पिंकी का सच

मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है

बहुत देर तक खुद ही पानी से लड़ते रहने की वजह से बच्ची बेहोश हो गई। नरेंद्र उसे उठाकर हॉस्पिटल ले आया। जहां बच्ची तो ठीक हो गई पर नरेंद्र को डाक्टरों से पता चला कि बच्ची बेजुबान है।

वह एक सात साल की बच्ची थी, जो खुद को नदी में डूबने से बचाने की नाकाम कोशिशें कर रही थी। यहां दूर-दूर तक उस डूबती लड़की को बचाने वाला कोई नहीं था। ये तो उस लड़की की किस्मत थी कि उसी‌ वक्त नरेंद्र का वहां से गुज़रना हुआ। नरेंद्र ने बिना सोचे समझे नदी में छलांग लगा दी और बच्ची को बाहर निकाल लिया।

बहुत देर तक खुद ही पानी से लड़ते रहने की वजह से बच्ची बेहोश हो गई। नरेंद्र उसे उठाकर हॉस्पिटल ले आया। जहां बच्ची तो ठीक हो गई, पर नरेंद्र को डाक्टरों से पता चला कि बच्ची बेजुबान है। यानी कि वो बच्ची बोल नहीं सकती थी। कपड़ों से अच्छे घर की लगती थी, पर वो न तो अपना नाम बता सकती थी और न ही अपने घर का पता बता सकती थी।

नरेंद्र ने पुलिस को भी खबर की पर, उन्होंने कहा कि जब तक बच्ची के मां बाप नहीं मिल जाते, बच्ची नरेंद्र के साथ ही रहेगी।

बच्ची की जान बचाने तक तो ठीक था, पर उसे अपने साथ अपने घर ले जाना, नरेंद्र के लिए बहुत मुश्किल था। पहले ही उसके तीन बच्चे थे, जिनके रहने पढ़ने का बंदोबस्त वो बहुत मुश्किल से कर पाता था। और तो और नरेंद्र की पत्नी की भी कुछ दिन पहले एक बीमारी से जान जा चुकी थी, जिसका दुख अब भी नरेंद्र के ऊपर हावी रहता था।

नरेंद्र बच्ची को घर ले आया। बच्ची बोल नहीं सकती थी, पर समझती सब थी, इसलिए जल्द ही नरेंद्र के बच्चों के साथ घुल-मिल गई।

नरेंद्र रोज़ बच्ची को लेकर पुलिस स्टेशन जाता, पर पुलिस उसे यह कहकर वापस भेज देती कि जैसे ही बच्ची के परिवार का पता चलेगा, वो लोग खुद उसे नरेंद्र के घर से लेने आ जाएंगे।

ऐसे ही महीनों बीत गए और महीने सालों में बदल गये। वो बच्ची, जिसका नाम नरेंद्र के बच्चों ने परी रख दिया था, अब उन्नीस साल की हो गई। पर इतने सालों में रोज़ पुलिस स्टेशन जाने के बाद भी किसी ने उस बच्ची की गुमशुदगी दर्ज़ नहीं कराई।

एक दिन जब परी अपने कॉलेज से घर वापस आई, तो यह देखकर बहुत हैरान हुई कि घर पर कुछ लोग और पुलिस उसका इंतज़ार कर रहे थे। पुलिस के साथ जो लोग मौजूद थे, वे परी के‌ मम्मी-पापा थे। अपनी बेटी को देखकर उन दोनों ने उसे गले लगा लिया। नरेंद्र के पूछने पर उन्होंने कहा, “हम लोग एक दिन इस शहर में घूमने आए थे और परी आइसक्रीम की ज़िद करते-करते जाने कहां चली गई थी। आज जब वो मिली है तो हम उसे अपने साथ ले जाने आए हैं।”

नरेंद्र ने परी को हमेशा अपनी बच्ची की तरह पाला, घर में एक बच्चा बढ़ जाने से अपने काम को भी बढ़ा लिया और दिन रात मेहनत करके उसको पढ़ाया लिखाया भी। यूं आज उसके अचानक चले जाने की बात से नरेंद्र के साथ-साथ उसके बच्चे की बहुत परेशान हो गए।

और तभी परी बोल पड़ी, “मुझे कहीं नहीं जाना है! मुझे इसी घर में रहना है।” नरेंद्र और इस परिवार से जुदा होनी बात से घबराकर, परी की आवाज़ वापस आ गई थी।

और तब परी ने पुलिस को बताया,“ मैं बोल नहीं सकती थी, पर देख और सुन सकती थी। ये मेरे मम्मी-पापा होते हुए भी मुझ जैसी गूंगी लड़की को पसंद नहीं करते थे। इसलिए ये लोग मुझे नदी किनारे छोड़ गए थे। मैंने इन लोगों को खूब ढूंढ़ा और तभी मेरा पैर फिसल गया, जिससे मैं नदी में गिर गई थी।”

परी की बात सुनकर सब दंग रह गये और तभी परी के पिता ने कहा, “बेटा! हमें अपनी गलती पर बहुत अफसोस है, पर हमें माफ कर दो, और प्लीज हमारे साथ चलो।”

परी ने उन लोगों की एक न सुनी और नरेन्द्र के साथ रहने की ज़िद करने लगी। पुलिस ने सारे मामले को समझते हुए कहा कि, “मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। क्योंकि परी के मां-बाप ने जानबूझकर उसे छोड़ा था, इसलिए परी पर अब उनका कोई हक नहीं है।”

वो लोग वहां से चले गये और परी अपने पिता नरेंद्र के गले लग गयी।

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