एक ध्यान करने वाला उस बिंदु पर आ जाता है, जहां कोई प्रलोभन नहीं बचता, इसे समझने की कोशिश करो। प्रलोभन कभी बाहर से नहीं आते: ये दमित इच्छाएं होती हैं, दमित ऊर्जा होती है, दमित काम, दमित लोभ होता है, जो कि प्रलोभन का रूप ले लेता है। प्रलोभन तुम्हारे भीतर से उठता है, उसका बाहर से कुछ लेना-देना नहीं। ऐसा नहीं है कि बाहर से कोई शैतान आता है और प्रलोभन दे देता है, यह तुम्हारा दमित चित्त ही है जो शैतान का रूप ले लेता है और प्रतिशोध लेना चाहता है। इस दमित मन को नियंत्रित करने के लिए ही इतना जमा हुआ और जड़ रहने की आवश्यकता हो जाती है कि जीवन ऊर्जा शरीर में और उसके अंगो में प्रवाह नहीं कर पाती। यदि ऊर्जा को प्रवाह होने दिया जाए, तो वे दमित भाव सतह पर आ जाएंगे। इसीलिए लोगों ने जड़ होना सीख लिया है, कैसे दूसरों को छूकर भी वो उन्हें छू नहीं पाते, कैसे दूसरों को देख कर भी वो उन्हें देख नहीं पाते।
“लोग बंधे हुए वाक्यों में जीते हैं–‘ नमस्ते, आप कैसे हैं?’ किसी को इस बात से कोई अर्थ नहीं है। यह वो एक-दूसरे से वास्तविक भेंट करने से बचने के लिए करते हैं। लोग एक-दूसरे की आंख में नहीं देखते, वे एक दूसरे का हाथ नहीं पकड़ते, वे एक-दूसरे की ऊर्जा को महसूस करने की कोशिश नहीं करते। वे एक-दूसरे को आपस में घुलने का मौका नहीं देते। बहुत डरे हुए, अपने आप को किसी तरह से बस संभाले हुए… जमे हुए और जड़। एक हथकड़ी में बंधे हुए।”
“एक ध्यान करने वाला व्यक्ति अपनी भरपूर ऊर्जा में जीना सीख जाता है, अधिकता में, सर्वोच्चता में। वह शिखर पर जीता है, वह उस शिखर पर अपना आवास बना लेता है। निश्चित रूप से उसमें एक उष्मा होती है, पर वो ज्वर नहीं है, बल्कि वो उष्मा जीवन को दर्शाती है। वह तप्त नहीं होता, वह शीतल होता है क्योंकि वह प्रलोभनों में नहीं बह रहा। वह इतना प्रसन्न है कि अब वह किसी प्रसन्नता की खोज नहीं कर रहा। वह इतने विश्राम में है, जैसे कि कोई अपने घर में, उसे कहीं नहीं जाना, वह कोई भाग-दौड़ नहीं कर रहा… वह बहुत शांत है।”
ओशो, डेंग डेंग डोको डेंग, टॉक #5 से उद्धृत
ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।