पहला चरण : दूसरे का अवलोकन करो
‘बैठ जाएं और एक दूसरे की आखों में देखें (बेहतर होगा पलकें कम से कम झपकें, एक कोमल टकटकी) बिना सोचे गहरे, और गहरे देखें।
‘यदि आप सोचते नहीं, यदि आप केवल आंखों के भीतर टकटकी लगाकर देखते हैं, तो शीघ्र ही तरंगें विलीन हो जाएंगी और सागर प्रकट होगा। यदि आप आंखों में गहरे देख सकते हैं, तो आप अनुभव करेंगे कि व्यक्ति विलीन हो गया है, मुखड़ा मिट गया। एक सागरीय घटना पीछे छिपी है और यह व्यक्ति बस उस गहराई का लहराना था, कुछ अनजाने की, कुछ छुपे हुए की एक तरंग।’
‘पहले तुम यह किसी व्यक्ति के साथ करो क्योंकि तुम इस तरह की तरंग के अधिक नज़दीक हो। फिर जानवरों के साथ करो-थोड़ा सा दूर। फिर पेड़ों के पास जाओ- थोड़ी सी और दूर की तरंग; फिर चट्टानों के पास।
दूसरा चरण: सागरीय चेतना
‘शीघ्र ही आपको अपने चारों ओर सागरीय चेतना का बोध होगा। तब आप देखेंगे कि आप भी एक तरंग हैं; आपका अहंकार भी एक तरंग है।
‘उस अहंकार के पीछे, उस अनाम के पीछे वह एक छिपा है। केवल तरंगे उठती हैं, सागर वैसा ही रहता है। अनेक पैदा होते हैं, लेकिन वह एक वैसा ही रहता है।’
ओशो: वेदांता: सेवन स्टेप्स टु समाधि से उद्धृत
ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।