भूतकाल से बाहर निकलें

भूतकाल से बाहर निकलें

हम जितनी बार अतीत के बारे में विचार करते हैं, हम उसे वर्तमान में बदल रहे हैं क्योंकि हम उन्हीं भावों को नए सिरे से जन्म दे रहे हैं।

हम सारे दिन के अपने कर्मों पर एक नजर डाले। बहुत-से कम इनमें से मशीनी कर्म हैं। मशीनी कर्म अर्थात् मशीन की तरह स्वचालित। मशीन की सेटिंग करके उसका बटन दबाया और उससे प्रोडक्ट तैयार होने लगे। आदमी अब दूसरे कार्य में लग सकता है, मशीन के संचालन में अब उसकी आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार, सुबह से शाम तक कई कार्य मशीनी बन चुके हैं। हम सुबह उठे, ब्रश पर पेस्ट लगाई, मुख में डाली और दाँतों पर फिरने लगी। इतनी सेटिंग करके शरीर रूपी मशीन का मालिक मन भी गायब हो जाता है। मशीनी प्रक्रिया से दाँत साफ हो जाते हैं, जूते पहने जाते हैं, स्नान किया जाता है, खाना खाया जाता है, कपड़े आदि पहने जाते हैं, टेबल पर कपड़ा मारा जाता है, बिखरी चीजें रैंक में रखी जाती हैं, कपड़े समेटे जाते हैं, प्रेस की जाती है आदि-आदि। ऐसे ही दिनचर्या के और भी बहुत सारे काम।

मन वहीं जाता है जहाँ उसे मिलता है आनंद, सवाल यह है कि मन कहाँ जाता है? अधिकतर भूतकाल में या फिर भविष्य में होने वाली किसी घटना के मानसिक दर्शन में। मन वहीं जाता है जहाँ उसे खूब आनंद मिलता है। इसका अर्थ है कि इन दैनिक कार्यों में उसे आनंद आता नहीं है इसलिए वह रोज की चर्या से बोर होकर किसी नई यात्रा, कहीं पार्टी, बाहर भोजन या अन्य प्रकार के संगठन में जाकर उस बोरियत को खत्म करना चाहता है।

जल्दबाजी में बिगड़ जाते हैं काम

दिनचर्या के कर्म को मशीनी रीति से करते- करते यदि कोई गलती हो जाती है तो होती ही रहती है, जैसे सब्जी छीलते, छिलके बरतन में और छिली सब्जी कूड़े में चली जाती है। पानी तेज गर्म हो जाता है। प्रेस लाल हो उठती है। पानी की टंकी से पानी बाहर आने लगता है, दूध गिर जाता है, चश्मा भूल जाता है। जब ऐसी गलती परेशानी पैदा करती है तो यह मन जो घूमने गया हुआ था, दौड़कर वापस आता है और झुंझलाता है, ऐसा क्यों हुआ? फिर उसे ठीक करने में जल्दबाजी करता है। और इस जल्दबाजी में एक या दूसरा काम बिगड़ जाता है।

अतीत पर पूर्णविराम लगा दें

उपरोक्त परिस्थिति के निर्माण के लिए दो बाते जिम्मेदार हैं, एक भूतकाल की स्मृति और दूसरी भविष्य की कल्पनाएँ। भविष्य की कल्पनाओं से भी अधिक भ्रमित करती हैं भूतकाल की स्मृतियाँ। जैसे, यदि कोई व्यक्ति सीढ़ी चढ़ रहा है तो एक-एक स्टेप ऊपर जाता है। परन्तु यदि वह फिसलकर नीचे की ओर आ जाए तो क्या हो? शरीर को पीडा होना सम्भव है। इसी प्रकार जीवन में भी मन यदि फिसलकर पीछे की ओर जाता है तो मानसिक पीड़ा होना स्वाभाविक है। इस स्थिति से बचने का सरल उपाय है कि हम भूतकाल को भूलें। हम जितनी बार अतीत के बारे में विचार करते हैं, हम उसे वर्तमान में  बदल रहे हैं क्योंकि हम उन्हीं भावों को नए सिरे से जन्म दे रहे हैं। अतीत बीत गया है, उस पर पूर्ण विराम लगा दें। इसे बार-बार अपने मन में ना दोहरायें। अगर हम अतीत को थामे रहते हैं, उसकी डोर को हाथों से जाने नहीं देते तो हमारे भीतर पीड़ा की एक लहर बनी रहती है। जीवन में आने वाली परिस्थितियाँ वही रहेंगी, पर हम पुरानी बातों को जितना पकड़ कर रखेंगे, हमारी पीड़ा बढ़ती जायेगी।

जो बचा है, उसे बचाया जाए

दुनिया में जिन्होंने भी सफलता पाई है, उनके रास्ते आसान नहीं थे। एक प्रसिद्ध लेखक का कहना है, जो हो गया, वह हो गया, लेकिन जो बचा है, उसे कैसे बचाया जाए, यहीं से इलाज शुरू होता है। अतः किसी भी परिस्थिति में अपनी बीती हुई जिन्दगी को, आने वाले भविष्य के पैरों की बेड़ियाँ न बनाएँ। अगर कोई करीबी रिश्ता दूर हो गया हो, तो जो रिश्ते बचे हैं, उनमें अपना साथ ढूँढें। उनके साथ रिश्ते बचे हैं, उनमें अपना साथ ढूँढ़ें। उनके साथ रिश्ते सुधारें और जीवन में आगे बढ़ें। यदि किसी तरह का आर्थिक नुकसान हो गया हो या नौकरी चली गई हो, तो भी निराश न होएँ बल्कि यह सोचें कि हमारे अन्दर क्या-क्या क्षमताएँ है और हम क्या-क्या कर सकते हैं, फिर योजनाबद्ध रीति से मनपसन्द कार्यों की शुरूआत करें। जो निराशा के क्षणों में भी आशा की सम्भावनाओं को देखता है और उन्हें साकार करने के प्रयास में जुट जाता है, वह आगे बढ़ता है। जब हम रुकावटों का सामना करते हैं तो अपने भीतर छिपे साहस, धैर्य और नई सम्भावनाओं से परिचित होते हैं।

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