योग मनुष्यात्माओं के लिए एक ईश्वरीय उपहार – अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भाग- 1

योग को अपनी जीवनशैली में स्थान देकर ही एक स्वस्थ और सभ्य समाज की कल्पना संभव है। क्योंकि योग के माध्यम से ही मनुष्य के जीवन की गतिविधियों को संचालित करने वाले मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है।

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”: काशी के कर्मयोगी संत रविदास जी ने गंगा में स्नान करते हुए कंगन खो जाने पर रो रही महिला को लकड़ी के बने हुए पात्र जिसे ‘कठौती’ कहा जाता है, उससे महिला का कंगन ढूँढ कर निकाल दिया। उसके बाद कहा-‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’ परंतु वर्तमान समय में मूल्यों की गिरावट तथा तेजी से बदल रही सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों और मानवीय संबंधों में कड़वाहट के कारण मनुष्य के मन में अत्यधिक नकारात्मक प्रवृत्तियां उत्पन्न हो रही हैं।

वर्तमान समय में, 8 साल का बच्चा भी मानसिक तनाव की भाषा बोलने और समझने लगा है। छोटे-छोटे बच्चों के जीवन में भी मानसिक तनाव की प्रवेशता हो चुकी है। इससे सहज ही कल्पना कर सकते हैं कि जब बचपन की शुरुआत ही मानसिक तनाव से हो चुकी है तो शेष जीवन का सफर कितना मानसिक तनावों और संघर्षों से भरा होगा। एक और नई बात देखी जा रही है कि इस नए युग के डिजिटल प्रेमी माता-पिता अपने शिशुओं का मनोरंजन मोबाइल के गानों के माध्यम से कर रहे हैं। अब से कुछ ही दशक पहले हम सभी ने मां के आंचल में छुपकर जीवन का सच्चा सुकून महसूस किया है। माँ की गोद में बैठकर शान्ति, प्रेम, करुणा और दया के मूल्यों का मंत्र सीखा है जो हमारे जीवन को आलोकित करते हैं। बच्चों को मूल्यों वाली शिक्षाप्रद कहानियां सुनाने वाले दादा-दादी और नाना-नानी की भूमिका आज बहुत सीमित हो गई है। वर्चुअल रिएलिटी की दुनिया में पलने-बढ़ने वाले बच्चों के मन का स्वास्थ्य निरंतर रुग्ण होता जा रहा है। इसलिए एक अच्छे समाज के नवनिर्माण के लिए; आधुनिकता और भारतीय सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों में समन्वय होना आवश्यक है। योग मनुष्य को आधुनिकता और आध्यात्मिकता से जोड़ने वाला एकमात्र सेतु है। योग को अपनी जीवनशैली में स्थान देकर ही एक स्वस्थ और सभ्य समाज की कल्पना संभव है। क्योंकि योग के माध्यम से ही मनुष्य के जीवन की गतिविधियों को संचालित करने वाले मन को स्वस्थ बनाया जा सकता है। और स्वस्थ मन ही सुख, शान्ति, समृद्धि और जीवनमुक्ति का प्रवेशद्वार है।

योग से सर्व का सहयोग

जब आप योग के द्वारा अपने व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाने के लिए, स्वयं के अंदर सकारात्मक चिंतन की वृत्तियों का निर्माण करते हैं, तो आपका यह पुरुषार्थ समाज के लिए बहुत बड़ा सहयोग होता है। धन, भौतिक वस्तुओं एवं साधनों से समाज के निर्बल लोगों का सहयोग करना भी सहज हो जाता है। स्थूल साधनों से समाज के लोगों को सहयोग भी करना चाहिए। परंतु मानसिक रूप से निर्बल लोगों को धन और स्थूल साधनों के सहयोग की आवश्यकता नहीं होती। प्रायः देखा जा रहा है कि भौतिक साधनों और सुविधाओं से सम्पन्न लोग मानसिक रूप से निर्बल हो रहे हैं। सैकड़ों बुझे हुए दीपक मिलकर भी एक दीपक को प्रज्ज्वलित नहीं कर सकते हैं। जबकि एक प्रज्ज्वलित दीपक सैकड़ों बुझे हुए दीपकों को प्रज्ज्वलित कर सकता है। इसी प्रकार नकारात्मक एवं निर्बल मानसिकता वाले लोग एक बेहतर समाज और सशक्त भारत के नवनिर्माण में अपना योगदान नहीं दे सकते हैं। केवल सकारात्मक चिंतन वाला मनुष्य अपने आसपास मौजूद सैकड़ों-हजारों नकारात्मक सोच और जीवन से निराश लोगों के जीवन में अपने सकारात्मक चिंतन से नई ऊर्जा का संचार करते हुए समाज की दशा और दिशा को बदल सकता है। वर्तमान समय में जीवन में सकारात्मक सोच को विकसित करना एक चुनौती है क्योंकि हमारे आसपास का वातावरण नकारात्मक वायुमंडल से घिर गया है। परन्तु योग के द्वारा यह सहज और संभव है।

प्रायः हर एक व्यक्ति के मन में या तो स्वयं से या दूसरों से शिकायत है। इससे मनुष्य का जीवन नकारात्मक वातावरण से घिरने लगा है। जीवन में सकारात्मक चिंतन का विकास केवल ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग के अभ्यास द्वारा ही किया जा सकता है। क्योंकि शारीरिक क्रियाओं पर आधारित योगाभ्यास से हमारा शरीर तो स्वस्थ हो सकता है परंतु मन को ज्ञान और विवेक के आधार पर ही सकारात्मक और स्वस्थ बनाना संभव है। क्योंकि यह शरीर का कोई स्थूल अंग नहीं है। मन अतिसूक्ष्म और चेतना का क्रियात्मक स्वरूप होता है। अतः समाज का परोपकार करने के लिए योग से सर्व का सहयोग करने की दिशा में आगे बढ़ें।

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