मानव का महान शत्रु क्रोध

क्रोध जहर है। जहर केवल बिच्छू या सर्प में ही नहीं होता, मनुष्य में भी होता है। ध्यान हमें रखना है। क्रोध पर विजय मतलब सब पर विजय।

क्रोध एक विषधर सर्प है जिसके डसने से आत्मा अपने बास्तविक स्वरूप को भूल जाती है। क्रोध एक मूर्छा है, अग्नि की भट्टी है, क्रोध विक्षिप्तता है, दुख की अन्तहीन कथा है। क्रोध तात्कालिक पागलपन है, क्षय रोग है। क्रोध एक मनोविकार है, नरक का द्वार है, दुख का भंडार और अनर्थों का घर है। पीड़ा का पर्याय और विवेक का दुश्मन है। क्रोध मनुष्य को अंधा बना देता है। क्रोध जब भी आता है, विवेक को नष्ट करके आता है। होश में व्यक्ति क्रोध नहीं करता। क्रोध पहला प्रहार विवेक पर करता है। विवेक गया कि क्रोध व्यक्ति को अंधा बना देता है। वह भूल जाता है कि वह क्या कर रहा है, क्या करने जा रहा है और इसका परिणाम क्या होगा? यद्यपि आँखें हैं लेकिन वह देख नहीं सकता, कान है लेकिन वह सुन नहीं सकता, मन है लेकिन वह विचार नहीं कर सकता। क्रोध समझदारी को बाहर निकालकर बुद्धि के दरवाजे पर चिटकनी लगा देता है, मनुष्य को विचार-शून्य बना देता है।

एक भयावह सत्य घटना

एक व्यक्ति शाम को दुकान से घर आया। उसने पाँच हजार रुपये पत्नी को दिये। पत्नी भोजन बना रही थी। उसने रुपयों को वहीं चूल्हे के पास रख दिया। सर्दी के दिन थे, पास में उसका दो वर्ष का बेटा पप्पू बैठा था। माँ काम से बाहर गई, इतने में पप्पू ने रुपयों की गड्डी उठाकर जलते चूल्हे में डाल दी। अग्नि तेजी से जलने लगी। पप्पू खुश हुआ कि आग की लपटें कितनी तेज उठ रही हैं।

इतने में माँ आ गई, उसने जब यह सारा नजारा देखा तो समझने में देर न लगी। क्रोध ने उसे अंधा बना दिया। वह अपना होश-हवास खो बैठी। उसने आव देखा न ताव, अपने सुकुमार बच्चे को उठाया और जलते चूल्हे में झोंक दिया। बेटा जलकर राख हो गया। इकलौते बेटे को क्रोध खा गया। बुढ़ापे के सहारे को क्रोध ने छीन लिया। क्षणभर के क्रोध ने जीवन भर का दुख पैदा कर दिया। क्रोध सदा दुख देता है। क्रोध की गिरफ्त में आने वाला सुखी कैसे? बिच्छू के डंक में और आराम? सर्प के दश में और अमृत? अग्नि के स्पर्श में और शीतलता? क्रोध की गिरफ्त में और सुख? कभी नहीं। इस दर्दनाक घटना को जब पति ने देखा, वह आग-बबूला हो गया। पत्नी के प्रति घृणा और कोध से भर गया और अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा। एक धारदार हथियार से उसने पत्नी को गर्दन काटकर निर्मम हत्या कर दी। क्रोध हत्यारा है, हिंसक है, क्रूर है। क्रोध में करुणा नहीं होती। क्रोध और करुणा में जन्मजात वैर है। सूचना पाकर पुलिस आ गई। हथकड़ियाँ डालकर उसे जेल ले गई। केस चला, मजिस्ट्रेट ने हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

एक हरा-भरा गुलशन क्रोध की आग से वीरान हो गया। एक हंसता-हंसाता, खिलता-खिलाता परिवार उजड़ गया। क्रोध सृजन नहीं, विध्वंस करता है। क्रोध विकास नहीं, विनाश करता है। करुणा में विकास है। करुणा में प्यार है। क्रोध में मार है। क्षमा में उद्धार है। क्षमा में प्रगति है। क्रोध में अवनति है। करुणा और क्षमा में दिव्यता है। घृणा और क्रोध में पशुता है। 

कहा गया है-

क्रोध करना छोड़ दो, यह दुर्गुण का खान है।

पतन का है मार्ग, फिर होता नहीं उत्थान है।

भस्म होती है इसी में, मनुज की सद्भावना। 

कृत्य और अकृत्य का फिर हो न सकता ज्ञान है।।

क्रोध जहर है। जहर केवल बिच्छू या सर्प में ही नहीं होता, मनुष्य में भी होता है। ध्यान हमें रखना है। क्रोध पर विजय मतलब सब पर विजय।

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