प्रकृति के प्रति क्षमा याचना एवं सम्मान

कर्म सिद्धांत के अनुसार, हम अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म करते हैं उसका यथाफल हमें अवश्य ही मिलता है।

प्रकृति के पांचों तत्व, पशु, पक्षी, जीव, जंतु आदि सब मानव जीवन एवं सृष्टि को संतुलित एवं सुखद बनाने के लिए आवश्यक है। जगत के सभी प्राणी एक-दूसरे के पूरक हैं। वर्तमान समय मनुष्यों की असंतुलित जीवन शैली, अमर्यादित आचरण, अशुद्ध भोजन और तामसिक प्रवृत्ति ही दुख, अशांति एवं पीड़ा के कारण बने हुए हैं।

अनावश्यक दोहन से प्राकृतिक प्रकोप स्वार्थ एवं लालच ने मानव को मूल्यों और मर्यादाओं से विमुख कर दिया है। भौतिकता की अंधी दौड़ में दौड़ता हुआ वह सुख, शांति एवं समृद्धि की प्राप्ति से दूर निराशा, बेचैनी, हताशा एवं मानसिक तनाव का शिकार होता जा रहा है। उसने प्रकृत्ति का अनावश्यक दोहन कर उसे असंतुलित कर दिया है। इसी कारण हमें अनेक बार प्राकृतिक प्रकोप एवं वायरस जनित बीमारियों का दुखद सामना करना पड़ता है। इन सब के पीछे मानव के अपने कर्म ही उत्तरदाई हैं।

कर्म सिद्धांत के अनुसार, हम अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म करते हैं उसका यथाफल हमें अवश्य ही मिलता है। इस अर्थ में हम प्रकृति के साथ भी जैसा बर्ताव करेंगे, प्रतिफल हमें वैसा ही मिलेगा। अतः हम सभी की जिम्मेदारी है कि अपने श्रेष्ठ आचरण एवं सत्कर्मों के बल पर इस धराधाम एवं प्रकृति को पुनः उसके उच्चतम स्वरूप में पहुंचाएं।

मानव सृष्टि का सर्वोत्तम बुद्धिजीवी प्राणी 

परमात्मा ने मानव को सृष्टि का सर्वोत्तम बुद्धिजीवी प्राणी बनाया है। इस अर्थ में दूसरों का अधिकार एवं जीवन छीनने का नहीं, दूसरों को अधिकार दिलाने एवं जीवन की रक्षा करने का भार हमें सौंपा गया है। आज जाने-अनजाने मानव से अनेकों भूल एवं दुखदाई कर्म होते रहते हैं। ऐसे में जरूरत है सर्वोच्च शक्ति परमपिता परमात्मा एवं प्रकृति मां से भूलों एवं गलत कर्मों के लिए क्षमा याचना कर उनके समीप जाने की। परमपिता परमात्मा और प्रकृति माता से यदि हम सच्चे दिल से अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करेंगे तो निश्चित ही वे हमें माफ कर, हमारे उज्ज्वल एवं सुखदाई भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

परमात्मा पिता तथा प्रकृति माता को भावनाओं रूपी पुष्पार्पण कहा भी गया है, ‘यदि हम भगवान का ध्यान करेंगे, तो वे हमारा ध्यान रखेंगे।’ इसी प्रकार, यदि हम प्रकृति माता का भी ध्यान रखेंगे, उनका साथ देंगे, प्रकृति माता के प्रति दिल से स्नेह, सत्कार एवं सहयोग की भावना जगाएंगे तो वह भी हमें साथ और सहयोग देगी। मानव और प्रकृति दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इस अर्थ में, प्रकृति के प्रति सम्मान ही मानव जीवन को सुखदाई एवं संपन्न बना सकता है। तभी हम प्रकृति के विकराल रूप से मुक्त रहने में सफल होंगे। तो आइए, कुछ देर परमशक्ति परमात्मा पिता तथा प्रकृति माता के सम्मुख खुद को समर्पित कर, दिल की भावनाओं रूपी पुष्प अर्पित करें।