गुस्सा मानव जीवन की रोज की घटना है। कभी इसकी चपेट में कोई एक व्यक्ति आता है, तो कभी पूरा परिवार और कभी तो इसकी चपेट में समूची जाति तक आ जाती है। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो बड़े-बड़े शक्ति सम्पन्न राष्ट्र इस ज्वालामुखी के लावे में बहकर मात्र इतिहास के पन्नों पर शेष रह जाते हैं।
इतना सब जानने-देखने के बाद भी हम क्यों गुस्से के सामने अपने आप को विवश पाते हैं? बार-बार प्रायश्चित्त करने के बाद भी हम क्यों दोहराते हैं, इस पाप कर्म को? क्रोध का उद्देश्य होता है भय दिखाना।
क्रोध (Anger) एक ऐसा पागलपन है, जो न शिक्षित को छोड़ता है और न अशिक्षित को। इसकी लपटों से न गरीब बच पाता है और न अमीर। जब यह अंधड़ आता है, तो उन्हें भी नहीं छोड़ता जिन्हें लोग महापुरुष या संत कहते हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि गुस्से ने कैसे सम्पूर्ण सभ्यता और संस्कृति को फूंक कर राख कर दिया।
क्रोध एक ऐसी चिंगारी है, जो यदि प्रारंभिक स्थिति में ही न बुझा दी जाए, न शांत कर दी जाए तो एक ऐसी अग्नि का रूप धारण कर लेती है, जिसमें झुलसने और उस पर पश्चाताप करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है।
है ना आश्चर्य की बात कि जो क्रोध हमारे साथ रहता हुआ हमारे ही शरीर और मन को विकृत करता है, जिससे हम तरह-तरह की बीमारियों से घिर जाते हैं, उसी क्रोध के बारे में हम अनजान हैं। परमात्मा पिता ने हमें समझाया, तो हमें पता चला कि यह आत्मा का (मानव) का सबसे बड़ा शत्रु है। काम और क्रोध सीधे नरक के द्वार हैं। क्रोध की कोई सीमा नहीं है कि यह कहां तक और कब तक बढ़ेगा, परन्तु इसकी अंतिम स्थिति है हत्या या आत्महत्या।
शिव बाबा ने कहा है कि क्रोध के संकल्पों को विशेष अभ्यास से परिष्कृत किया जा सकता है। इतना ही नहीं, इसकी दिशा को भी बदला जा सकता है और मानव अपने जीवन को एक नई दिशा, निश्चित अनुशासन और व्यवस्था भी दे सकता है।
जब क्रोध आए तो उसे आता हुआ देखो, उसे होता हुआ देखो और यह भी देखो कि यह कैसे और कब आता है, बस 2-4 बार ऐसा करो, तो न जाने वह कहां गायब हो जाएगा। क्या चोर के लिए यह काफी नहीं है कि उसे यह पता चल जाए कि घर का बलवान मालिक जागा हुआ है और उसे देख रहा है।
गुस्सा हुए बिना, केवल गुस्से का दिखावा करें (Gussa hue bina, kewal gusse ka dikhawa karen)
एक कहानी पढ़ी थी – सर्पराज की भयंकरता की। अरे मैंने काटने के लिए मना किया था, फुफकारने के लिए तो नहीं। आत्मरक्षा के लिए फुफकारना जरूरी है। यदि आपने फुफकारना छोड़ दिया, तो ये दुनिया वाले जीने नहीं देंगे। आपको भी गुस्से का ड्रामा करने में किसी प्रकार की दिक्कत न होगी। क्रोध के बाह्य स्थूल लक्षणों को उबार कर आप इसका प्रदर्शन एक कुशल अभिनेता की तरह कर सकते हैं। आपका अभ्यास जितना अच्छा होगा, उतनी ही सफलता से यह अभिनय आप कर सकेंगे। इसी अभ्यास में जब एक्शन के साथ एक्सप्रेशन भी आपके हावभाव में आयेगा तो क्या मजाल है कि कोई इस बात का अंदाजा लगा सके कि आपका गुस्सा असली नहीं, नकली था। इसका प्रयोग घर में माता-पिता बच्चों के सुधार के लिए और विद्यालय में अध्यापक विद्यार्थियों के सुधार के लिए कर सकते हैं। इससे वे गुस्से से होने वाले नुकसानों से भी बच जाते हैं और अनुशासन भी बना लेते हैं।
क्रोध की इस ऊर्जा का सही दिशा में परिवर्तन करने का मतलब है कि हमने अपने व्यक्तित्व को प्रत्येक विपरीत स्थिति के खिलाफ तैयार कर लिया है। इतना ही नहीं, हमने अपने भीतर वह शक्ति संजो ली है, जिससे सभी विपरीत स्थितियां हमारे अनुकूल बन जाती हैं। क्रोध हमारा सेवक बनकर, जीवन को अशान्त नहीं, सुव्यवस्थित करता है। अब वह हमारे काम नहीं बिगाड़ता, बल्कि बिगड़े कामों को भी संवारता है। भविष्य में होने वाले नुकसानों की जानकारी भी वह हमें देता है। अब वह हमारा शत्रु नहीं, गुप्तचर हो जाता है।