घूमने का सही समय

ज़िम्मेदारियों के बीच से कैसे निकालें घूमने का समय?

घर और काम-काज की टेंशन और ज़िम्मेदारियों के बीच घूमने का समय मिलना तो मुश्किल है, पर घूमने का समय तो सबको चाहिए होता है, ताकि हम घूमने के समय में खुद को पूरी तरह रिलैक्स और रिस्टार्ट कर सकें।

मुझे घूमना बहुत पसंद है, पर मैं जितना चाहती हूं उतना घूम नहीं पाती। घर और ऑफिस के काम और ज़िम्मेदारियों से फुर्सत ही नहीं मिलती कि हर दूसरे महीने मैं कहीं किसी हील स्टेशन पर शामें गुज़ार पाऊं। दोस्तों के साथ बहुत बार घूमने की प्लानिंग तो होती है, पर अक्सर जाने से पहले ही कोई न कोई काम आ जाता है, और हमारी प्लानिंग रखी रह जाती है। ये सब बातें मैं अपनी ज़िंदगी की नहीं बल्कि अपने बहुत से दोस्तों की ज़िंदगी की बता रही हूं। उन्हें घुमक्कड़ी का शौक तो है पर वो ज़िम्मेदारियों के बीच घुमक्कड़ बनने से रह जाते हैं, यानी अपने इस शौक को हकीक़त बना पाना तब थोड़ा मुश्किल हो जाता है, जब सिर पर ऑफिस और घर परिवार की तमाम ज़िम्मेदारियां रखी होती हैं।

अगर आप भी घूमने के शौकीन हैं तो आप भी मेरी इन बातों से खुद को जोड़ पा रहे होंगे। घर और काम-काज की टेंशन और ज़िम्मेदारियों के बीच घूमने का समय मिलना तो मुश्किल है, पर घूमने का समय तो सबको चाहिए होता है, ताकि हम घूमने के समय में खुद को पूरी तरह रिलैक्स और रिस्टार्ट कर सकें।

भले ही 4 प्लान कैंसल हो जाएं लेकिन मेरे कोशिश हमेशा रहती है कि 5वां प्लान ज़रूर सफल रहें। बहुत बिज़ी होने के बाद भी मैं थोड़ा-सा समय घूमने के लिए निकाल ही लेती हूं। अगर मैं आपसे कहूं कि घूमने का समय निकालना बहुत आसान है, तो क्या आप मेरी इस बात पर यकीन करेंगे? नहीं करेंगे तो कर लीजिए, क्योंकि अब आप भी मेरी तरह कुछ तरीके आज़मा कर अपनी ज़िम्मेदारियों भरी ज़िंदगी से घूमने का समय निकाल सकते हैं।

घूमने के फायदे (Ghumne ke fayde)

हम में से ऐसे बहुत ही कम लोग होंगे जिन्हें घूमना पसंद नहीं होगा। हर कोई चाहता है कि वो अपने व्यस्त जीवन से कुछ पल निकाल कर ठंडी और स्वच्छ हवा में सांस ले। इस शोरगुल भरे ज़माने में कुछ पल खुद के लिए जिए।

घूमने के बहुत से फायदे भी तो हैं। घूमने से हमें नई जगहों का अनुभव होता है और वहां की कला और संस्कृतियों को जानने का मौका मिलता है। इसके अलावा घूमने से मानसिक स्वास्थ्य भी दुरुस्त होता है। नई हवाओं के बीच नये विचार आते हैं। घूमने के बाद जब हम वापस अपने काम पर लौटते हैं तो हमारी एकाग्रता बढ़ती है और हम पहले से ज़्यादा मन लगाकर काम कर पाते हैं। अलग जगह पर अलग-अलग लोगों से बात करने का मौका मिलता है, जिससे हम में आत्मविश्वास कायम होता है। तो देखा आपने घूमने के कितने फायदे हैं और फिर भी हम घूमने के मौके तलाशने में वक्त गुज़ार देते हैं।

तो चलिए मैं आपको बताती हूं कि कैसे हम काम और ज़िम्मेदारियों के बीच से घूमने का सही समय निकाल सकते हैं।

ज़िम्मेदारियों के बीच से ऐसे निकालें घूमने का समय (Zimmedariyon ke beech se aise nikalein ghumne ka samay)

यूं तो ज़िम्मेदारियां हर वक्त ही हमारे सिर पर रखी रहती हैं, पर उन ज़िम्मेदारियों से थोड़ा सा वक्त निकाल कर खुद को सुकून देना भी तो हमारी ही ज़िम्मेदारी है। तो चलिए जानते हैं घूमने का समय कैसे निकालें?

अनुशासन बनाएं

अनुशासन से मेरा मतलब है कि अपने काम को करने का सही एक नियम बनाएं। जैसे ऑफिस में जो काम आपको मिला है, उसे वक्त से पहले करने की कोशिश करें। हर काम के लिए समय सुनिश्चित करें कि इतने वक्त में मुझे इतना काम खत्म कर लेना है। जिससे काम खत्म करने के बाद आप के पास जो समय बचेगा उसमें आप आगे के कामों को करना शुरू कर सकते हैं। और वक्त पर सारे काम खत्म करके आप बाकी वक्त में घूमने जा सकते हैं।

घर के कामों को रोज़ करें

अगर आप लम्बी छुट्टियां बिताना चाहते हैं तो घर की जो भी ज़िम्मेदारियां और काम हैं, उन्हें रोज़ थोड़ा-थोड़ा करके खत्म कर लें ताकि वीकेंड्स पर कोई भी काम आपके हिस्से में न बचे और आप आस-पास एक छोटी से ट्रिप पर जा सके।

लॉन्ग वीकेंड पर रखें नज़र

कई बार हम जल्दीबाज़ी में प्लान नहीं करते और ध्यान नहीं देते और एक लंबा वीकेंड हमारे हाथों से फिसल जाता है। ऐसे में कम से कम 2 महीने पहले से ही अपनी छुट्टियों का ध्यान रखें। पहले से प्लान करने पर चीज़ें आसान हो जाती हैं।

घूमने का मतलब सिर्फ दूर जाना नहीं है

कई लोग ऐसे शहरों में रहते हैं, जहां घूमने बाहर से लोग आते हैं। वहीं शहर में रहने वाले लोग अपना शहर ही ढंग से नहीं घूमते। हम में से कितने लोग मसूरी में, कश्मीर में, दिल्ली में या फिर केरला में रहते होंगे। ऐसे लोगों का शहर ही एक ट्रिप है। अगर आप सिर्फ एक संडे का भी वक्त निकाल लें तो आपके घूमने का प्लान पूरा हो जाएगा।

कुछ नहीं से कुछ सही

अगर ऐसा है कि आप कहीं नहीं जा सकते। आपके पास एक दिन का भी समय नहीं बचता तो 1 घंटे का तो बचता ही होगा। ट्रिप का मतलब ही होता है किसी जगह पर जाकर सुकून के कुछ पल बिताना। ऐसे में आप अपने शहर का वो सुकून भरा कोना ही एक्सप्लोर कर सकते हैं। मेरी एक दोस्त गांव में रहती है, पूरा सप्ताह काम करती है और हर संडे को खेतों में जाकर तस्वीरें भेजती है। वो अपने गांव से कहीं बाहर नहीं निकली, फिर भी उसे मैंने कई लोगों से ज़्यादा खुश देखा है।

आप भी चाहें तो अपने बगल के मार्केट जा सकते हैं, किसी गार्डन में जा सकते हैं या फिर आस-पास के नदी या जंगल की ओर या फिर अपनी नानी-दादी या किसी दूसरे रिश्तेदार के घर भी। थोड़ी देर शोरगुल से खुद को दूर रखकर देखें, यह आपको किसी ट्रिप से कम नहीं लगेगा।

आपको कैसी ट्रिप पसंद है, हमें ज़रुर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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