दीवार पर लगे आईने, बताओ मैं हमेशा क्यों गिरती हूं?

यदि कोई, तुम्हें बहुत ऊंचे पावदान पर रखता है तो तुम सोचते हो वह तुम्हें शक्तिशाली बना रहा है। परंतु वह स्वयं भी शक्तिशाली हो रहा है, क्योंकि मात्र वही तुम्हें उस पायदान पर रख सकत है, कोई दूसरा नहीं।

मेरा साथी मेरी (मुझसे) ईर्ष्या करता है और मुझे बहुत महत्वपूर्ण बनाता है जितनी कि मैं नहीं हूं।

‘ईर्ष्या नहीं’, मैं सोचता हूं वह महसूस करता है कि वह हीन है। तुम गलत शब्द इस्तेमाल कर रही हो। वह सोचता है कि तुम एक देवी हो और वह मूल्यहीन। क्या यह ऐसा है? ( वह सिर हिलाती है) तब यह ईर्ष्या नहीं है।

यह भी लोगों को प्रभावित करना ही है…उन्हें बहुत महत्वपूर्ण बना देना। यह भी एक तरह की रणनीति है, एक बहुत परजीवी यात्रा। जब तुम किसी को बहुत महत्वपूर्ण बना देते हो, तब तुम उस व्यक्ति के मालिक बन जाते हो क्योंकि तब यह तुम्हारे अधिकार क्षेत्र की बात हो जाती है कि उसे ऊंचे बने रहने देना है या उसे नीचे फेंक देना है। यदि कोई, ( उदाहरण के लिए तुम्हारा साथी), तुम्हें बहुत ऊंचे पावदान पर रखता है तो तुम सोचते हो वह तुम्हें शक्तिशाली बना रहा है। परंतु वह स्वयं भी शक्तिशाली हो रहा है, क्योंकि मात्र वही तुम्हें उस पायदान पर रख सकत है, कोई दूसरा नहीं। और वह जानता है कि तुम्हें उस पर निर्भर रहना होगा अन्यथा तुम उस पायदान पर नहीं रह सकोगी; तुम एक साधारण स्त्री हो जाओगी। उसने तुम्हें एक देवी बना दिया। इस प्रकार तुम्हारे ऊपर मालकियत करने की यह एक अति सूक्ष्म रणनीति है।

तुम्हारे पर निर्भर होकर, वह तुम्हें अपने पर निर्भर बना रहा है। और तुम इस यात्रा का आनंद लेते हो कि वह तुम्हें बहुत ऊंचा बना रहा है। जब तुम यात्रा का आनंद लेते हो, तुम्हें कुछ शर्तें पूरी करनी पड़ती हैं। यह एक चाल है। उसने आविष्कृत नहीं किया; यह अति प्रचीन है।

आदमी ने स्त्री को सदा एक विशेष पायदान पर रखा है जिससे वह नीचे न आ सके। आदमी ने स्त्री की या तो पूजा की या उसकी निंदा। या तो वह जमीन पर रेंगने वाला कीड़ा है या वह एक देवी है, परंतु उसने उसे कभी बराबरी का दर्जा नहीं दिया; यह खतरनाक है। दोनों ठीक हैं, या तो वह बहुत ऊंचाई पर है, आकाश में, एक अछूत, या वह बहुत नीचे, फिर एक अछूत, परंतु वह कभी बराबर नहीं है। जब एक स्त्री बहुत नीचे हो तो उसे दबाया जा सकता है, दंड दिया जा सकता है या कुछ भी जो आदमी समझे कि इसने गलत किया है। यदि वह देवी है; तब उसे उसके आसन से फेंका जा सकता है, वह भी एक तरह का दंड है।

परंतु स्त्री को पुरुष के बराबर किए जाने की आवश्यकता है, न ऊंचा न नीचा, और इसके लिए पुरुष राजी नहीं है,  क्योंकि किसी को बराबरी का दर्जा देने का अर्थ है कि अब तुम उस पर मालकियत नहीं कर सकते। तुम बराबर पर मालकियत नहीं कर सकते। ऊंचे और नीचे दोनों पर मालकियत की जा सकती है, परंतु बराबरी का व्यक्ति तो स्वतंत्र है; समान समान है।

इसलिए आसन से नीचे उतरो। उन्हें बता दो कि तुम एक मनुष्य मात्र हो न कि कोई देवी। अभी तुम क्या कर रहे हो? तुम देवी होने का अभिनय मात्र कर रही होगी। इस प्रकार तुम उनके साथ सहयोग कर रही हो। सहयोग मत करो! तुम बस उससे कह दो कि तुम एक साधारण स्त्री हो जैसे कि वह एक साधारण पुरुष। मैं एक देवी की तरह पूजी जाना नहीं चाहती। मुझमें वे सभी इच्छाएं हैं जो किसी भी स्त्री में होती हैं। मैं एक सरल साधारण स्त्री हूं। तुम स्वयं ही आसन से नीचे उतर आओ इसके पहले कि वे तुम्हें फेंकें; सीधे नीचे उतर जाओ। तुम्हें अच्छा महसूस होगा और तुम उसे भी निर्भार कर दोगी।

यदि वह तुम्हें प्रेम नहीं कर सकता, तब वह कोई दूसरी स्त्री खोज लेगा जिसे वह आसन पर बिठा सकता है और पूजा कर सकता है। वह एक मां की तलाश में हो सकता है न कि एक प्रेमिका के; तब वह उसकी समस्या है। परंतु तुम आसन से उतर जाओ। तुम किसी को तुम्हें ऊपर रखने की अनुमति मत दो, अन्यथा वह तुम्हें मैनिपुलेट करेगा। वह कहेगा, ‘ मैंने तुम्हें इतना ऊंचा बनाया अब तुम्हें मेरा अनुसरण करना पड़ेगा।’  यह मत करो; यह तुम्हारे अनुकूल नहीं है। यह मत करो, यह आचरण तुम्हारे लिए ओछा है। अपने स्तर पर रहो।

तुम उस सिंहासन का आनंद तो लेती हो लेकिन तब तुम्हें लगेगा कि तुम पत्थर जैसी हो गई हो। और वस्तुत: तुम एक जीवंत व्यक्ति होना पसंद करोगी। इस प्रकार तुम दो विरोधाभासी चीजें करने का प्रयत्न कर रही हो। यदि तुम एक सच्ची गर्मजोश वाली स्त्री, एक वास्तविक स्त्री बनना चाहती हो, तब आसन से उतर जाओ। सभी आसन एक तरह की बीमारी है, जिन्हें मैं ‘आसन-रोग’ कहता हूं।

नीचे उतर जाओ और उससे कहो कि तुम देवी नहीं बनना चाहती। स्वाभाविक और सच्ची रहो और जो भी घटे उसकी स्वीकृति हो। यदि वह तुम्हें छोड़ देता है तो यह उसका कृत्य है। यदि वह तुम्हारे साथ रहता है, तुम अधिक स्वतंत्र रहोगी; वह अधिक स्वतंत्र रहेगा। और यह उसकी भी सहायता करेगा…क्योकि वह भी गलत था। वह कभी प्रसन्न नहीं रहेगा। पहले तुम किसी को आसन पर बिठा दो; तब तुम उसके साथ प्रेम नहीं कर सकते। तुम एक देवी को प्रेम कैसे कर सकते हो? यह भद्दा लगता है। तुम अपनी मां के साथ प्रेम नहीं कर सकते और उसने तुम्हें मां की तरह ऊपर कर दिया, मां से भी ऊपर।

उससे कहो, ‘ मैं सिर्फ एक साधारण स्त्री हूं। मैं कोई दूसरा समादर नहीं चाहती। मनुष्य होने का यह सबसे बड़ा समादर हम एक दूसरे के प्रति दे सकते हैं! यह सहयोगी होगा।

ओशो, कुछ मत करो, सिर्फ बैठो : डोन्ट जस्ट डू समथिंग, सिट देयर, प्रवचन = 1 से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।