मध्यस्थ से बचें

चीजों को तुम कैसे देखते हो यह तुम पर निर्भर करता है चीजों पर नहीं।

जब तक तुम ऐसी अवस्था में नहीं पहुंचते जहां तुम व्याख्या करने वाले मन को तिरोहित कर सको और इसी क्षण, सीधा देख सको, मन ही तुम्हारा मध्यस्थ है। यह चीजों को विकृत करके तुम तक लाता है, चीजों में अपनी व्याखा की मिलावट करके तुम्हें दिखाता है। वे विशुद्ध नहीं होतीं।

तो सत्य तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग यह जानना है कि अपनी दृष्टि को वर्तमान में कैसे लायें, मन की निर्भरता को कैसे हटायें… मन का यह माध्यम रूप ही समस्या है, क्योंकि मन केवल स्वप्न निर्मित कर सकता है। लेकिन मन सुंदर स्वप्न रच सकता है और तुम उत्तेजित हो सकते हो। तुम्हारी उत्तेजना के कारण स्वप्न तुम्हें सत्य की तरह दिखाई देते हैं। यदि तुम अधिक उत्तेजित हो तो तुम नशे में हो, बेहोश हो। तब जो भी तुम देखते हो वह तुम्हारा प्रक्षेपण है। और उतने ही संसार हैं जितने मन, क्योंकि प्रत्येक मन अपने ही संसार में जीता है।

विधि

प्रयास करो कि छोटी-छोटी बातों में मन ना आये। तुम फूल देख रहे हो, तो बस देखो। ´सुंदर´, ´कुरूप´- ऐसा मत कहो। तुम कुछ कहो ही मत! शब्दों को बीच में मत लाओ, शाब्दिक अभिव्यक्ति मत करो। बस देखो। मन बेचैनी महसूस करेगा, व्याकुल होगा। यह कुछ न कुछ कहना चाहेगा। मन हमेशा कुछ न कुछ कहना चाहता है। तुम बस इससे कह दो:´ चुप रहो! मुझे देखने दो। मैं केवल देखूंगा।´

प्रारंभ में यह मुश्किल होगा, इसलिये बेहतर होगा कि तुम ऐसी बातों से शुरू करो जिनमें तुम अधिक आलिप्त नहीं हो। अपनी पत्नी को बिना शब्द बीच में लाये देखना थोड़ा कठिन होगा। तुम उससे जुड़े हुए हो, उससे तुम्हारा भावुकतापूर्ण लगाव है…या तो नाराज़ या प्रेम में, लेकिन अत्यंत आलिप्त।

उन चीज़ों को देखो जो तटस्थ हैं- कोई चट्टान, कोई फूल, कोई पेड़, उगता हुआ सूर्य, उड़ता हुआ पक्षी, आकाश में विचरता बादल।,बस उन चीजों को देखो जिनमें तुम आलिप्त नहीं, जिनसे तुम अलग रह सकते हो, जिनके प्रति तुम उदासीन रह सकते हो। तटस्थ चीजों से प्रारंभ करो और इसके बाद ही उन परिस्थितियों से उलझो जो भावुकता से भरी हैं।

जितना तुम मन को हटाओगे उतना ही प्रकाश तुम्हें उपलब्ध होगा, क्योंकि जब कोई स्वप्न नहीं होते, द्वार खुले होते हैं, खिड़कियां खुली होती हैं, और आकाश तुम तक पहुंचता है, सूर्य उगता है तथा तुम्हारे हृदय तक पहुंचता है, प्रकाश तुम तक पहुंचता है, तब तुम सत्य से और अधिक भर जाते हो और स्वप्न क्षीण हो जाते हैं।

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।