करणी माता का नाम मैंने बहुत पहले कहीं सुना था, पर करणी माता का इतिहास मुझे बिल्कुल भी नहीं मालूम था। पर पिछली साल अचानक हुई एक यात्रा ने मुझे न केवल करणी माता का इतिहास बल्कि उसके महत्व और चमत्कार को भी जानने का मौका दिया। बात बीते साल 2024 की है जब मैं अपनी कजिन के घर कुछ दिन रहने गई थी।
ये मेरे लिए पहली बार था जब मैं बीकानेर शहर गई थी। वहां की गलियां और पर्यटक जगहें मेरे लिए बिल्कुल नई थी। चार दिन के इस टूर पर मेरी कजिन ने ठान लिया था कि वो मुझे बीकानेर की हर गली से मिलवा कर रहेगी। तो उसी की बदौलत मैंने बीकानेर का जुनागढ़ किला, लालगढ़ पैलेस, गंगा सिंह संग्रहालय, देवी कुंड सागर और करणी माता मंदिर, देशनोक देखा।
आज जब मुझे सोलवेदा पर करणी माता मंदिर बीकानेर पर कुछ लिखने का मौका मिला, तो न केवल मेरी बीकानेर से जुड़ी यादें ताज़ा हो गई बल्कि मुझे अपने अनुभव लिखने की खुशी भी हुई। बीकानेर के देशनोक में बना करणी माता का इतिहास अपने आप में बहुत श्रद्धा और आस्था से जुड़ा हुआ है। लोग दूर दूर से करणी माता मंदिर बीकानेर के दर्शन करने आते हैं।
तो चलिए अपने अनुभव और जानकारी के आधार पर मैं आपको बताती हूं, करणी माता का इतिहास और करणी माता का चमत्कार क्यों है इतना मशहूर।
कहां है करणी माता मंदिर? (Kahan hai Karni Mata Mandir?)
करणी माता का मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक नाम की जगह पर है। यह मंदिर बीकानेर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है और अपनी अनोखी परंपरा और करणी माता के इतिहास के लिए जाना जाता है।
करणी माता का इतिहास (Karni Mata ka itihas)
करणी माता का इतिहास आस्था, चमत्कारों और रहस्य से जुड़ा हुआ है। उनका जन्म 1387 ईस्वी में राजस्थान के चारण परिवार में हुआ था, और वे मां दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं। उन्होंने अपना जीवन भक्ति और समाजसेवा में बिता दिया था और अपनी अनोखी शक्तियों की वजह से लोगों के बीच माता के रूप में पूजने लगी थीं। उनके जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी घटनाएं हैं, जिनमें से सबसे ज़्यादा मानी जाने वाली कथा यमराज से जुड़ी है।
कहा जाता है कि जब उनके परिवार का एक बच्चा डूबकर मर गया, तो करणी माता ने उसे वापस लाने के लिए यमराज से प्रार्थना की। यमराज ने इनकार कर दिया, लेकिन करणी माता के तप से खुश होकर, उन्होंने यह वरदान दिया कि उनके वंश के लोग मरने के बाद चूहों के रूप में जन्म लेंगे और फिर दोबारा इंसान बन जाएंगे।
करणी माता का खास और एकलौता मंदिर राजस्थान के देशनोक, बीकानेर में ही मिलता है। जिसे “चूहों वाला मंदिर” भी कहा जाता है। यहां हजारों चूहे खुलेआम घूमते हैं और इन्हें देवी का आशीर्वाद माना जाता है। खास तौर पर सफेद चूहे बहुत शुभ माने जाते हैं और इनके दर्शन को सौभाग्य का इशारा समझा जाता है।
करणी माता को राजपूतों की कुलदेवी भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बीकानेर और जोधपुर के शासकों ने उनकी कृपा से अपने राज्यों को सुरक्षित और और अधिक अवधि का बनाया। और ऐसा भी कहा जाता है कि 151 साल की उम्र में करणी माता ने स्वेच्छा से यानी खुद की मर्जी से समाधि ले ली थी, लेकिन आज भी उनकी आस्था और चमत्कारों की कहानियां लोगों के विश्वास और श्रद्धा की वजह बनी हुई हैं।
करणी माता के मंदिर की खासियत (Karani mata ke mandir ki khasiyat)
करणी माता का मंदिर अपनी खासियतों और करणी माता का चमत्कार लिए बहुत माना जाता है। सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि यहां हजारों चूहे रहते हैं, जिन्हें पूजा जाता है। लोग मानते हैं कि ये चूहे करणी माता का आशीर्वाद हैं, और उन्हें प्रसाद खिलाना बहुत शुभ माना जाता है। खासकर सफेद चूहे को बहुत पवित्र माना जाता है, और इनके दर्शन से मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
यहां चूहे बिना किसी डर के मंदिर में घूमते हैं, और भक्त इन्हें श्रद्धा से खाना देते हैं। अगर गलती से कोई चूहा मारा जाए, तो उसे प्रायश्चित के तौर पर सोने या चांदी का चूहा मंदिर में दान करना पड़ता है।
नवरात्रि जैसे खास समय में यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। कई लोग मानते हैं कि यहां की चमत्कारी शक्तियों की वजह से उनकी ज़िंदगी में बदलाव आता है और उनकी समस्याएं हल हो जाती हैं। यही कारण है कि यह मंदिर एक आस्था का केंद्र बन चुका है, जो दुनियाभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
करणी माता के मंदिर में चूहों की पूजा क्यों होती है? (Karni Mata ke mandir mein chuhon ki pooja kyun hoti hai?)
करणी माता के मंदिर में चूहों की पूजा की परंपरा उनके वरदान से जुड़ी हुई है, जिसमें कहा जाता है कि उनके वंश के लोग मृत्यु के बाद चूहों के रूप में जन्म लेंगे और फिर इंसान बन जाएंगे। इसलिए यहां चूहे न सिर्फ आज़ाद रूप से घूमते हैं, बल्कि उन्हें पूजा भी जाता है।
इनके साथ भोजन साझा करना सौभाग्यशाली माना जाता है। जैसा मैंने पहले बताया, इस मंदिर में चूहों को इतना पवित्र माना जाता है कि यदि गलती से कोई भक्त किसी चूहे को नुकसान पहुंचा दे, तो उसे सोने या चांदी का चूहा दान करके प्रायश्चित करना पड़ता है। हालांकि, अपनी आंखों से किसी व्यक्ति को सोने या चांदी का चूहा दान करने हुए मैंने वहां नहीं देखा पर वजह मौजूद जितने भी श्रद्धालु थे मैंने उन सबके लिए यही प्राथना की कि किसी भी भक्त से ऐसा पाप न हो कि उसे इतना बढ़ा प्राश्चित करना पड़े।
इस अनोखी परंपरा और आस्था की वजह से ही करणी माता का देशनोक मंदिर दुनियाभर में जाना जाता है और हर साल हजारों लोग चूहों के मंदिर के यहां दर्शन करने आते हैं।
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