हमारे जीवन की खूबसूरत यात्रा में कई मोड़ आते हैं जो अपने साथ विभिन्न दृश्य लाते हैं और उनमें हमारी ताकत और स्थिरता के साथ, परिस्थितियों का सामना करने की हमारी क्षमता का परीक्षण होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, जीवन में अनिश्चितताएं बहुत अधिक हैं और हर पल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हमारे वर्तमान जीवन में एक भी नकारात्मक स्थिति हमारे द्वारा किए गए पिछले जन्मों या फिर इस जीवन में किए गए किसी गलत कार्य के परिणाम का संकेत है। साथ ही, वर्तमान समय में किए गए अच्छे कार्य; हमारे द्वारा अतीत में किए गए नकारात्मक कार्यों के प्रभाव को खत्म कर, उनके कारण होने वाले दुःख या असंतोष को कम करने में मदद करेंगे। अच्छे व सकारात्मक कार्य और बुरे व नकारात्मक कार्य क्या हैं, दोनों में अंतर कैसे कर सकते हैं? आइए इस संदेश के द्वारा समझें:
अच्छे कर्म आत्मा के मूल गुणों – शांति, आनंद, प्रेम, सुख, पवित्रता, शक्ति और ज्ञान पर आधारित होते हैं। दूसरी ओर, कोई भी कार्य जो हमारे रियल व्यक्तित्व या संस्कार के स्तर पर, इन गुणों से दूर ले जाते हैं वे नकारात्मक कार्य हैं। उदाहरण के लिए: मान लीजिए, आज मेरा ऑफिस सहकर्मी मुझसे नाराज है और मैंने उसके ऊपर गुस्सा कर दिया तो उसके बाद मुझे कैसा महसूस होता है? मुझे शांति, प्रेम और आनंद की कमी महसूस होती है और साथ ही, मैं यह भी जानता हूं कि, मैंने विवेक पूर्ण कार्य नहीं किया है। ऐसे ही किसी और दिन; मैं अपने अहंकारवश दूसरों से बातचीत करते समय झूठा अहंकार दिखाता हूं, ऐसे में मैं कभी भी ताकतवर महसूस नहीं कर सकता क्योंकि, झूठी शान का अभिमान रखने वाले को अपने द्वारा नेगेटिव बातें सुनने पर, अपमान भी आसानी से महसूस होगा। इसके अलावा, अहंकारी मनुष्य का स्वभाव कड़वा और आलोचनात्मक होता है, जो इस बात का संकेत है कि, उसमें प्रेम और ज्ञान की कमी है।
हमारे जीवन में अच्छे और बुरे कार्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हमने अपने जीवन में जितने अधिक सकारात्मक और अच्छे कर्म किए होंगे, हम उतना ही अधिक खुश और हल्का महसूस करेंगे। इसलिए, अक्सर जो लोग जीवन से नाखुश या असंतुष्ट होते हैं, उन्होंने अपने इस जीवन में या फिर पिछले जन्मों में कुछ बुरे कर्म किए होंगे जिनका ये परिणाम है। साथ ही, हम जितने अधिक सकारात्मक कर्म करते हैं, उतना अधिक हम इस दुनिया में परमात्मा द्वारा बताए गए सच्चे धर्म और कर्त्तव्य के आधार पर भलाई फैलाने का महत्वपूर्ण माध्यम बनते हैं। तो हमें स्वयं से यह सवाल करने की जरूरत है कि, क्या हम अपना जीवन केवल अपने लिए जीते हैं या फिर इस उद्देश्य के साथ जीते हैं कि – अच्छे बनकर अच्छाई फैलाओ, सकारात्मक रहकर सकारात्मकता फैलाओ! सकारात्मकता कभी भी छुप नहीं सकती और हमें इसे दूसरों के साथ शेयर करना चाहिए। यह एक सुंदर फायदे के समान है। दूसरी ओर बुरे कार्य समाज में, हमारी स्वयं की नजरों में और परमात्मा की नजरों में हमारा सम्मान खो देते हैं, क्योंकि हम लोगों को अच्छाई के बजाय नकारात्मकता की ओर प्रेरित करते हैं।
अच्छे कर्म ही संसार के ओरिजनल कर्म हैं। जैसे-जैसे दुनिया पुरानी होती गई, वैसे-वैसे काम, क्रोध, अहंकार, लालच, मोह, घृणा, ईर्ष्या, बदले की भावना और कई अन्य नकारात्मक भावनाओं के माध्यम से, विभिन्न प्रकार की नकारात्मकता इस संसार में प्रचलित हो गई। परंतु दुनिया के आरंभ में; उत्तम पुरुष और महिलाएं इन सभी नकारात्मक भावनाओं के प्रभाव में नहीं थे। इसीलिए दुनिया में कहावत है कि, परमात्मा ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया। दुनिया में अच्छाई; परमात्मा के स्वभाव का ही रिफ्लेक्शन है और आज की दुनिया में व्याप्त नकारात्मकता; बुराई अथवा रावण का और ये सब कुछ और नहीं बल्कि, हमारे अंदर की ही कमी कमज़ोरियाँ हैं।
हर समाज में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के कर्म प्रचलित हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि, क्या जीवन में विभिन्न कार्य करते समय हम कभी यह सोचते हैं कि, हमारे कौन से कार्य सकारात्मक या फिर अच्छे हैं और कौन से नकारात्मक या बुरे? मान लीजिए, कि आज आपने अपने ऑफिस में कार्य क्षेत्र से संबंधित कई लोगों से मुलाकात की और हर किसी के साथ अपने थॉट्स, फीलिंग्स के साथ-साथ अपने शब्दों और कार्य के माध्यम से कुछ शेयर किया; तो आपने कभी ये ध्यान दिया कि; कुछ लोगों के साथ आप सकारात्मक होते हैं, कुछ के साथ न्यूट्रल होते हैं और जबकि कुछ एक के साथ आप नकारात्मक हो जाते हैं। तो क्या आप हर रोज अपने कार्यों की समीक्षा करते हैं और फिर भविष्य के लिए उनमें सुधार लाते हैं? लेकिन उससे भी पहले अच्छे और बुरे का ज्ञान होना जरूरी है और फिर उसके आधार पर आपके कर्म भी वैसे ही हो जाते हैं। तो हर दिन यह हमारा होमवर्क होना चाहिए, क्योंकि हम स्वयं के छात्र भी हैं और शिक्षक भी।
हम सभी एक आध्यात्मिक यात्री भी हैं और हम आज जो कुछ भी करते हैं उसके संस्कार हम अपने भविष्य और आने वाले जन्मों में ले जाते हैं। तो ये सोचने की बात है कि, क्या हम नकारात्मक कर्मो के कारण; गलत और बुरे संस्कारों का बोझ ढोना चाहते हैं या फिर अच्छे और सही कार्यों से प्राप्त ढेर सारी दुआओं के साथ अपनी आगे की यात्रा करना चाहते हैं, यह हमारी अपनी पसंद है। हम अपने रिश्तों, अपने भौतिक शरीर, अपनी संपत्ति या यहां तक कि, अपने इस जन्म की भूमिका को भी अपने अगले जन्म में साथ नहीं ले जा सकते हैं। और इस भौतिक शरीर को छोड़ते ही ये सब बदल जाता है। फिर केवल हमारे संस्कार ही बचते हैं, जो हमारे कर्मों के आधार पर बनते हैं। सकारात्मक कार्य हमें सकारात्मक संस्कारों से भर देंगे और नकारात्मक कार्य नकारात्मक संस्कारों से। इसलिए यदि हमारे संस्कार सकारात्मक और सुंदर हैं, तो हमें अपने अगले जन्म में सुंदर और स्वस्थ शरीर, उत्तम रिश्ते, धन संपत्ति और बहुत अच्छी भूमिकाएँ मिलेंगी।