धरती की ओर वापसी

स्वांस तुम्हारे अस्तित्व के मूल की गहराई तक जानी चाहिए, और वह मूल तुम्हारा काम-केंद्र है।

आधुनिक मनुष्य के लिए यह एक सर्वाधिक प्रचलित समस्या हो गई है; पूरी मनुष्यता ऐसे पीड़ित हो रही है, जैसे उसकी जड़ें उखड़ गईं हों। जब तुम इसके प्रति जागरूक होओगे, तुम्हें अपने पैरों में सदैव एक कंपन, एक अनिश्चितता महसूस होगी, क्योंकि पैर वास्तव में आदमी की जड़ें हैं। अपने पैरों के द्वारा ही आदमी भूमि में जड़ें जमाए हुए है।

एक बार तुम सीधे-सीधे समझ गए कि समस्या क्या है, यह पहले से ही हल होने की राह में आ गई। अब तुम्हें मात्र दो या तीन चीजें करनी हैं।

प्रतिदिन सुबह

प्रथम चरण: अपने वजन को स्थानांतरित करना

अपने पैरों को 6 से 8 इंच के फासले पर रखते हुए उन पर खड़े हो जाओ और आंखें बंद कर लो। अब अपना पूरा वजन अपने दाएं पैर पर डालो, जैसे कि तुम केवल दाएं पैर पर खड़े हो, बाएं पर कोई वजन नहीं है। इसे महसूस करो, और तब बाएं पैर पर शिफ्ट करो। तुम्हारा पूरा वजन बाएं पैर पर हो और दाएं पैर को पूरी तरह राहत दो, ऐसे जैसे इसका कोई संबंध ही न हो। यह बस भूमि पर हो लेकिन इस पर कोई वजन न हो।

इस प्रक्रिया को 4 से 5 बार दोहराओ–वजन के इस स्थानांतरण को महसूस करते हुए–और महसूस करो कि यह कैसा महसूस हो रहा है।

द्वितीय चरण: दौड़ो और स्वांस लो!

यदि तुम समुद्र के नजदीक हो, प्रत्येक सुबह समुद्र तट पर जाओ और रेत पर दौड़ो। यदि तुम समुद्र के नजदीक नहीं हो, कहीं भी नंगे पांव दौड़ो — बिना जूता पहने, नंगे पांव जमीन पर ताकि तुम्हारे पांव और जमीन के बीच संपर्क बना रहे। कुछ सप्ताह के भीतर तुम अपने पैरों में एक महत ऊर्जा और शक्ति महसूस करना शुरु कर दोगे।

साथ-साथ गहरी स्वांस भी लेना शुरु करो। उथली स्वांस के साथ तुम अपरूटेड महसूस करोगे। स्वांस तुम्हारे अस्तित्व के मूल की गहराई तक जानी चाहिए, और वह मूल तुम्हारा काम-केंद्र है। और तब तुम्हारे स्वांस के साथ तुम्हारे काम-केंद्र से अनवरत संदेश आता है। तब तुम अपने मूल में होना महसूस करते हो।

अन्यथा, यदि तुम्हारी स्वांस उथली है और कभी भी काम-केंद्र तक नहीं पहुंच रही है, तो बीच में एक अंतराल हो जाता है — जिसके कारण तुम भ्रमित और अनिश्चित महसूस करते हो, यह समझ नहीं पाते कि तुम कौन हो, कहां जा रहे हो, बस भटक रहे हो। तब तुम कांति-हीन हो जाते हो, निर्जीव से, क्योंकि बिना उद्देश्य के जीवन हो भी कैसे सकता है? और उद्देश्य हो भी कैसे सकता है, जब तक तुम अपनी ऊर्जा के मूल में स्थित नहीं हो।

इसलिए पहला: भूमि में स्थित होना, जो सबकी जननी है।

तब काम-केंद्र में स्थित होना, जो सबका जनक है।

और तब तुम पूर्णतया विश्राम में होओगे,आत्म-केंद्रित और स्व-आधारित।

तीसर चरण: खड़े होओ और शिफ्ट करो।

प्रथम चरण में दिए गए निर्देशों को दोहराते हुए, अपना दौड़ना समाप्त करो।

ओशो, दि साइप्रस इन दि कोर्टयार्ड से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।