ख़ुशी से संबंधित 3 गलत मान्यताएं और सच्चाई

हमारी सबसे बड़ी गलत धारणा यह है कि, हम अपने जीवन में जो कुछ भी धन संपत्ति आदि कमाते हैं वही हमारी सच्ची खुशी है।

आज दुनिया में बड़ी संख्या में लोग डिप्रेशन के शिकार हैं। यह हमारे लिए एक इशारे की तरह है कि हम कुछ समय के लिए रुककर स्वयं से पूछें कि, क्या हम अपनी मेंटल हेल्थ के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं, जोकि हमारी इमोशनल हेल्थ से डायरेक्टली जुड़ा हुआ है। अपने जीवन में तनाव, क्रोध, भय, हर्ट, ईर्ष्या का अनुभव करने से हमारी इमोशनल हेल्थ खराब होती है। दरअसल, हम खुशी की तलाश में इन नकारात्मक भावनाओं में फंस जाते हैं, जैसे कि हममें से ज्यादातर लोग बचपन से ही अपने सपनों के पीछे भागना शुरू कर देते हैं, क्योंकि हमारी सबसे बड़ी गलत धारणा यह है कि, हम अपने जीवन में जो कुछ भी धन संपत्ति आदि कमाते हैं वही हमारी सच्ची खुशी है। इसलिए, हम जीवन की उपलब्धियों, संपत्ति और रिश्तों में खुशी तलाशते रहते हैं। तो आइए, ख़ुशी संबंधी मान्यताओं पर एक नज़र डालें –

मान्यता 1: उपलब्धियाँ मुझे खुशियां देती हैं।

मान लीजिए कि, एक कर्मचारी होने के नाते मैं यह समझता हूं कि, मुझे मैनेजर के पद पर प्रमोट होने के लिए दो साल लगते हैं, और मैं ईमानदारी से इसके लिए काम करता हूं। लेकिन मेरी खुद की यह सोच मुझे अक्सर याद दिलाती है कि – मुझे मैनेजर का पद मिलने पर ही खुशी होगी। इसलिए, मैं आज खुद को खुश नहीं रख पाता नाही अगले दो साल तक खुश रहने के बारे में सोचूंगा जब तक मुझे ये प्रमोशन नहीं मिल जाता। और अगर किसी दिन मुझे यह महसूस होता है कि, मेरी किसी अक्षमता, टीम के सदस्यों के साथ समस्या या फिर मैनेजमेंट के फैसले के चलते मेरा प्रमोशन नहीं हो सकता, तो मैं तनाव, क्रोध और चिंता से घिर जाता हूं – क्योंकि मेरा मानना है कि, ये न केवल मेरे करियर को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि मेरी खुशी भी छीन रहे हैं। इसके लिए मैं कभी-कभी अनुचित तरीकों का उपयोग भी कर सकता हूं। और अंततः नेगेटिविटी क्रिएट करता हूं, वही रेडिएट करता हूं, और साथ ही दो वर्षों के अन्तराल तक दर्द और हर्ट में रहता हूं। और मान लें कि, यदि इस अवस्था में मैं मैनेजर बन भी जाऊं तो, क्या मैं खुश रह सकूंगा? इसके अतिरिक्त अब मेरी खुशी अगले प्रमोशन पर आधारित हो जाएगी और इसी तरह से ये चक्र यूंही चलता रहेगा…

सच्चाई: हमें खुशियां केवल हमारी उपलब्धियों से नहीं मिल सकतीं और हमें इसे अपने लक्ष्य तक सीमित नहीं रखना है कि, जब तक हमारा लक्ष्य प्राप्त न हो जाए। बल्कि अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते हुए, हर कर्म को खुश होकर करने में है।

मान्यता 2: मैं खुशियां खरीद सकता हूं।

मान लीजिए हमारा मानना है कि, अपनी ड्रीम कार खरीदने से मुझे खुशी मिलती है। मैं सबसे महंगी कार खरीदकर उसका मालिक बन सकता हूं। लेकिन हमने अपने लिए सिर्फ एक आरामदायक चीज खरीदी है। लेकिन अगर इसी ड्रीम कार में एक लंबी यात्रा के दौरान, मुझे एक फ़ोन कॉल के ज़रिए कोई अप्रिय समाचार मिलता है जो मेरी ख़ुशी को ख़त्म कर देता है, तो अगर मेरी कार ही ख़ुशी दे रही होती, तो उस कॉल के बावजूद भी मेरी ख़ुशी बनी रहती। कॉल के बाद भी मेरी महंगी कार आराम देती रहती है। लेकिन यहां ये जानना जरूरी है कि, खुशी एक भावनात्मक आराम की महसूसता है नाकि कोई शारीरिक आराम देने वाली चीज जो किसी फोन कॉल के बाद दर्द में बदल जाए। अब यह समझते हैं कि, कार खरीदने पर हमें खुशी क्यों महसूस होती है? क्योंकि जब हम यह थॉट क्रिएट करते हैं कि – मैंने अपनी ड्रीम कार खरीदी, तो यह खुशी की भावना उत्पन्न करती है। परंतु इसके लिए, एक सकारात्मक विचार उत्पन्न करने के लिए, हमने एक वस्तु (कार) को उद्दीपन (स्टीमुलस)के रूप में प्रयोग किया।

सच्चाई: हमें चीज़ों में खुशी को नहीं तलाशना है। हर भौतिक चीज़ शारीरिक आराम देने के लिए बनाई गई है जबकि खुशी एक भावनात्मक आराम है।

मान्यता 3: परिवार और दोस्त मुझे ख़ुशी देते हैं।

आजकल हमारी स्वीकारने की शक्ति और उम्मीदों के बीच झूलते हुए हमारे रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। हम हमेशा इस बात पर फोकस करते हैं कि हमें रिश्तों से क्या प्राप्तियां हो रही हैं बजाय इसके कि हम रिश्तों में क्या दे रहे हैं। एक दूसरे से हमारी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं। हम लोगों को तभी स्वीकार करते हैं जब वे हमारे अनुसार बोलते हैं या फिर व्यवहार करते हैं। लेकिन क्या हम जानते हैं कि, यदि मेरी ख़ुशी का आधार, दूसरों के द्वारा मेरी बात मानने के ऊपर है, तो वो कभी भी स्थाई नहीं रह सकती। जैसे ही कोई व्यक्ति एक बार मेरी बात सुनता है, तो मैं हर बार के लिए उससे वही उम्मीद रखता हूं। तो फिर यह ख़ुशी मुझसे दूर हो सकती है, और ये दुबारा तभी महसूस होती है जब वह व्यक्ति फिर से हमारी बात मानने लगते हैं। वरना मैं परेशान हो जाता हूं। सभी लोगों के पास सही और ग़लत की अपनी-अपनी परिभाषाएं हैं, इसलिए लोगों से उम्मीद रखने से हमारे रिश्ते ख़राब होंगे और हमारी ख़ुशी को कम करेंगे।

सच्चाई: कोई भी हमें खुश या दुखी नहीं कर सकता। ख़ुशी हमारी आंतरिक भावना है, और यह हमारे रिश्तों की गुणवत्ता की परवाह किए बिना हमारी ही आंतरिक रचना है।