एक बार मैं सेंट मीरा स्कूल के अहाते से गुज़र रहा था। वहाँ पर खेलते हुए बच्चे दौड़ कर मेरे पास आकर मुझसे लिपट गए। कोई मेरे कंधे पर चढ़ बैठा, तो कोई हाथ पकड़ कर आग्रह करने लगा कि– आप कहां जा रहे हैं? हमें कहानी सुनाइए।
नन्हें बच्चों के मन में नई-नई कहानियां सुनने की एक अबुझ प्यास होती है। वह सीधे-सादे सरल हृदय के होते हैं। छल-कपट से उनका परिचय नहीं होता है, इसीलिए वे कहानियों में छिपे संदेश और मर्म को बड़ों से ज्यादा अच्छी तरह ग्रहण कर लेते हैं।
हम सब मिल कर वहां की संगमरमर से बनी सीढ़ियों पर बैठ गए। बच्चों के चेहरे पर अनोखी चमक थी। मैंने परंपरागत तरीके से कहानी की शुरुआत की– बहुत समय पहले की यह बात है एक राजा था- एक बच्चे ने मुझे बीच में टोकते हुए कहा– राजा! वाह-वाह! मैं भी बड़ा होकर राजा बनूंगा। सचमुच का राजा। मेरे पास कई हवाई-जहाजों और एटम-बम से लैस शक्तिशाली विशाल सेना होगी। मैं संपूर्ण विश्व को जीत कर, प्रजा के हर व्यक्ति को खुश करने का प्रयत्न करूंगा। यह कहते-कहते भविष्य की कल्पना मात्र से ही उसका सीना और मस्तक राजसी अभिमान से तन गया।
मैंने दूसरे बच्चों से पूछाः- आप लोग क्या बनना चाहते हैं?
उनमें से एक बोला– मैं तो एक बड़ा ज़मींदार बन कर अपने स्कूल जैसी बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण करूंगा। उनमें बड़े खूबसूरत बगीचे और मनमोहक फ़व्वारे भी बनवाऊँगा।
दूसरा बोलाः– मैं तो अपने पिता की तरह बड़ा इंजीनियर बनूंगा। मैं भी उनकी तरह बड़े-बड़े पुल बनाऊँगा।
मैंने उससे पूछाः– क्या तुम लोहे और सीमेंट के पुलों के बजाय, मनुष्यों के दिलों को जोड़ने वाले पुल बनाना पसंद करोगे? इससे संसार के लोगों के दिल आपस में जुड़ जाएँगे।
एक लड़की अपनी मधुर आवाज में आँखों में चमक भरते हुए बोली– दादा! मैं तो नरगिस की तरह एक महान अभिनेत्री बनूँगी।
तभी एक नन्हा बच्चा कहने लगा– दादा! मैं तो दुनियाँ का सबसे महान क्रिकेटर बनना चाहता हूँ।
दूसरा बोला– मैं तो चांद पर जाना चाहता हूँ।
वे सारे नन्हे-मुन्ने एक ही जैसे थे, परंतु सबके सपने अलग-अलग थे।
एक कह रहा था– मैं तो भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहता हूँ- मेरा नाम भी जवाहर है और मेरे पिता का नाम मोतीराम है।
तभी एक छोटा बच्चा बोला– दादा! मैं तो पूरी दुनियाँ का सेवक बनना चाहता हूँ। कितने सारे लोग भूखे रहते हैं, दुखी रहते हैं। मैं भी साधु वासवानी की तरह उनके दुःखों को कम करने की कोशिश करूंगा।
उसके इन सरल शब्दों और ऊँची भावना ने मेरे दिल को छू लिया। मैंने मन में सोचा– चलो एक तो इस संस्था के ध्येय को समझ सका, इसकी शिक्षा को सच्चे हृदय से अपनाने को उत्सुक है। मैंने प्रभु को धन्यवाद दिया। तभी मेरी नज़र एक खामोश सुनहरे बालों वाली लड़की पर पड़ी। उसके सुंदर और मासूम चेहरे पर श्रद्धा और भक्ति की चमक थी। उसकी नज़र कहीं दूर के दृश्य पर टिकी हुई थी।
मैं उसकी तरफ देख कर बोलाः– बेटी! तुम चुपचाप क्यों बैठी हो? तुम्हारे क्या सपने हैं? तुम बड़े होकर क्या बनना चाहती हो? क्या तुम मुझे नहीं बताओगी?
वह पहले तो कुछ हिचकिचाई, फिर बोली– मैं तो अपने स्कूल, सेंट मीरा की एक सच्ची और आदर्श छात्रा बनना चाहती हूं। मैं ईश्वर की सच्ची भक्त बनना चाहती हूं। मैं उनको देखना चाहती हूं। उनसे बातें करना चाहती हूं, उनके चरण स्पर्श करना चाहती हूं। अपने अमृत-वचनों को अपने कानों से उसी तरह सुनना चाहती हूं, जिस तरह इस वक्त मैं आपके वचनों को सुन रही हूं।
मैं उसकी बातों से इतना प्रभावित हो गया कि कुछ कह नहीं सका। उसकी आंखों में एक दिव्य चमक थी। मैंने कुछ देर बाद पूछा– बालिका ये सब कैसे होगा?
उसने बड़े आत्मविश्वास से कहा– पहले मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी। मुझे एक ऐसा सतगुरु चाहिए, जो सदैव ईश्वर का सखा हो, सत्पुरुष हो, जो अपना हर कार्य ईश्वर के लिए करे। जब ऐसा गुणी गुरु मिल जाएगा, तो मैं उनका अनुसरण कर ईश्वर के करीब पहुंच जाऊँगी। मैं तो आश्चर्य से भरा… उस छोटी बच्ची की बड़ी और ऊंची बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था। उसकी लगन श्रद्धा और लक्ष्य के सामने मैंने सिर झुकाकर उससे आशीर्वाद मांगा।