सभी स्तर की शिक्षा में मूल्य-शिक्षा अनिवार्य की जाए

हमने ऊंची-ऊंची शिक्षा पाकर भी अपने ऊंचे मूल्यों को खो दिया है। आज व्यक्ति एक-दूसरे को मारने-काटने, नीचा दिखाने में लगा है। क्या शिक्षा यही सिखाती है?

आज  की शिक्षा व्यवस्था से हमने बहुत ऊंची-ऊंची डिग्रियां प्राप्त करके बहुत ऊंचे-ऊंचे पद और प्रतिष्ठा पाई है। हमने कई तरह के नए-नए आविष्कार कर दुनिया की मौत का सामान तैयार किया है, चांद पर दुनिया खोजने की कोशिश की है, कई ग्रहों को खोज निकाला है, इस प्रकार हमने बहुत कुछ पाया पर जो खोया है, उसको पुनः प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो गया है। 

हमारी पुरानी गुरुकुल पद्धति में नैतिकता, पवित्रता, ईमानदारी, सत्यता, समर्पण, सहयोग, दया, साहस, धैर्य, सहनशीलता, उदारता, क्षमा मांगना, क्षमा करना, आदर्शों की रक्षा करना, मान-सम्मान और संस्कारों की शिक्षा दी जाती थी लेकिन आज इनके स्थान पर क्रोध, अभिमान, भय, निराशा, बदले की भावना, दंड, चोरी, व्यभिचार और भ्रष्ट आचरण अपना स्थान ले रहे हैं। हमने ऊंची-ऊंची शिक्षा पाकर भी अपने ऊंचे मूल्यों को खो दिया है। आज व्यक्ति एक-दूसरे को मारने-काटने, नीचा दिखाने में लगा है। क्या शिक्षा यही सिखाती है?

चारों ओर बच्चे से लेकर वृद्ध तक के व्यवहार में कटुता ने प्रवेश कर लिया है। इसलिए आज आवश्यकता है शिक्षा के साथ-साथ मूल्यों की शिक्षा देने की। शिक्षा के पाठ्यक्रम में कक्षा प्रथम से ले कर स्नातकोत्तर तक और जितनी भी तकनीकी शिक्षण संस्थाएं हैं चाहे चिकित्सा, इंजीनियरिंग, आईआईटी या कोई भी शोध संस्थान, सभी में मूल्य शिक्षा अनिवार्य विषय के रूप से लागू किये जाने की नितांत आवश्यकता है। मूल्य शिक्षा विषय की अनिवार्यता के साथ-साथ उसमें अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना भी अनिवार्य हो। पूर्व गुरुकुल पद्धति की भांति उनके व्यावहारिक मूल्यों की जांच हेतु गोपनीय रूप से उनकी दैनिक गतिविधियों का पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ मूल्यांकन आवश्यक है। पक्षपात का लेशमात्र भी समावेश नहीं हो। हमने मूल्यों को खोकर अपना सात्विक रहन-सहन, खान-पान, आदर-सत्कार सब समाप्त कर लिया है, हमारी सभ्यता, संस्कृति और श्रेष्ठ संस्कारों का ह्रास हो गया है। 

आधुनिक शिक्षा में हमने बहुत कुछ खोजा पर अपने आपको नहीं खोज पाए। हमने कई वैज्ञानिक विधियां खोजी पर स्वयं को ही भूल गए। मैं कौन हूं? कहां से आया हूँ और वापस कहां जाना है? हमें अपने इस स्व को खोजना है। इस आत्मज्ञान की प्राप्ति से ही आत्मा में पवित्रता, प्रेम, दया, सहनशीलता, सरलता, सहयोग, उदारता आदि मूल्यों का निर्माण होगा।