खुशी का कवच

किसी सुंदर क्षण का स्मरण करो जिसे आपने अतीत में अनुभव किया हो -- कोई भी सुंदर क्षण, उनमें से सर्वोत्तम क्षण चुनो।

पहला चरण:

पहले सात दिन तक पहला चरण: बिस्तर पर लेटकर या बैठकर, बत्ती बुझाओ और अंधेरे में रहो।

दूसरा चरण:

किसी सुंदर क्षण का स्मरण करो जिसे आपने अतीत में अनुभव किया हो — कोई भी सुंदर क्षण, उनमें से सर्वोत्तम क्षण चुनो। हो सकता है वह बिलकुल साधारण हो, क्योंकि कभी कभी असाधारण घटनाएं निहायत साधारण तल पर घटती हैं।

तुम सिर्फ खाली बैठे हो, कुछ न करते हुए, बारिश छत पर गिर रही है, उसकी खुशबू, उसकी ध्वनि आपके आसपास होती है, और कुछ कौंध सी होती है। तुम पवित्र क्षण में होते हो। या किसी दिन रास्ते पर जाते हुए पेड़ों के पीछे से अचानक तुम्हारे ऊपर सूरज की रोशनी उतरती है…और एक कौंध! कुछ खुल जाता है। पल भर के लिए तुम अलग ही दुनिया में प्रवेश करते हो।

एक बार उस क्षण को चुन लेने के बाद उसे सात दिन तक जारी रखो। अपनी आंखें बंद करो और उसे  पुन: जीयो। उसके तफ़सील में जाओ। छत पर बारिश गिर रही है, टप, टप… वह आवाज… वह सुगंध… उस पल की गुणवत्ता…कोई पक्षी गा रहा है…कहीं कुत्ता भौंक रहा है…कोई प्लेट गिर गई और उसकी आवाज। इन सभी बारीकियों में जाओ, सभी पहलुओं से, सभी आयामों से, सभी इंद्रियों द्वारा। हर रात तुम पाओगे कि तुम गहरे तफ़सील में उतर रहे हो। ऐसे तफ़सील जिन्हें तुम असली घटना में चूक गए होओगे लेकिन तुम्हारे मन ने उसे मुद्रित किया है। तुम उस पल को भले ही चूक जाओ, तुम्हारा मन उसे दर्ज करता रहता है। तुम्हें ऐसे सूक्ष्म पहलू महसूस होंगे जो तुम्हें पता नहीं थे कि तुमने अनुभव किए थे। जब तुम्हारी चेतना उस पल पर केंद्रित होगी तब वह क्षण पुनश्च उभरेगा। तुम्हें नई बातों का अनुभव होगा। अचानक तुम्हें बोध होगा कि वे वहां पर थीं लेकिन उस पल में तुम उनसे चूक गए थे। लेकिन मन उन सब बातों को दर्ज करता है। वह बेहद भरोसेमंद नौकर है, अत्यधिक सक्षम।

सातवें दिन तक तुम उसे इतना साफ देख पाओगे कि तुम्हें लगेगा कि तुमने कोई भी असली क्षण इतनी सुस्पष्टता से नहीं देखा है जितना कि इसे।

तीसरा चरण: खुशी का मौसम

सात दिन के बाद वही बात करो लेकिन एक और बात जोड़ो: आठवें दिन अपने आसपास के स्थान को  महसूस करो, ऐसा अनुभव करो कि तीन फीट की दूरी तक यह वातावारण आपको घेरे हुए है, उस बीते क्षण का आभामण्डल अनुभव करो। चौदहवें दिन तक तुम लगभग बिलकुल अलग ही दुनिया में रहोगे बेशक इसका होश भी रहेगा कि इन तीन फीटों के बाहर एक भिन्न समय और भिन्न आयाम मौजूद है।

चौथा चरण: उस क्षण को जीयो

फिर तीसरे चरण में कुछ और जोड़ना होगा। उस क्षण को जीयो, उससे घिरे रहो, और अब काल्पनिक ऐन्टी स्पेस, विपरीत स्थान निर्मित करो। जैसे मान लो तुम्हें बहुत अच्छा लग रहा है, तीन फीट तक तुम इस खुशहाली से, दिव्यता से घिरे हो, अब ऐसी घटना के बारे में सोचो कि किसी ने तुम्हारा अपमान कर दिया और वह अपमान केवल उस सीमा तक ही आता है। एक बागुड़ है और उसके भीतर अपमान प्रवेश नहीं कर सकता। वह तीर की भांति आता है और वहां गिर पड़ता है। या कोई उदास घटना को याद करो, तुम्हें पीड़ा हुई है लेकिन वह पीड़ा तुम्हारे आसपास के कांच की दीवार तक ही पहुंचती है और वहीं पर गिर जाती है। तुम तक पहुंचती ही नहीं। तुम देखोगे कि यदि पहले दो सप्ताह सही गए हैं तो तीसरे सप्ताह सब कुछ तीन फीट की सीमा तक आता है और तुम्हारे भीतर कुछ भी प्रवेश नहीं करता।

पांचवां चरण : आभामण्डल को सर्वत्र लिये चलो

फिर चौथे सप्ताह से उस आभामण्डल को अपने पास रखो–बाजार जाते हुए, लोगों से बात करते हुए सतत स्मरण रखो। तुम बहुत ही रोमांचित होओगे। तुम दुनिया में घूमोगे फिरोगे लेकिन तुम्हारी अपनी ही एक दुनिया होगी, तुम्हारी निजी दुनिया, इसे निरंतर ख्याल रखो।

इससे तुम वर्तमान में जी सकोगे क्योंकि वस्तुत: तुम सतत हजारों हजार बातों से प्रभावित हो रहे हो और वे तुम्हारा ध्यान खींच लेते हैं। अगर तुम्हारे आसपास सुरक्षात्मक आभामण्डल नहीं होगा तो तुम कमजोर पड़ जाओगे। कोई कुत्ता भौंकता है, अचानक मन उस दिशा में चला गया। तुम्हारी स्मृति में कुत्ता आ जाता है। अब तुम्हारी स्मृति में अतीत के बहुत से कुत्ते बैठे हुए हैं। तुम्हारे दोस्त के पास कुत्ता है, अब तुम कुत्ते से हटकर अपने दोस्त के पास चले जाते हो, फिर दोस्त की बहन याद आती है जिसके प्रेम में तुम गिरे थे।

अब सारी बकवास शुरू होती है। इस कुत्ते का भौंकना वर्तमान में था लेकिन वह तुम्हें कहीं अतीत में ले गया। यह तुम्हें भविष्य में भी ले जा सकता है, कुछ कहा नहीं जा सकता। कोई भी चीज कहीं भी ले जा सकती है। मामला बहुत जटिल है। इसलिए तुम्हें एक आसपास सुरक्षा आभामंडल चाहिए। कुत्ता भौंकता रहे लेकिन तुम अपने आपमें रहो, स्थिर, शांत, मौन, केंद्रित।

छठा चरण : आभामण्डल का त्याग

इस आभामण्डल को कुछ दिन या कुछ महीने तक सम्हालो। जब तुम देखोगे कि अब इसकी जरूरत नहीं है तब इसे छोड़ दो। एक बार तुम जान लो कि यहां और अभी कैसे रहा जाए, एक बार तुम उसकी सुंदरता का आनंद ले लो, उसकी अपरिसीम मस्ती, तो फिर इस आभामण्डल को छोड़ दो।

ओशो: बी रिआलिस्टिक, प्लान फॉर ए मिरैकल से उद्घृत।

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।

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