भगवान की पहचान

जब मैं छोटा बच्चा था, मेरी माताजी कहा करती थी कि भगवान गुप्त वेश में आते हैं। इसलिए मैं आने वाले सभी साधू, फकीर, भिखारी आदि को कहीं यह भगवान तो नहीं है, यह समझ पैसे दे देता था। उस समय मुझमें भगवान को पहचानने की बुद्धि नहीं थी। ब्रह्माकुमारीज में आने के बाद मुझे यह बुद्धि मिली कि भगवान के गुप्त वेश में आने का अर्थ क्या है।

आज खुद को भगवान या भगवान के अवतार बताने वाले बहुत लोग हैं। तो भगवान को कैसे पहचानें? भगवान की पहचान उनकी महिमा से होती है।

वे ज्ञान के सागर, सर्व के रक्षक, सर्वशक्तिवान, पतित-पावन और दुखहर्ता, सुखकर्ता हैं।

ज्ञान के सागर

भगवान को सृष्टि का रचयिता सब मानते हैं। तो भगवान ज़रूर रचता और रचना का अर्थात सृष्टि के आदि, मध्य, अंत का ज्ञान देगा, पाप और पुण्य का ज्ञान देगा, आत्मा के उत्थान और पतन का ज्ञान देगा, मुक्ति और जीवनमुक्ति का ज्ञान देगा। भगवान पतित से पावन बनने की विधि अर्थात अपने से योग लगाना सिखाएगा। ब्रह्माकुमारीज में आने के बाद मुझे भगवान के ज्योतिस्वरूप का परिचय मिला और उनसे योग लगाने की विधि की सीख मिली। इस ज्ञान को प्राप्त करने से पहले मुझे बहुत जल्दी क्रोध आ जाता था। परंतु जैसे ही मैंने योग लगाना शुरू किया, थोड़े ही दिनों में लगने लगा कि क्रोध की पकड़ ढीली हो रही है। सवेरे ऐसा लगने लगा जैसे कोई मेरे पैरों के पास खड़ा है और मेरी ओढ़ी हुई चादर को खींच रहा है। मैं जितना जोर से खींचूं, वो और जोर से खींचे और मुझसे कहे, यह सोने का वक्त नहीं है, योग करो। जब तक मैं उठ के ना बैठूं, वो मुझे न छोड़े। भगवान की मुरलियों के द्वारा मुझे ऊपर लिखी सभी बातों की समझ मिल गई।

सर्व का रक्षक

ज्ञान न होने के कारण मैं भगवान से जीवन की रक्षा की प्रार्थना करता था। शायद सभी यही करते हैं, परंतु जब जान को खतरा होता है, तब हर व्यक्ति रक्षा के लिए पुलिस के पास जाता है। अपने आप को शरीर समझने के कारण, हम पुलिस को जान का रक्षक समझ लेते हैं। वास्तव में आत्मा को काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के भूतों से रक्षा चाहिए। ये वे भूत हैं, जिनके प्रभाव में आकर आत्मा पाप करती है और परिणामस्वरूप दुख भोगती है। आत्मा का पतन इन भूतों के कारण होता है और इस कारण आत्मा, परमात्मा से रक्षा की प्रार्थना करती है।

सर्वशक्तिवान

टीवी धारावाहिक या पिक्चर में शक्तिमान उसे दिखाते हैं, जो बुराई का नाश करे। निराकार परमात्मा के द्वारा काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी बुराइयों से सारे संसार को आजादी मिलती है। परमात्मा इस धरा पर अवतरित हो आत्माओं को इन भूतों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं, परमात्मा से प्राप्त शक्तियों से आत्मा अपने दिव्य संस्कारों को पुनः धारण करती है, इसलिए वे सर्वशक्तिवान हैं।

पतित पावन

परमात्मा जन्म और मरण के चक्र में नहीं आते इसलिए सदा पावन हैं। वे पवित्रता के सागर हैं। उनमें ही सर्व आत्माओं को पावन बनाने की ताकत है। उन्हें किस विधि से याद करने से आत्मा पावन बनती है, वे स्वयं समझाते हैं। आत्मा पावन बन रही है, यह आत्मा के विचारों में आए परिवर्तन से पता चलता है। आत्मा जितनी पावन बनती जाएगी, उसके विचार उतने ही सकारात्मक, सुखदाई, पवित्र और शीतल होते जाएंगे। व्यक्ति के चेहरे पर प्रसन्नता और संतुष्टता होगी।

दुखहर्ता, सुखकर्ता

मनुष्य अज्ञानता-वश अपने दुखों का कारण भगवान को बताते हैं और फिर उन्हीं से सुख की कामना रखते हैं। वे दुखों से छूटने की इच्छा से भगवान की बंदगी करते हैं और कहते हैं, हे प्रभु, मेरी सुध लीजिए, मेरे कष्ट हरिए। वास्तविकता यह है कि हमारे दुखों का कारण हम स्वयं हैं। हमारे वे कर्म, जो देह अभिमान या काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के वश दूसरों को दुख पहुंचाते हैं, हमारे लिए दुखों का रास्ता खोलते हैं। भगवान की श्रीमत ही हमें श्रेष्ठ कर्म करना सिखाती है, जिससे हमारे सभी कर्म दूसरों को सुख देने वाले बन जाते हैं और हम दुखों से मुक्त हो जाते हैं। परमात्मा की इस महिमा से सिद्ध होता है कि वे सर्वव्यापी नहीं हैं।