खुशी एक यात्रा है मंज़िल नहीं

खुशी एक यात्रा है, मंज़िल नहीं। इसका अर्थ यह है कि प्रसन्नता केवल लक्ष्य प्राप्ति में नहीं, बल्कि उसे पाने की पूरी यात्रा में भी निहित है।

हम सभी के जीवन में, हर समय, विभिन्न प्रकार के दीर्घकालिक या अल्पकालिक लक्ष्य होते हैं — जैसे: व्यक्तिगत, व्यावसायिक, वित्तीय, सामाजिक, रिश्तों से जुड़े हुए, शारीरिक फिटनेस, स्वास्थ्य और अंततः आध्यात्मिक उन्नति से संबंधित लक्ष्य। कई बार हमें स्वयं भी स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं होता, परंतु सच यह है कि हम हर समय किसी न किसी लक्ष्य की ओर अग्रसर रहते हैं — चाहे वह कोई बड़ा उद्देश्य हो या दैनिक जीवन के छोटे-छोटे कार्य।

इस सोच के साथ, हम जो भी कर्म करते हैं, उसका मूल उद्देश्य अपने निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करना ही होता है। हमारे ये सभी कार्य अनेक अपेक्षाओं से जुड़े होते हैं, जो बेहतर परिणाम प्राप्त करने की अपेक्षा रखते हैं। लेकिन ये अपेक्षित परिणाम कभी पूर्ण रूप से प्राप्त होते हैं और कभी नहीं। जब जीवन के लक्ष्यों में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते, तो हमारे भीतर चिंता, असंतोष और तनाव उत्पन्न होने लगता है। कई बार ऐसा भी होता है कि, भले ही हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन उसे प्राप्त करने की यात्रा अत्यधिक तनावपूर्ण और थकान भरी हो जाती है। इसके विपरीत, वे लक्ष्य जिनमें अपेक्षाएं कम होती हैं या नहीं होतीं, उनकी यात्रा अपेक्षाकृत शांत और सुखद होती है — भले ही कुछ लोग इस पर असहमति व्यक्त करें। जीवन में चिंता और तनाव न केवल हमारी आध्यात्मिक और भावनात्मक प्रकृति को प्रभावित करते हैं, बल्कि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य और रिश्तों को भी क्षति पहुंचाते हैं, जिससे लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग और भी अधिक कठिन और थकाऊ हो जाता है। लक्ष्य-प्रेरित होना और अपने सपनों की पूर्ति हेतु कर्मशील रहना गलत नहीं है। परंतु, यह आवश्यक है कि हम डेडलाइन या अपेक्षित समयसीमा की चिंता किए बिना, सहजता और संतुलन के साथ अपने कार्य करते रहें। यदि हम समय और परिणामों की अत्यधिक चेतना में फंस जाते हैं, तो हम न केवल आज का आनंद खो बैठते हैं, बल्कि जीवन की सहजता भी खोने लगते हैं। लक्ष्य की प्राप्ति पर आनंदित होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि हमारी खुशी पूरी तरह उपलब्धियों पर निर्भर है, तो फिर हमें खुशी के लिए हमेशा किसी भविष्य की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। सच्ची खुशी का क्षण आज है, अभी है — भविष्य में नहीं। आध्यात्मिक ज्ञान कहता है — खुशी एक यात्रा है, मंज़िल नहीं। इसका अर्थ यह है कि प्रसन्नता केवल लक्ष्य प्राप्ति में नहीं, बल्कि उसे पाने की पूरी यात्रा में भी निहित है। साथ ही यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि — एक हल्का, साक्षी और संतुलित मन, एक चिंतित मन की तुलना में, अधिक सहजता से सकारात्मक परिस्थितियों को आकर्षित करता है और लक्ष्य तक पहुंचने का सेतु बनता है।