होशपूर्वक खाना और पीना

तंत्र कहता है कि जितना स्वाद ले सको उतना स्वाद लो। ज्यादा से ज्यादा संवेदनशील बनो, जीवंत बनो।

भोजन करते हुए या पानी पीते हुए भोजन या पानी का स्वाद ही बन जाओ, और उससे भर जाओ। हम खाते रहते हैं, हम खाए बगैर नहीं रह सकते। लेकिन हम बहुत बेहोशी में भोजन करते हैं-यंत्रवत। और अगर स्वाद न लिया जाए तो तुम सिर्फ पेट को भर रहे हो। तो धीरे-धीरे भोजन करो, स्वाद लेकर करो और स्वाद के प्रति सजग रहो। और स्वाद के प्रति सजग होने के लिए धीरे-धीरे भोजन करना बहुत जरूरी है।

तुम भोजन को बस निगलते मत जाओ। आहिस्ते-आहिस्ते उसका स्वाद लो और स्वाद ही बन जाओ। जब तुम मिठास अनुभव करो तो मिठास ही बन जाओ। और तब वह मिठास सिर्फ मुंह में नहीं, सिर्फ जीभ में नहीं, पूरे शरीर में अनुभव की जा सकती है। वह सचमुच पूरे शरीर पर फैल जाएगी। तुम्हें लगेगा कि मिठास-या कोई भी चीज-लहर की तरह फैलती जा रही है। इसलिए तुम जो कुछ खाओ, उसे स्वाद लेकर खाओ और स्वाद ही बन जाओ।

तंत्र कहता है कि जितना स्वाद ले सको उतना स्वाद लो। ज्यादा से ज्यादा संवेदनशील बनो, जीवंत बनो। इतना ही नहीं कि संवेदनशील बनो, स्वाद ही बन जाओ। अस्वाद से तुम्हारी इंद्रियां मर जाएंगी, उनकी संवेदनशीलता जाती रहेगी। और संवेदनशीलता के मिटने से तुम अपने शरीर को, अपने भावों को अनुभव करने में असमर्थ हो जाओगे। और तब फिर तुम अपने सिर में केंद्रित होकर रह जाओगे।

पानी पीते हुए पानी का ठंडापन अनुभव करो। आंखें बंद कर लो, धीरे-धीरे पानी पीओ और उसका स्वाद लो। पानी की शीतलता को महसूस करो और महसूस करो कि तुम शीतलता ही बन गए हो। जब तुम पानी पीते हो तो पानी की शीतलता तुममें प्रवेश करती है, तुम्हारा अंग बन जाती है। तुम्हारा मुंह शीतलता को छूता है, तुम्हारी जीभ उसे छूती है और ऐसे वह तुम में प्रविष्ट हो जाती है। उसे तुम्हारे पूरे शरीर में प्रविष्ट होने दो। उसकी लहरों को फैलने दो और तुम अपने पूरे शरीर में यह शीतलता महसूस करोगे। इस भांति तुम्हारी संवेदनशीलता बढ़ेगी, विकसित होगी और तुम ज्यादा जीवंत, ज्यादा भरे-पूरे हो जाओगे।

ओशो: तंत्र-सूत्र से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।

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