सोचने की कला

सोच को बदलोगे तो सितारे बदल जायेंगे, नजर को बदलोगे तो नजारे बदल जायेंगे, किश्ती बदलने की जरूरत नहीं तुम्हें, दिशा को बदलोगे तो किनारे बदल जायें

किसी भी कार्य को करने की एक कला होती है। जब कार्य उसी प्रमाण किया जाता है तो कम खर्च, कम ऊर्जा और कम समय में उसे सुन्दर बना सकते हैं। ऐसे कार्य से सबको सुख मिलता है।

संसार में अनेक प्रकार की कलाएँ हैं जैसे नाचने की कला, खाना बनाने की कला, भाषण-कला, चित्रकला आदि-आदि। इनको सीखने के लिए मनुष्य अपना बहुमूल्य समय और धन खर्च करता है और नाम भी कमाता है। कलाओं का ज्ञान देने के लिए दुनिया में बहुत संस्थाएँ, स्कूल, कॉलेज आदि हैं परन्तु इन सब कलाओं का आधार कहें या इनमें सबसे ऊँची कला कहें, वह है सोचने की कला।

कई बार हम देखते हैं कि कोई चित्र इतना खूबसूरत नहीं होता परन्तु एक कलाकार उसमें रंग भरकर उसे आकर्षक बना देता है। इसी प्रकार हमारे मन में भी यदि किसी के प्रति गलत प्रतिमा बनी हुई है तो अब उसमें शुभभावना एवं शुभकामना के रंग भरकर हम भी उसे आकर्षक बना सकते हैं। इससे स्वयं को भी एवं उसको भी निश्चित रूप से सुख मिलेगा।

एक शोध के अनुसार, मनुष्य की अस्सी प्रतिशत संकल्प शक्ति व्यर्थ जा रही है। मुश्किल से बीस प्रतिशत काम में लग रही है। मनुष्य एक मिनट में 27 से 30 विचार उत्पन्न करता है। इनमें से अगर 80 प्रतिशत व्यर्थ चले गए तो काम के तो मात्र 5 या 6 ही बचे। अतः संकल्पों पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है। कुछ व्यर्थ चिंतन चल रहा है तो निस्संदेह हमारी ऊर्जा व्यर्थ जा रही है। जैसे जंगल में भटक रहे व्यक्ति को जब तक दिशा नहीं मिलती, तब तक उसका समय, शक्ति व्यर्थ जाते रहते हैं, ऐसे ही विचारों के जंगल में भटकते व्यक्ति को भी सही दिशा मिलना जरूरी है ताकि उसका समय और शक्ति बच सके।

मान लीजिए, किसी के बहुत व्यर्थ संकल्प चल रहे हैं कि इसने ऐसा क्यों किया, मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, इसको बदलना चाहिए…. आदि-आदि। ऐसे में बुद्धि में सृष्टि नाटक के यथार्थ ज्ञान को इमर्ज करो कि सृष्टि नाटक में हर एक का अपना-अपना पार्ट है, सबका पार्ट सही है। यह नाटक समय प्रमाण चल रहा है। इसको बदला नहीं जा सकता परन्तु स्वीकार करके चलना है।

संकल्पों से हमारे आस-पास का वायुमण्डल बनता है। हमारे हर संकल्प में रचनात्मक शक्ति होती है। संकल्पों के आधार पर शरीर रूपी प्रकृति भी बदल जाती है। यदि कोई पूरी दृढ़ता से बार-बार यह संकल्प करता है कि मैं बीमार हूँ, तो बीमारी के कीटाणु उसके शरीर में बन जाते हैं।

जैसे स्थूल धन का एक-एक पैसा खर्च करते समय कितना ध्यान देते हैं, बजट बनाते हैं, क्या इतना ही ध्यान अपने एक-एक संकल्प पर भी रहता है? संकल्पों को श्रेष्ठ वनाने का आधार है, अटेन्शन रूपी पहरेदार सदा सुजाग रहे, समय प्रति समय अपने संकल्पों की दिशा और गति को चेक करें। बार-बार देखें कि मेरे संकल्प ज्ञानयुक्त हैं, कल्याणकारी हैं, अगर कुछ कमी है तो ज्ञान के आधार पर परिवर्तन करें।

श्रेष्ठ संकल्प नर्क को स्वर्ग और मानव को देव बना देते हैं। श्रेष्ठ जीवन का आधार श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ कर्म का आधार श्रेष्ठ चिंतन है। कहा गया है, सोच को बदलोगे तो सितारे बदल जायेंगे, नजर को बदलोगे तो नजारे बदल जायेंगे, किश्ती बदलने की जरूरत नहीं तुम्हें, दिशा को बदलोगे तो किनारे बदल जायेंगे।