मैंने उनसे कहा, कभी ऐसे लोग, जो कुछ छोड़ना चाहते हैं, वे लोग कभी कुछ नहीं छोड़ पाए हैं। इसलिए आप बहुत परेशान ना हो। वे बोले, लेकिन ये बातें ऐसी हैं कि मुझे छोड़ना ही हैं, मेरा सारा जीवन नष्ट हुआ जाता है। उन्होंने मुझे कहा कि मुझे तो इतनी परेशानी है, लेकिन मैं शराब पीए चला जाता हूं। मैं इसे छोड़ना चाहता हूं और आज 10 वर्षों से लड़ रहा हूं। जितना लड़ता हूं उतना ही मैंने पाया कि यह बढ़ती चली जाती है, यह छूटती नहीं है। मैंने उनसे कहा इस जीवन में पूरे लड़ते रहे, तब भी यह छूटेगी नहीं। इसकी फिक्र छोड़ दें। कुछ और करें।
मैंने उन्हें अपने निकट बुलाया और मैंने उनसे कहा, कुछ प्रयोग करें अपने मन पर। मैंने कहा कि वह आदमी शराब पीता है, जो आदमी अशांत होता है, दुखी और पीड़ित होता है। जो आदमी आनंदित है, वह कभी नशा नहीं करेगा, असंभव है। दुनिया जितनी दुखी होती जाएगी, उतना ही दुनिया में नशा बढ़ता चला जाएगा। दुख होगा, नशा स्वाभाविक है। उसका परिणाम है। आनंद होगा, नशा असंभव है। उसका कोई कारण, उसकी कोई ज़रूरत नहीं रह जाती। मैंने उनसे कहा, नशे को छोड़ने की फिक्र छोड़ दें, शांत और आनंदित होने का उपाय करें।
उन्होंने कुछ साधना शुरू की शांत होने के लिए। तीन महीने बाद उन्होंने मुझे आकर कहा, मैं तो हैरान हूं। आज मुझे कोई कहे कि पीओ, तो मेरी समझ में नहीं आता कि मैं पहले कैसे पीता रहा। अब तो मैं नहीं पी सकता हूं, अब तो शराब छूना भी मुझे असंभव है।
सारी दुनिया पीड़ित है इस बात से। हम कुछ चीज़ों को छोड़ना चाहते हैं, लेकिन हम इस बात को नहीं समझ पाते कि उनकी जड़ें कहां हैं। उन्हें छोड़ने के लिए उनके मूल कारणों को तोड़ने की, हम बात नहीं विचार कर पाते और हम करीब-करीब ऊपर सारी चेष्टा करते हैं। जैसे कोई व्यक्ति किसी पौधे को नष्ट करना चाहता हो, उसकी शाखाओं को काट दे, पत्तों को गिरा दे, तो क्या होगा? कोई शाखाएं काट देने से और पत्ते गिरा देने से वृक्ष नष्ट नहीं होंगे, बल्कि जितना वह काटेगा उतनी नई शाखाएं निकलने लगेंगी, उतनी ज्यादा शाखाएं निकलने लगेंगी। तब वह घबराएगा कि मैं रोज़ वृक्ष को काटता हूं और यह तो वृक्ष है कि बढ़ता चला जाता है।
बुराई का वृक्ष इस तरह बढ़ता है कि हम उसकी शाखाएं काटते हैं और उसकी जड़ों को नहीं जानते। इसलिए पूरे जीवन कोशिश करने के बाद भी आदमी बुराई से मुक्त नहीं हो पाता।
मैं कुछ उन जड़ों की बात आपसे करूं, जिनको काटने से बुराई गिर जाती है, जिनको काटने से बुराई रह ही नहीं सकती। उसमें से प्रधान जो जड़ है, जो मनुष्य अपने अंत: में जितना दुखी होता है, उतना उसका जीवन बुरा होता चला जाता है। जो मनुष्य अपने अंत: में जितने आनंद को उपलब्ध होता है, उतना उसका जीवन शुभ होता चला जाता है। लोग सोचते हैं कि शुभ होने से आनंद उपलब्ध होगा। मैं सोचता हूं कि आनंद उपलब्ध होगा, तो जीवन शुभ हो जाता है। जो व्यक्ति भीतर आनंदित है, उसके लिए असंभव होता है कि वह किसी को दुख दे सके। पाप का कोई अर्थ नहीं है। पाप का एक ही अर्थ है, ऐसे काम जिनसे दूसरों को दुख पहुंचता हो। पुण्य का एक ही अर्थ है, ऐसे काम जिनसे दूसरों के जीवन में सुख पहुंच जाता हो।
अमृत की दिशा /साभार ओशो इंटरनैशनल फाऊंडेशन