मिलित करने पर तनावमुक्त होकर कुशलतापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन करना सम्भव हो जाता है।