जन्मत: जंगली

इधर कुछ दिनों से मैं बहुत उदास रहने लगा हूं - अकारण।

तुम पकड़ रहे हो, यही सारी समस्या हो सकती है। तुम जीवन पर विश्वास नहीं करते। भीतर कहीं गहरे में जीवन के प्रति गहरा अविश्वास है, मानो तुम अगर नियंत्रण नहीं कर पाते, तब चीजें गलत हो जाएंगी। अगर तुम उन पर नियंत्रण कर लेते हो केवल तब ही चीजें सही होने लगती हैं, मानो तुम्हें हमेशा सारी चीजों को प्रयत्न पूर्वक संभालना होगा। शायद इन सबमें तुम्हारे बचपन की किसी कंडीशनिंग ने मदद की हो। उससे काफी नुकसान हो चुका है, क्योंकि जब कोई व्यक्ति प्रत्येक चीज को नियंत्रित करने लगता है, तब वह जीवन को बहुत कम जीता है।

जीवन एक ऐसी विशाल घटना है, उस पर नियंत्रण असंभव है। अगर तुम सच में ही उस पर नियंत्रण करना चाहते हो, तो तुम्हें उसको बिल्कुल सीमित करना होगा; केवल तब ही तुम उस पर नियंत्रण कर सकते हो। अन्यथा जीवन तो निरंकुश है।

यह इतना ही निरकुंश है, जितने बादल और वर्षा और यह हवा और ये पेड़ और यह आकाश। वह निरकुंश है और तुमने उसके इस निरकुंश भाग को पूरी तरह से काट दिया है। तुम उससे भयभीत हो, इसी कारण तुम इतना नहीं खिल पाते जितने अधिक तुम खिल सकते हो, यह सब तुम्हारी उदासी को भी निर्मित कर रहा है। उदासी और कुछ भी नही, केवल वही उर्जा है, जो प्रसन्नता हो सकती थी।

जब तुम स्वयं की प्रसन्नता को खिलता हुआ नहीं देख पाते, तब तुम उदास हो जाते हो। जब कभी तुम किसी को प्रसन्न देखते हो, तब तुम उदास हो जाते हो कि तुम्हारे साथ ऐसा क्यों नहीं घट रहा? तुम्हारे साथ भी ऐसा घट सकता है, इसमें कोई समस्या नहीं है। तुम्हें केवल अपने अतीत की कंडीशनिंग से मुक्त होना है। तुम्हें केवल लीक से बाहर आना है, जिससे यह घटित हुआ है, इसलिए तुम्हें अपने को खोलने का थोड़ा सा प्रयास करना है, चाहे शुरुआत में यह थोड़ा पीड़ादायक लगे, शुरुआत में यह पीड़ादायक लगेगा ही।

रात में एक ध्यान करना शुरु करो, आज रात से ही। ऐसा महसूस करो कि तुम कोई मनुष्य नहीं, बल्कि कोई पशु हो, तुम अपने पसंद के किसी भी पशु को चुन सकते हो। अगर तुम्हें बिल्ली पसंद हो, तो सुंदर है। अगर तुम्हे कुत्ता पसंद हो, तो भी सुंदर है या कोई बाघ, नर या मादा, जो भी तुम चाहो। किसी को भी चुनो, पर उस पर कायम रहो। वैसे ही पशु बन जाओ। अपने कमरे में हाथ और पैरों पर चलो, बिल्कुल वही जानवर हो जाओ।

15 मिनटों के लिए इस कल्पना का जितना आनंद ले सकते हो, लो। इसका आनंद लो और उस पर कोई नियंत्रण मत करो, क्योंकि कोई कुत्ता नियंत्रण नहीं कर सकता। कुत्ता-मतलब; संपूर्ण स्वतंत्रता, इसलिए इस क्षण में जो भी हो, उसे होने दो। इस क्षण में मानवीय गुण-नियंत्रण को इसमें मत आने दो। इसे लगातार 7 दिनों तक करो। इससे मदद मिलेगी।

अभी तुम्हें थोड़ी अधिक पाशविक ऊर्जा की ज़रुरत है। तुम बहुत अधिक सुसभ्य और परिष्कृत हो और यही सब तुम्हें पंगु बना रहा है।

बहुत अधिक सभ्यता चीजों को पंगु बनाती है, इसकी छोटी सी मात्रा ही उचित है, लेकिन इसकी बहुत अधिक मात्रा खतरनाक है। प्रत्येक को हमेशा ही पशु होने में भी सक्षम होना चाहिए।

तुम्हारी पशुता को मुक्त होना है, यही समस्या है, जैसा कि मुझे लगता है। अगर तुम अगर थोड़ा जंगली होना सीख सको, तो तुम्हारी सारी समस्याएं विलीन हो जाएंगी। इसलिए आज रात से ही आरंभ करो और इसका आनंद लो।

ओशो, दि पैशन फार दि इम्पासिबुल से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।