एक पत्र पुत्र के नाम

एक पत्र पुत्र के नाम

अब मेरे सजदे में प्रार्थना नहीं, शुकराना था, सिर्फ शुकराना। तुम्हारी मेहनत ने मेरी अर्जी ईश्वर के दरबार में स्वीकृत करवा दी। फाइनल लिस्ट में तुम्हारा नाम देख मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी।

प्रिय पुत्र,

आज मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत दिन था। आज तुम अपनी पहली तनख्वाह लाए। कितने खुश थे तुम। तुम्हारे चेहरे की चमक ने मेरे बूढ़े चेहरे की झुर्रियों में अनगिनत इंद्रधनुषी रंग भर डाले।

याद है, कितनी मन्नतें मांगी थी, आज के दिन के स्वागत के इंतजार में, कितनी रातें हम दोनों ने मिलकर जागते बिताई थीं, तुम रात-रात भर पढ़ते रहते और मैं बेबस-सी बस तुम्हें बार-बार देखने आ जाती थी। कितना झिल्लाते थे तुम! तुम्हारे ज्यादातर दोस्तों की नौकरियां लग गई थीं। लोग हमसे कटने लग गए थे। कहीं न कहीं शायद हम दोनों ही लोगों से कन्नी काटने लगे थे। याद है, सुरेश ने हमें अपनी शादी का कार्ड भी नहीं दिया था। मुझे मालूम है, वो तुम्हारी हंसी आंसुओं से भीगी पड़ी थी। जानती हूं, तुमने भी मेरी गीली आंखों की नमी अपने कोमल दिल पर ओस की बूंद की तरह महसूस की होगी। तुमने ज्यादा नमक वाले खाने पर चिल्लाना बंद कर दिया था और मैंने भी तुम्हें वॉट्स एप पर प्रेरणादायक मैसेज भेजने कम कर दिए थे। हमने एक-दूसरे से कभी इन सबका कारण नहीं पूछा। बस दुआओं, प्रर्थनाओं का पुल-सा हम दोनों के बीच बनता चला गया। शब्द कम हो गए और दुआएं बोलने लगी।

तुम्हारी परीक्षा का परिणाम आया और मैंने तुम्हें खुश होने की अनुमति भी नहीं दी। इससे पहले भी कई बार तुमने लिखित परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन कभी मेडिकल, कभी आरक्षण… कभी कुछ, कभी कुछ और कभी कुछ। अपनी मंजिल तक आते-आते कैसे तुम पीछे धकेल दिए जाते रहे।

तुम्हारी असफलताओं ने तुम्हें अनुशासित तरीके से पढ़ना सिखाया, खुद पर, सिर्फ खुद पर विश्वास करना सिखाया। तुम कमजोरी में भी मजबूत होते चले गए। प्रश्नों के उत्तरों के लिए अब तुम एक क्षण के लिए भी इधर-उधर नहीं ताकते थे। तुम्हें पता नहीं, तुम्हारे उस आत्मविश्वास पर मैं बहुत गर्व महसूस करती थी। तुम्हारा ज्ञान, जागरूकता चरम सीमा पर पहुंच रही थी। तुम एक ही वाक्य में गहरी बात कह डालते थे और मैं आवाक तुम्हें देखती रह जाती। कई बार तुम ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग करते कि मेरा सिर ऊंचा हो उठता कि मैंने वे कभी सुने भी नहीं थे। कितनी गहराई से तुमने हर विषय को पकड़ लिया था; अब तुम घड़ी देख 10 बजे रात को सोने लग गए थे, चेहरा उठान ले रहा था। कितनी सहजता से तुम केबीसी के बहुत-से प्रश्नों के उत्तर दे देते थे। रोमांचित अनुभव कर रही हू, आज उन यादों के समंदर में गोते लगाते हुए। तुम्हारी मेहनत, तुम्हारे चेहरे का रंग बदल रही थी और याद है, मैं भी सारा दिन जाप करने की बजाए मुस्कराने लगी थी। अब मेरे सजदे में प्रार्थना नहीं, शुकराना था, सिर्फ शुकराना। तुम्हारी मेहनत ने मेरी अर्जी ईश्वर के दरबार में स्वीकृत करवा दी। फाइनल लिस्ट में तुम्हारा नाम देख मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी। सीमाहीन प्रसन्नता, हल्का-फुल्का-सा महसूस कर रही थी। सब बेड़ियों से स्वतंत्र। उन्मुक्त आकाश में मेरा नन्हा-सा दिल ऊंची-ऊंची उड़ानें भर रहा था।

आज तुम्हारी तनख्वाह का चेक देख कर लगा कि अभी भी खुशी अधूरी है। आज भी तुम्हें नाचने-कूदने का अधिकार नहीं, बेटा। अभी तो तुम सीढ़ी चढ़ मैदान में पहुंचे हो। कितने विश्वास से सरकार ने तुम्हें इस मैदान की सफाई का काम सौंपा है। तुम्हारी वास्तविक परीक्षा तो अब आरंभ हुई है। अपने अनुशासन, ईमानदारी, समर्पण, तपस्या के सबक को भूलना नहीं। इन नैतिक मूल्यों की नींव को कमजोर मत होने देना। माया की कितनी भी आंधियां आएं, तुम अडिग रहना। कोई भी लालच तुम्हें विचलित न कर पाए। दिल लगाकर इस तनख्वाह के एक-एक पैसे की कीमत अदा करना। कर्म ऐसा हो कि तुम्हें, तुम्हारे बाद भी याद किया जाए। उदाहरण बनना मेरे बच्चे। कीचड़ में कमल की भांति अपनी खूबसूरती की महक फैलाते रहना। याद रखना, पैसे की चमक मृगतृष्णा है। नज़र तो आती है, लेकिन है नहीं। अपने उत्तरदायित्व ऐसे निभाना कि रात को हल्के दिल से, मीठी नींद सो सको। पैसा सिर्फ दवाइयों का प्रबंध करता है, स्वास्थ्य की नेमत संतुष्टि से आती है। तुम्हें किसी भी चमकीली चीज के पीछे भागना नहीं है। पीछे भागने वाला, पीछे ही रहता है। तुम जमीन पर सख्त कदम गड़ा कर, सतर्कता से दाएं-बाएं देखते हुए चलना। चमकीली आंधियां कहीं तुम्हारी आंखें न चुंधियां दें। सावधान!! इन आंधियों में बहुत-से तहस-नहस हो गए। मेरे बेटे, सहनशीलता और विवेक की ढाल से सदैव खुद को बचाए रखना है। मुझे आशा है कि तुम अपनी हर परीक्षा में सफल होगे और अपनी मां का नाम भी रोशन करोगे। एक सपूत जाने कितनी नस्लों पर लगे पुराने कलंक धो डालता है। ऐसा ही सपूत बनने की आशा तुम्हारी मां तुमसे लगाए बैठी है।

तुम्हारी मां

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