हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों में से सबसे खास मानी जाने वाली दिवाली, सिर्फ अंधेरे में उजाले भरने का दिन नहीं है, बल्कि दीपावली का महत्त्व इससे कहीं ज़्यादा है।
हिन्दू धर्म में जन्म लेने के हिसाब से अगर मैं अपने पर्सनल फेवरेट त्योहारों की बात करुं, तो मुझे भी दीवाली या दीपावली ही सबसे ज़्यादा पसंद है। दीपावली का दिन ज्ञान के उजाले और सकारात्मक विचारों को हर तरफ फैलाने का दिन है। खुशियां मनाने और खुशियां बांटने का दिन है।
वैभव की देवी मां लक्ष्मी से यश और श्री गणेश से सुख और शांति मांगने के लिए दीपावली मनाई जाती है। दीपावली का दिन हर त्योहार की तरह अपने साथ बहुत सी खुशियां तो लाता ही है, साथ ही, चिलचिलाती धूप और गर्मी के बाद सर्दियों की दस्तक भी लाता है, जो इस त्योहार को और भी खास बना देता है।
दीवाली पूरे पांच दिन तक मनाये जाने वाला पर्व है। इन पांच दिनों के उत्साह में हर दिन एक खास महत्त्व रखता है। हर दिन को मनाने के पीछे की एक ऐतिहासिक कहानी है, और सदियों से इन त्योहारों को इसी क्रम में मनाने की रीत चली आ रही है। आइये, दीपावली के इस पांच दिवसीय त्योहार के हर दिन की खासियत और उनका महत्त्व जानें।
पहला दिन धनतेरस (Pahla din Dhanteras)
दीपोत्सव का पहला दिन धनतेरस के नाम से मनाया जाता है। इस दिन को धन और समृद्धि से जोड़ कर मनाया जाता है। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है, और इस दिन नई चीज़ों को खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन को मनाने को लेकर ये कहानी कही जाती है कि समुद्र मंथन के वक्त धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी अमृत कलश और आयुर्वेद के ज्ञान के साथ धरती पर प्रकट हुए थे। इसलिए ‘धन’ यानि ‘समृद्धि’ और ‘तेरस’ यानि ‘कार्तिक महीने का तेरहवा दिन’, धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
दूसरा दिन नरक चौदस (Doosra din Narak Choudas)
नरक चौदस यानी छोटी दिवाली, जिसे ‘रूप चौदस’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को भगवान कृष्ण के नरकासुर राक्षस को मारने से जोड़ा जाता है। ये दिन भी बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है। नरक चौदस के दिन घर की देहरी पर दिये जलाये जाते हैं, मान्यता है कि इससे बुरी शक्तियां घर में प्रवेश नहीं करती हैं, नरक कष्टों से बचाव होता है और अकाल मृत्यु का खतरा टलता है।
तीसरे दिन बड़ी दिवाली, लक्ष्मी पूजन का दिन (Teesare din badi Diwali, Lakshmi poojan ka din)
यूं तो इन पांच दिनों की अपनी-अपनी मान्यताएं और खासियत है, लेकिन दीपावली का ये दिन सबसे खास माना जाता है। सुबह से घर और आंगन को धोकर फूलों और रंगोली से सजाया जाता है। लक्ष्मी पूजन के लिए तरह-तरह की मिठाइयां और पकवान बनाये जाते हैं। शाम को मां लक्ष्मी और गणेश जी की आरती की जाती है। भगवान से हर तरफ खुशियां और सुख समृद्धि मांगी जाती है। साथी ही, घर और बाहर, हर तरफ दीपक जलाकर अंधेरे को उजाले से मिटाया जाता है।
चौथे दिन गोबर्धन पूजा (Chauthe din Goberdhan pooja)
गोबर्धन पूजा श्री कृष्णा के गोबर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाने की कथा से जुड़ा हुआ है। गोबर्धन पूजा को ‘अन्नकूट’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन की कहानी के अनुसार, भगवान इंद्र ने गोकुलवासियों से नाराज़ होकर बहुत तेज़ बारिश की, लेकिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी गांव वासियों की रक्षा की। इस घटना के बाद, भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत और प्रकृति की पूजा करने का संदेश दिया, जिससे गोबर्धन पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।
पांचवें दिन भाई- बहन का त्योहार भाई धूज (Paanchvein din Bhai-Bahan ka tyohar Bhai Dooj)
इन पांच दिनों का आखिरी दिन है भाई दूज। यह त्योहार भाई-बहनों को समर्पित है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र के लिए सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं, और भाई अपनी बहनों की सुरक्षा और भले की कामना करते हैं।
इस दिन को मनाने के पीछे बहुत सी कहानियां हैं, जिसमें सबसे ज़्यादा मानी जाने वाली कहानी, यमराज और उनकी बहन यमुनाजी से जुड़ी है। एक बार यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे, और यमुनाजी ने उन्हें तिलक करके, उन्हें खाना खिलाकर उनका बहुत सम्मान किया। इससे खुश होकर यमराज ने अपनी बहन को वरदान दिया कि इस दिन को हर साल जो बहन अपने भाई को तिलक करेगी, उसके भाई को लंबी उम्र और समृद्धि मिलेगी, और तभी से भाई दूज मनाने का चलन है।
इस तरह ये अलग-अलग खास दिन मिलकर दीपावली को खास बनाते हैं। आप भी अपने परिवार के साथ मिलकर, सुख और समृद्धि से जुड़े इस त्योहार को खुशी से मनाइये।
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