चूंकि यह रहस्य नहीं समझा जा सका, लोगों ने बहुत प्रारंभ से ही एक ईश्वर की कल्पना करनी शुरू कर दी। उनकी ईश्वर की कल्पना का कारण है उनकी मनोवैज्ञानिक कठिनाई, यह स्वीकारना मुश्किल पड़ता है कि यह विशाल ब्रह्मांड अपने आप, स्वतःस्फूर्त चल रहा है बिना किसी दुर्घटना के, कोई ट्रैफिक पुलिस वाला तक नहीं है और अरबों-खरबों तारे हैं…।
संसार की करीब-करीब समस्त जातियों ने ईश्वर की कल्पना पैदा की। यह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक समस्या है। न इसका धर्म से कोई नाता है और न ही दर्शन शास्त्र से कोई रिश्ता है।
यह बिल्कुल समझ से परे है, अकल्पनीय है कि बिना स्रष्टा के यह विश्व कैसे अस्तित्व में आया और इतना बड़ा ब्रह्मांड कैसे बिना किसी नियंता के चल रहा है? लोग अपनी तर्क क्षमता और कल्पना शक्ति को इतनी दूर तक न खींच सके, तो उन्होंने ईजाद कर ली… केवल अपने को सांत्वना देने के लिए कि चिंता की कोई बात नहीं है; वर्ना रात की नींद तक हराम हो जाती। करोड़ों आकाशगंगाएं और ग्रह-नक्षत्र घूम रहे हैं, कौन जाने रात-बिरात कहां वे आपस में टकरा जाएं! कोई उनकी देखभाल नहीं कर रहा, कोई पुलिस वाला नहीं है, न कोई अदालत है न कानून..।
लेकिन, आश्चर्य कि सभी चीज़ें इतने बढ़िया ढंग से चल रही हैं। मौसम बदलता है और बादल वर्षा करने आ जाते हैं। ऋतु बदलती है और नई कोंपलें और नई कलियां…और यह अनादि काल से चला आ रहा है। न कोई हिसाब-किताब रखता है, न कोई सूरज से कहता है कि समय हो गया। कोई अलार्म घड़ी नहीं है, जो ठीक सुबह बज उठे और सूर्य से कहे कि “चलो बाहर निकलो अपने कंबल के, अब उदय हो जाओ।” सब बिल्कुल ठीक-ठाक चल रहा है।
वस्तुतः मेरा ईश्वर को इनकार करना भी उसी तर्क पर आधारित है। मैं कहता हूं ईश्वर नहीं है क्योंकि कोई ईश्वर इस विशाल ब्रह्मांड का संचालन नहीं कर सकता। या तो यह आंतरिक रूप से स्वस्फूर्त है… बाहर से इसकी व्यवस्था नहीं हो सकती। जब तक कोई आंतरिक तारतम्य, कोई अंतर्संगति, एक जीवंत देह की तरह स्वसंचालित भीतरी एकता न हो; कोई बाह्य नियंता अनादि काल से अनंतकाल तक इसकी व्यवस्था नहीं सम्हाल सकता। वह बोर हो जाएगा और ऊबकर अपने को गोली मार लेगा…आखिर इस सारे झमेले का मतलब क्या है? कोई उसे तनख्वाह तो देता नहीं है। किसी को उसका पता तक तो मालूम नहीं है।
मेरी अपनी समझ यह है कि इस अस्तित्व की व्यवस्था बाहर से नहीं की जा सकती। यह ज्यादा अकल्पनीय है। क्यों कोई ईश्वर यह कष्ट उठाएगा और कब तक यह व्यवस्था करता रहेगा? कभी वह थक जाएगा और कभी छुट्टी भी मनाएगा। अवकाश के दिनों में क्या होगा? जब वह थक गया है या सो रहा है, तब क्या होगा? गुलाब खिलने बंद हो जाएंगे, सितारे गलत मार्गों पर भ्रमण करने लगेंगे, हो सकता है सूर्य पश्चिम से ऊगने लगे सिर्फ बदलाव के लिए, एक दिन के लिए ही सही-कौन उसे रोकेगा?
नहीं, बाहर से यह असंभव है। ईश्वर की धारणा पूर्णतः असंगत और व्यर्थ है। कोई बाहर से अस्तित्व की संचालन-व्यवस्था नहीं कर सकता। केवल एकमात्र संभावना है- भीतर से। अस्तित्व एक जीवंत समग्रता है।
ओशो, द इनविटेशन, सत्र 2 से उद्धृत
ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।