ओडिशा में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इसमें लाखों लोग शामिल होते हैं। हालांकि, सबसे प्रसिद्ध रथ यात्रा ओडिशा के पुरी में निकाली जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल आषाढ़ महीने में रथ यात्रा निकाली जाती है। कहा जाता है कि जो भी इंसान भगवान जगन्नाथ की रथ को खींचता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा के ज़रिए अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।
रथ यात्रा से पहले पुरी मंदिर में भगवान की खास पूजा की जाती है। इस दौरान प्रभावशाली मंत्रों और मधुर संगीत से जो मनोरम दृश्य पैदा होता है, वो बहुत ही अलौकिक होता है। पुरी में निकाले जाने वाले रथ यात्रा में विदेश से भी काफी संख्या में लोग शामिल होने आते हैं।
तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि हर साल रथ यात्रा में लाखों लोग क्यों शामिल होते हैं। साथ ही हम आपको जगन्नाथ यात्रा के इतिहास और उसके महत्व के बारे में भी बताएंगे।
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास (Jagannath Rath Yatra ka itihaas)
पौराणिक कहानियों में इस यात्रा के बारे में कई रोचक बातें बताईं जाती हैं। कहा जाता है कि पुरी के मंदिर को बनाने वाले राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी से भगवान जगन्नाथ ने वादा किया था कि वो उनके महल में ज़रूर अपने भाई-बहनों के साथ आएंगे। इसी के कारण भगवान जगन्नाथ अपना मंदिर छोड़कर अपनी मां के सामान यानी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में मेहमान बनकर आते हैं। इस दौरान भगवान जगन्नाथ का काफी आदर और सत्मार किया जाता है।
वहीं, इतिहासकारों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं सदी में हुई थी। हालांकि, साधु-संतों के अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 12वीं सदी से बहुत पहले से ही निकाली जा रही है। वहीं, पद्म पुराण के अनुसार एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने अपने बड़े भाई बलराम से नगर देखने की इच्छा जताई। इसके बाद भगवान जगन्नाथ ने बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम को रथ पर बैठाया और नगर भ्रमण पर निकल गए। इसी दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर भी गए थे और मौसी के यहां सात दिनों तक रहे थे।
रथ यात्रा महोत्सव कहां होता है? (Rath Yatra Mahotsav kahan hota hai?)
रथ यात्रा महोत्सव हर साल ओडिशा के पुरी में निकाला जाता है। रथ यात्रा निकालने से पहले 15 दिनों तक मंदिर बंद रहता है। इन 15 दिनों के बाद रथ यात्रा निकाली जाती है। इसमें मुख्य रूप से तीन भगवान की जाती हैं, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी छोटी बहन सुभद्रा शामिल हैं। इस साल रथ यात्रा की शुभ शुरुआत 7 जुलाई को होगी और 8 जुलाई को यात्रा सम्पन्न होगी।
यात्रा में लाखों लोगों के शामिल होने का कारण (Yatra mein lakhon logon ke shamil hone ka karan)
हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में जो भी लोग शामिल होते हैं, उसके जीवन का सभी दुख और दर्द पूरी तरह से खत्म हो जाता है। वहीं, कोई अपराध अगर गलती से हो गया हो, उसके लिए यहां माफी मांगकर नई ज़िंदगी की शुरुआत श्रद्धालु करते हैं। इसके साथ ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर लेने से लोग सुख और शांति से तो जीवन यापन करते ही हैं, साथ ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
रथ यात्रा से जुड़ी अनसुनी बातें (Rath Yatra se judi ansuni baatein)
हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। वहीं, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा जिस शहर में हर साल निकाली जाती है, उसे श्रीजगन्नाथ पुरी, पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र आदि के नामों से भी जाना जाता है। वहीं, रथ यात्रा को महामहोत्सव गुंडीचा यात्रा, पतितपावन यात्रा, जनकपुरी यात्रा घोषयात्रा, नवदिवसीय यात्रा, जनकपुरी यात्रा के नाम से भी जाना जाता है।
रथ यात्रा में शामिल रथ को यात्रा के बाद तोड़ दिया जाता है। वहीं, हर साल नया रथ बनाया जाता है, इसके लिए बसंत पंचमी से ही तैयारी शुरू कर दी जाती है। रथ को बनाने का काम भी बहुत ही पारंपरिक तरीके से किया जाता है। रथ को बनाने का काम पुरी के गजपति महाराजा श्री दिव्यसिंहदेवजी के राजमहल श्रीनाहर के ठीक सामने रखखल्ला में होता है।
इस आर्टिकल में हमने भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा के बारे में बताया। इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।