भावनाओं से मित्रता

कहीं न कहीं यह भय है, जो मुझे बंद कर देता है व कठोर और हताश, क्रोधित और आशाहीन बना देता है। यह इतना सूक्ष्म है कि मैं वस्तुत: उसे छू नहीं सकता। मैं अधिक स्पष्टता से कैसे देख सकता हूं?

कहीं न कहीं यह भय है, जो मुझे संकीर्ण, कठोर, दुखी, हताश, क्रोधित और आशाहीन कर जाता है। यह इतना सूक्ष्म लगता है कि मैं किसी तरह भी इससे संबंधित नहीं हो पाता। मैं इसको और अधिक स्पष्टता से कैसे देख सकता हूं?

उदासी, चिंता, क्रोध, क्लेश और हताशा, दुख के साथ एकमात्र समस्या यह है कि तुम इन सबसे छुटकारा पाना चाहते हो। यही एकमात्र बाधा है।

तुम्हें इनके साथ जीना होगा। तुम इन सबसे भाग नहीं सकते। यही वे सारी परिस्थितियां हैं, जिनमें जीवन केंद्रित होता है और विकसित होता है। यही जीवन की चुनौतियां हैं। इन्हें स्वीकार करो। ये छुपे हुए वरदान हैं। अगर तुम इन सबसे पलायन करना चाहते हो और किसी भी तरह इनसे छुटकारा पाना चाहते हो, तब समस्या खड़ी होती है क्योंकि जब तुम किसी भी चीज़ से छुटकारा पाना चाहते हो, तब तुम उसे सीधा नहीं देख सकते। तब वे चीजें तुमसे छिपनी शुरू हो जाती हैं, क्योंकि तब तुम निंदात्मक हो, तब ये सारी चीज़ें तुम्हारें गहरे अचेतन मन में प्रवेश कर जाती हैं, तुम्हारे अंदर के किसी अंधेरे कोने में घुस जाती है, जहां तुम इसे देख नहीं सकते। तुम्हारे भीतर के किसी तहखाने में ये छिप जाती और स्वभावत: जितने भीतर ये प्रवेश करती है, उतनी ही समस्या उत्पन्न होती है क्योंकि तब वे तुम्हारे भीतर के किसी अनजाने कोने से कार्य करती है और तब तुम बिल्कुल ही असहाय हो जाते हो।

तो पहली बात, कभी दमन मत करो। पहली बात, जो भी जैसा भी है, वैसा ही है। इसे स्वीकार करो और इसे आने दो, इसे तुम्हारे सामने आने दो। वास्तव में सिर्फ यह कहना कि दमन मत करो, काफी नहीं है। अगर मुझे इजाजत दो, तो मैं कहूंगा कि ‘इसके साथ मित्रता करो।”

तुम्हें विषाद (दुख) का अनुभव हो रहा है? इससे मैत्री करो, इसके प्रति अनुग्रहित (कृपापात्र) बनो। विषाद का भी अस्तित्व है, इसको आने दो, इसका स्वीकार करो, इसके साथ बैठो, उसका हाथ पकड़ो, उससे मित्रता करो, उससे प्रेम करो। विषाद भी सुंदर है। इसमें कुछ भी गलत नही है। तुमसे यह किसने कहा कि विषाद में कुछ गलत है? हंसी बहुत उथली होती है और प्रसन्नता त्वचा तक ही जाती है, पर विषाद हड्डियों के भीतर तक जाती है, मांस-मज्जा तक। विषाद से गहरा कुछ भी भीतर प्रवेश नहीं करता।

इसलिए, चिंता मत करो, उसके साथ रहो और विषाद तुम्हें स्वयं के अंतरतम केंद्र में ले जाएगा। तुम उस पर सवार होकर स्वयं के बारे में कुछ अन्य नई बातें भी जान सकते  हो, जो तुम पहले से नहीं जानते थे, वे बातें सुख की अवस्था में कभी उजागर नहीं हो सकती थीं। अंधेरा भी अच्छा है और अंधेरा भी दिव्य है। अस्तित्व में केवल दिन ही नहीं है, रात भी है। मैं इस रवैये को धार्मिक कहता हूं।

कोई व्यक्ति अगर धैर्यपूर्वक उदास हो सके, तो तत्काल ही पाएगा कि एक सुबह उसके हृदय के अनजाने स्रोत से प्रसन्नता की रसधारा बहने लगी। वह अनजाना स्रोत ही दिव्यता है। इसे तुम भी अर्जित कर सकते हो, अगर तुम सचमें ही विषाद का अनुभव कर सको; अगर तुम सचमें ही आशाहीन, निराश, दुखी और दयनीय हो सको ऐसे जैसे नर्क भोगकर आए हो, तब तुमने स्वर्ग का अर्जन कर लिया, तब तुमने इसकी कीमत चुका दी।

जीवन का सामना करो, मुकाबला करो। मुश्किल क्षण भी होंगे, पर एक दिन तुम देखोगे कि उन मुश्किल क्षणों ने भी तुमको अधिक शक्ति दी क्योंकि तुमने उनका सामना किया। यही उनका उद्देश्य है। उन मुश्किल के क्षणों से गुजरना बहुत कठिन है, पर बाद में तुम देखोगे उन्होंने तुम्हें ज्यादा केंद्रित बनाया। जिसके बिना तुम जमीन से जुड़े और केंद्रित नहीं हो सकते थे।

पूरे विश्व के पुराने सारे धर्म दमनात्मक ही रहे हैं, भविष्य का नया धर्म अभिव्यक्ति देने वाला होगा। मैं वही नया धर्म सिखाता हूं…. अभिव्यक्त करना तुम्हारे जीवन का एक बुनियादी नियम होना चाहिए। इससे अगर तुम्हें पीड़ा भी मिले तो पीड़ा भी सहो; तुम कभी भी नुकसान में नहीं रहोगे। यह पीड़ा तुम्हें जीवन का और भी ज्यादा मज़ा लेने के लिए समर्थ बनाती है और जीवन में प्रसन्नता भर देती है।

ओशो, दि आर्ट ऑफ डाइंग, # 10 से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।