प्राचीनकाल की बात है, एक गुरुकुल में उस देश के राजकुमार के साथ-साथ अन्य भी कई शिष्य पढ़ाई पढ़ रहे थे। एक दिन आश्रम के गुरु जी ने सभी शिष्यों को बुलाकर पूछा कि अभी तक आप लोगों ने क्या-क्या सीखा है? शिष्यों ने अपना सीखा हुआ गुरु जी के सामने प्रकट कर दिया। गुरु जी खुश हो गए। अंत में गुरु जी ने राजकुमार से पूछा कि आपने क्या सीखा है? तब राजकुमार ने नम्रता से उत्तर दिया कि मैंने तो अभी तक केवल एक ही वाक्य सीखा है।
राजकुमार की यह बात सुनकर के गुरु जी को थोड़ा गुस्सा आ गया और उन्होंने फिर पूछा कि इतने दिनों में क्या तुमने केवल एक ही वाक्य सीखा है? राजकुमार ने उत्तर दिया कि अब तो मैंने दूसरा वाक्य भी सीख लिया है गुरु जी। गुरु जी ने गुस्से में आकर राजकुमार को दो-तीन छड़ी मारी लेकिन राजकुमार मुस्कुराता रहा। तब गुरु जी सोचने लगे कि राजकुमार भविष्य में महाराजा बनकर मुझपर राज्य करेगा इसलिए यह चुपचाप हंसते हुए खड़ा हुआ है। गुरु जी ने राजकुमार के हाथ से किताब ले करके पढ़ना चालू किया। उसमें पहला वाक्य था, अपनी बुद्धि को गुस्से के हवाले न करके, शांति से रहना है और दूसरा वाक्य था, सच्ची बातें ही करनी है।
गुरु जी समझ गए कि राजकुमार ने पाठ केवल पढ़े नहीं हैं लेकिन उन को जीवन में उतारा भी है। इसके बाद गुरु जी ने राजकुमार को गले से लगा लिया और उनकी आंखों से प्रेम के आंसू बहने लगे।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जैसे एक बार तीर को हाथ से छोड़ने के बाद वह वापस नहीं आ सकता, ऐसे ही गुस्से के वशीभूत होकर न कहने योग्य बात अगर हम कह देते हैं तो वह भी कभी लौट कर नहीं आती, भले ही हम कितना भी पश्चाताप करें।
आजकल परिवारों में सहनशक्ति के गुण की कमी के कारण आपसी बातचीत में गुस्सा अपना लेते हैं, बातों को बढ़ाकर शांति को खो देते हैं। शांति के गुण की कीमत न समझने के कारण परिवारों का सुखचैन खत्म हो रहा है, परिवार टुकड़े-टुकड़े हो रहे हैं। ऐसे में अगर एक व्यक्ति शांत रहकर चुप्पी साध लेता है तो दूसरे का भी गुस्सा धीरे-धीरे कम हो जाता है। कोई भी परिस्थिति आती है तो हम न मन को विचार करने का समय देते हैं, न बुद्धि को ठीक से निर्णय करने का मौका देते हैं और अच्छाई-बुराई का अंतर पहचाने बिना ही तुंरत गलत दिशा में चले जाते हैं। गुस्सा सिर्फ मन को ही नहीं, इतने बड़े शरीर को भी दुर्बल कर देता है इसलिए गुस्से की कमजोरी से किनारा कर अपने अंदर छिपे शांति के सदगुण को जागृत करने की आवश्यकता है, तभी परिवारों में और विश्व में शांति हो सकती है।