आत्मा-परमात्मा और जीवन

समय एक वृक्ष

पेड़ के सब भागों का परस्पर सम्बन्ध है। यदि एक भाग पर कुछ होता है तो उसका असर सम्पूर्ण वृक्ष पर पड़ता है। हम क्या सोचते और क्या करते हैं, इसकी हमें विशेष सतर्कता रखनी चाहिए क्योंकि हमारी हर सोच और हर कर्म की तरंगें समूचे विश्व में फैलती हैं।

वृक्ष की खूबसूरती की प्रशंसा कौन नहीं करेगा तने की मज़बूती, दूर तक फैली शाखाएँ, कीड़े मकौड़ों और पक्षियों का बसेरा, बसंत में हरा भरा होना, फल देना और गर्मियों में कड़कड़ाती धूप में घनी छाया देना। वृक्षों के बिना विश्व कैसा होगा, और मनुष्यों का विश्व वृक्ष यह तो महानतम सम्पत्ति है, आत्माओं के परिवार जो इस विश्व धरा पर रहते हैं। शरीर के साथ आत्माओं में रंग और रूप में कितनी भिन्नतायें हैं जिसके आधार पर उनको अलग किया जाता है। हालांकि लोग मनुष्यात्माओं को अपने मनमाने तरीके से विभाजित करने का प्रयत्न करते हैं परन्तु वृक्ष प्रतीक है कि हम जैसे हैं वैसे ही यहाँ साथ रहें, किसी का बहिष्कार किये बिना, किसी का पतन किये बिना, किसी अनहोनी या परिवर्तन के बिना। इस महानत बेहद के जीवन रूपी रंगमंच पर हममें से हरेक को अपना पार्ट निभाने का दिव्य अधिकार हैं।

कलियाँ, पत्ते और शाखायें

हम ही इसकी उभरती हुई कलियाँ और पत्तियाँ हैं जो आकाश में चारों ओर फैल रही हैं। इसकी उपमा हम उन अनगिनत प्रकार के स्वभाव और व्यक्तित्व के लोगों से कर सकते हैं जो हमें एक सप्ताह के भीतर ही अपने कार्यस्थल पर मिलते हैं। चाहे हम एक ही शाखा पर एकत्रित हों और समान सोच की तरफ़ आकर्षित हों, फिर भी हमारी एक अलग, अपूर्णता में संपूर्ण पहचान है, जो हमें वैसे ही रहने की अनुमति देती है। हमारी धार्मिक मान्यताएं या राजनीतिक प्राथमिकतायें हमें कुछ हद तक सामूहिक कर सकती हैं परन्तु हमारा अनोखापन कायम ही रहता है।

कोई भी इन्सान किसी और का प्रतिरूप नहीं होता। जुड़आ भी एक दूसरे से अलग होते हैं, उनमें कुछ न कुछ अन्तर अवश्य होता है। धर्म, जाति, लिंग, वर्णों के भेद का यह नृत्य वाकई बहुत प्रशंसनीय है। भले ही हम एक आत्मीय साथी या समान सोच वाला मित्र तलाशते हैं, फिर भीनंत सच यह है कि हम में से हर एक अनोखा और निराला है। तनहा नहीं , अनूठा।

व्यक्तिगत आत्मा

आध्यात्मिक यात्रा का एक खंड हमें यह पहचानने का निवेदन करता है कि हम पूर्ण रूप से बेजोड़ हैं – विशेष और निराले – असामान्य! यह जागरूकता हमारे मन को हल्का करेगी विशेषतः जब हम अपने व्यक्तित्व का सम्मान करेंगे, शांति पाने के अपने अधिकार और ज़िम्मेवारी को महसूस करेंगे व काम और क्रोध की हिंसा से रहित, सामंजस्य से रहेंगे।

यह यात्रा हमें यह भी निमंत्रण देती है कि हम परस्पर सामान्य मूल्यों का, एवं स्नेहमय उद्देश्यों के मेल का आनंद उठायें। इस सामंजस्य से सदभावना आकर्षित होती है और हमारे कर्म सशक्त बनते हैं। इस से दर्द, हानि एवं नकारात्मक इरादे और अनुपयुक्त कर्म से उत्पन पीड़ा से हम बचे रहते हैं। जो हमें मिथ्या कर्मों से उत्पन्न यातनायें और बुरे कर्मों से मुक्त रखती हैं। जब हमारी इच्छा हो तो हम एकता के एक किले का निर्माण कर सकते हैं।

आत्मायें एक साथ

पेड़ के सब भागों का परस्पर सम्बन्ध है। यदि एक भाग पर कुछ होता है तो उसका असर सम्पूर्ण वृक्ष पर पड़ता है। हम क्या सोचते और क्या करते हैं, इसकी हमें विशेष सतर्कता रखनी चाहिए क्योंकि हमारी हर सोच और हर कर्म की तरंगें समूचे विश्व में फैलती हैं। अब हम समझ सकते हैं क्यूँ हम वर्तमान विश्व समाचार जानकार व्याकुल हो उठते हैं। हर एक की परेशानी की तरंगें सम्पूर्ण विश्व के वायुमंडल में स्वतः ही संचारित होती हैं। यही कारण है कि हमारी प्रार्थनायें, ध्यान अभ्यास, दुआएं और शुभ भावनायें परेशानी को कम करने में मदद करते हैं।

हम देख सकते हैं कि वृक्ष की परिकल्पना मानव परिवार के बढ़ोत्तरी और विस्तार के साथ बिल्कुल मेल खाती हैं। लेकिन इस जीवन वृक्ष में परमात्मा का स्थान कहाँ हैं? उसके बिल्कुल मर्म में? शुरुआत में या फिर बीज में। कहानी तो बीज से शुरू होती हैं और बीज पर ही खत्म होती है। जब वृक्ष पुराना और जड़जड़ीभूत होता हैं तब परमात्माजिन का खुद का कोई आकार  नहीं है, वह एक रूप को धारण कर, इस मानवता के थकेहारे वृक्ष का पुन: बीजारोपण करते हैं और पुरानी उलझी हुई शाखाओं की बढ़त को निकालकर नये अंकुर की बढ़त के लिए जीवन भरते हैं। 

तब कहानी फिर से शुरू होती हैं। इसके कलाकार तरोताजा होकर इस महानतम् जीवन रूपी विश्व नाटक फिर से जीना शुरू करते हैं। जीवन एक नाटक है और नाटक ही जीवन है। कितना विलक्षण है ये। बुद्धिमानी इसी में है कि स्वच्छ बुद्धि और सबल ह्रदय से, जीवन के खेल को खेलें और इस नाटक रुपी पटरी पर चलें।

वृक्ष का इतिहास

वृक्ष का तना स्वर्ग का प्रतीक है, जो उस उत्तम बीज से उत्पन्न हुआ है। वह लिखित इतिहास से पूर्व का स्वर्णिम युग, जहाँ धारणाएँ, संस्कृति, भाषा, न्यायिक व्यवस्था सबमें एकता थी। वह समय एक श्रेष्ठ सभ्यता का समय था, जहाँ सामंजस्य पूर्ण जीवन शैली में सिद्धांत और व्यवहार में कोई अंतर नहीं था। उस युग के लोगों को किसी प्रकार की कमी नहीं थी – वे पूर्णतः संपूर्ण थे।

वृक्ष के तने के बीज के साथ की समीपता दर्शाती है कि उस समय की आत्मायें परमात्मा के गुणों के कितने करीब थे। सत्यता और बुद्धिमानी के सूत्रों पर आधारित जीवन था। अनादि सत्य यह है कि हम आत्मायें हैं ना कि शरीर। ऐसी आत्माओं को कथा कहानियों में याद किया जाता है, और उनको भगवान भगवती कहा जाता है। बहुत थोड़े लोग इस बात को समझ पाते हैं कि ऐसी दिव्य मनुष्यात्मायें एक समय में इस धरती पर रहती थी।

जीवन की धारणायें 

परमसत्ता का ध्यान उस नव वृक्ष के अंकुर की ओर है। क्या आप अपने आप को उस अंकुर के रूप में मानते हैं?  जब पुराना वृक्ष रोगी और जड़जड़ीभूत हो जाता है तब आधारमूर्त आत्माओं के द्वारा नये वृक्ष का रोपण किया जाता है। क्या आप अपने आपको वृक्ष की जड़ों का हिस्सा समझते हो जो इस वृक्ष की नींव हैचारों ओर अशुभ हालात होने क बावजूद, वह बीज – परमात्मा, करुणामय ही रहता है। प्रेम एवं सहयोग की शक्ति द्वारा, जड़ों के साथ मिल कर, वह एक नये पौधे का सृजन करता हैइसके माध्यम से शांति, पवित्ररता और सम्पन्नता, इस मानव सृष्टि वृक्ष में पुनः लौट आते हैं।

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