जहाँ भी मैं जाता हूँ, लोग मुझे यही कहते हैं कि हम जीवन भर ईमानदार रहे, मेहनत करते रहे, हमने किसी को दुःख नहीं दिया, किसी का शोषण नहीं किया, जितना हो सका दूसरों का भला किया, फिर भी हमें कष्ट भोगना पड़ा। इसका क्या कारण है? क्या यह हो सकता है कि प्रभु न्यायशील नहीं हैं?
कुछ लोगों का विश्वास है कि कुछ रूढ़ियाँ, कुछ रिवाज होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। प्रभु के एहसानों के बदले उन्हें करना ज़रूरी है। अगर वे उन्हें नहीं करेंगे तो उन्हें, उनके प्रियजनों को प्रभु दंड देंगे। जब मैं कैनडा में ‘ओटावा’ नामक शहर में गया, वहाँ मुझे एक महिला मिली। उसने बताया कि प्रतिदिन दोपहर के भोजन से पहले वह श्रीमद्भगवदगीता का दूसरा, बारहवाँ तथा अठारहवाँ अध्याय पढ़ती है। प्रतिमास सत्यनारायण का व्रत करती है। परन्तु एक पूरा महीना वह किसी न किसी कारण, ये दोनों ही कार्य नहीं कर सकी। जब वह सत्यनारायण का व्रत न कर सकी तो अगले ही दिन उसके पति जो एकदम स्वस्थ थे, उन्हें लकवे का ऐसा झटका लगा कि वे अपंग हो गए।
उस महिला ने मुझ से पूछा: क्या मेरे व्रत और पाठ न करने से यह सब हुआ है? क्या प्रभु इतने कठोर हैं? क्या वे न्यायशील हैं?
एक विद्वान रब्बी ने एक पुस्तक लिखी है, “जब भले लोगों के साथ बुरी घटनाएँ घटती हैं।” जिसमें उसने बताया है कि कैसे अचानक ही उसका तीन वर्षीय बेटा ‘प्रोजेरिया’ नामक रोग से ग्रस्त हो गया। उसने और उसकी पत्नी ने तो कभी इसका नाम भी नहीं सुना था। हैरान परेशान उन दोनों ने डॉक्टर से पूछा, ये प्रोजेरिया क्या होता है?
डॉक्टर ने रोग के प्रभाव बताते हुए कहा कि लड़का तीन फुट से अधिक लम्बा नहीं हो पाएगा, उसके सिर पर बाल नहीं आएँगे और जल्द ही वह बूढ़ा लगेगा। बचपन में ही वह बूढ़ों जैसा दिखेगा।
दुखी रब्बी सोचता है, “एक भोले-भाले बच्चे को भगवान ने ऐसे भयानक रोग का शिकार क्यों बनने दिया?”, उसने कहा “छोटे से बच्चे ने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, किसी का बुरा नहीं किया फिर भी उसे ऐसी शारीरिक और मानसिक यातना क्यों मिल रही है?”
अपनी पुस्तक में रब्बी ने इसी से मिलती-जुलती अनेक अन्य घटनाएँ बतलाई हैं और चौंकाने वाले निष्कर्ष दिए हैं:
जैसा हम समझते हैं कि भगवान सब कुछ कर सकते हैं, वे सर्वशक्तिमान हैं, ऐसा है नहीं। उनके पास सीमित शक्ति है। अपनी सीमित शक्तियों से ही, वे अपनी सूझ-बूझ का प्रयोग कर सकते हैं। कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ वे लाचार हैं। कई शक्तियाँ ऐसी हैं, जिन पर उनका नियंत्रण नहीं है। जब वे शक्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं, तब प्रभु के पास आपकी मदद करने का कोई उपाय नहीं रह जाता। उनकी शक्ति सीमित है।
अपनी पुस्तक में विद्वान रब्बी इस निष्कर्ष पर पहुँचे एक मैं हूँ, जिसने अपना सारा जीवन प्रभु की सेवा में लगा दिया। फिर मेरे बच्चे को ऐसी भयानक यातना क्यों मिली? इतने उदाहरणों और दुर्घटनाओं से स्पष्ट है कि इन पर प्रभु का कोई नियंत्रण नहीं है। जब व्यक्ति के सामने ऐसी यातनाएँ आती हैं तो वे मूक दर्शक की तरह देखते रहते हैं क्योंकि हस्तक्षेप का सामर्थ्य उनमें नहीं है।
अतः हम उसी प्रश्न पर लौट आते हैं, जो हमें बार-बार परेशान करता है कि क्या प्रभु न्यायशील हैे? क्या वे न्यायशील हैं?
क्रमशः