हिमालय के बीच बसा एक पौराणिक पर्वत, जिसकी चोटी हज़ारों फीट ऊंची है। यहां मौजूद है सदियों पुराना एक मंदिर। यह दुनिया के सबसे पुराने और आज भी मौजूद धर्मों के सबसे पवित्र स्थल में से एक है। इसकी सिर्फ एक झलक पाने के लिए लाखों लोग 16 किमी की तीखी चढ़ाई तय करते हैं। ये तीर्थ यात्रा आस्था की परीक्षा जैसा है। हम बात कर रहे हैं केदारनाथ मंदिर की, जी हां वही केदारनाथ जहां जाने का सपना महादेव के सभी भक्त देखते हैं।
हिमालय के बीचों-बीच बर्फ की चादरों से घिरा, यह स्थान भगवान शिव का निवास स्थानहै। केदारनाथ धाम महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह ऐसा स्थान है, जहां साल में सिर्फ छह महीने ही जाया जा सकता है। बाकी के दिनों में यहां जाना मुश्किलों से भरा होता है, क्योंकि यहां चारों ओर सिर्फ और सिर्फ बर्फ ही होता है। हालांकि, इस मंदिर की एक खास बात यह है कि छह महीने बंद रहने के बाद भी यहां एक दीपक जलते रहता है, जो किसी रहस्य से कम नहीं है।
तो चलिए सोलवेदा हिंदी की इस यात्रा में मैं आपको लेकर चलता हूं केदारनाथ मंदिर। यह एक ऐसी यात्रा है, जिसमें प्रकृति की खूबसूरती के साथ-साथ आस्था का वो संगम देखने को मिलता है, जिसमें हर कोई एक न एक बार ज़रूर डुबकी लगाना चाहता है।
12 ज्योतिर्लिंगों से एक है केदारनाथज्योतिर्लिंग(12 Jyotirling mein se ek hai Kedarnath)
हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों का बहुत ही ज़्यादा महत्व है। ये 12 ज्योतिर्लिंग भारत के अलग-अलग क्षेत्र में स्थितहैं। इसी में से एक है केदारनाथ मंदिर। वही केदारनाथ मंदिर, जो हिंदू धर्म के आस्था के प्रमुख केंद्रों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं और दर्शन करते हैं, साथ ही साथ पूजा-अर्चना भी करते हैं। केदारनाथ पहाड़ों और नदियों से चारों ओर से घिरा हुआ है। इसके एक ओर पर लगभग 22 हजार फुट ऊंचा केदार पर्वत, तो दूसरी और तीसरी ओर पर 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड का पहाड़ और22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड पर्वत है। साथ ही यहां पांच नदियों का संगम भी होता है। मंदाकिनी, स्वर्णगौरी, सरस्वती, छीरगंगा और मधुगंगा। इनमें से मंदाकिनी अभी भी मंदिर के बगल से बहती है। केदारनाथ चार धाममें से भी एक है।
हरिद्वार से ही शुरू हो जाती है केदारनाथ की यात्रा (Haridwar se hi shuru ho jati hai Kedarnath ki yatra)
केदारनाथ उत्तराखंड में है, जो हिमालय की गोद में बसा भारत का एकबेहद खूबसूरत राज्य है। यहां जाने की यात्रा हरिद्वार से ही शुरू हो जाती है। यहां से आप बस से गौरीकुंड तकपहुंचते हैं और फिर आगे16 किमीतक पहाड़ों की चढ़ाई करके केदारनाथ मंदिर तक पहुंचते हैं। इस दौरान एक बात का ध्यान रखें कि गौरीकुंड में एक छड़ी ज़रूर ले लें, जिससे आपको चढ़ाई करने में आसानी होगी। यहां से केदारनाथ तक की तीखी चढ़ाई है, जिसमें छड़ी सहारा और साथी के रूप में आपकी मदद करेगी।
उखीमठ से केदारनाथ तक भगवान की डोली यात्रा (Ukhimath se Kedarnath tak bhagwan ki doli yatra)
हिमालय की गोद में बसे होने के कारण केदारनाथ में काफी ज़्यादा बर्फबारी होती है। इसके कारण केदारनाथ मंदिर सिर्फ और सिर्फ छह महीने तक खुला रहता है। तो अब आप सोच रहे होंगे कि जब मंदिर छह महीने बंद रहता है, तो यहां के भगवान कहां रहते हैं। इस दौरान भगवान केदार उखीमठ में रहते हैं।हर छह महीने में उखीमठ से केदारनाथ तक की डोली यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान भगवान की पंचमुखी मूर्ति को डोली से मंदिर तक ले जाया जाता है, वो भी डोली में बैठा कर।
चारों ओर बर्फ से ढंकी चोटियां मन मोह लेती हैं(Charon or barf se dhaki chotiyan man moh leti hai)
हिमालय की निचली पर्वत शृंखलाओं के बीच बर्फ से ढकी चोटियों, मनमोहक घास के मैदान और जंगलों के बीच हवा भी महादेव के नाम से गुंजती हुई महसूस होती है। चारों ओर प्रकृति का अद्भूत नजारा दिखता है, जिसे हर कोई जो यहां पहुंचता है, वो सिर्फ देखता रह जाता है। यह प्रकृति का इतना खूबसूरत आंगन है, जहां से कोई भी वापस नहीं आना चाहता है।
400 सालों तक बर्फ में दबा रहा था मंदिर (400 salon tak barf main daba raha tha mandir)
केदारनाथमंदिर का इतिहासकाफी दिलचस्प है।कहानियों के अनुसार यह मंदिर 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा था। जब इसे बाहर निकाला गया, तो यह पूरी तरह से सुरक्षित था। वैज्ञानिकों के अनुसार 13वीं से 17वीं सदी के बीच में एक छोटा हिम युग आया था। इसी दौरान यह मंदिर बर्फ में पूरी तरह से लुप्त हो गया था। वैज्ञानिकों के अनुसार आज भी इस मंदिर की दीवारों और पत्थरों पर इसके निशान पाए जाते हैं।
इस आर्टिकल में हमने आपको केदारनाथ मंदिरकी यात्रा करवाई। सोलवेदा हिंदी के साथ यात्रा करना आपको कैसा लगा, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और भी यात्रा पर चलने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।