हास्य व्यंग्य

खुशनुमा ज़िंदगी के लिए हंसना ज़रूरी है

कोई हास्य व्यंग्य याद आते ही मस्तिष्क की भावनाओं और स्मृतियों को नियमित करने वाली प्रणाली, जिसे अंग्रेजी में लिंबिक सिस्टम कहते हैं, सक्रिय हो जाती है। हम खुश हो जाते हैं। मुस्कुराकर, चुपके से हंसकर या ठहाका लगाकर हम अपनी खुशी जाहिर करते हैं।

खिलखिलाकर हंसना किसे पसंद नहीं है? हम हास्य व्यंग्य वाली कहानियां पढ़ते हैं। हास्य फिल्में और टीवी शो देखते हैं। रेडियो पर शरारती कॉल सुनते हैं, इसका मतलब है कि हम ऐसी हर चीज चाहते हैं, जो हमें हंसा दें। हंसते ही हम अपनी समस्याओं को कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन भूल जाते हैं और खुश हो जाते हैं। सायकोलॉजी के प्रोफेसर रॉड ए मार्टिन ने अपनी किताब ‘द सायकोलॉजी ऑफ ह्यूमरः ऐन इंटिग्रेटड एप्रोच’ में कहा है ‘‘हास्य व्यंग्य सुनते ही हम अपनी आंख या कान के जरिए सूचना (कोई कुछ कह रहा है या हम कुछ पढ़ रहे हैं) पाते हैं। इस सूचना का अर्थ समझ लेते हैं और उसे हास्यवृत्ति, आनंदमय जीवन और मज़ाकिया करार दे देते हैं।’’

मार्टिन की बात मानें, तो हास्य व्यंग्य का आनंद उठाते ही हमारा मस्तिष्क न केवल सक्रिय हो जाता है, बल्कि यह हमारी भावनाओं को भी प्रभावित करता है। कोई हास्य व्यंग्य याद आते ही मस्तिष्क की भावनाओं और स्मृतियों को नियमित करने वाली प्रणाली, जिसे अंग्रेजी में लिंबिक सिस्टम कहते हैं, सक्रिय हो जाती है। हम खुश हो जाते हैं। मुस्कुराकर, चुपके से हंसकर या ठहाका लगाकर हम अपनी खुशी जाहिर करते हैं। मार्टिन कहते हैं ‘‘किसी बात पर जब हम ठहाका लगाते हैं, तो हम भावनाओं के उच्च स्तर पर होते हैं। हमारे मस्तिष्क में निर्मित जैव-रसायन के कारण हम भावनाओं के उच्च शिखर पर होते हैं।’’

हास्य व्यंग्य हमें ‘उच्च भावनात्मक स्तर’ पर ले जाकर हमें मानसिक रूप से स्वस्थ करता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफॉर्मेशन यानी एनसीबीआई के एक अध्ययन में कहा गया है कि आराम और व्यायाम जैसी चिकित्सा के लिए बहुत समय और जुटे रहने की जरूरत होती है तथा जड़ी-बूटियों या मालिश जैसे महंगे उपचार होते हैं; जबकि हंसने की चिकित्सा आसानी से की जा सकती है। यह महंगी भी नहीं होती है। इसी तरह कई अन्य अध्ययन भी तनाव से मुक्त होने और व्यग्रता तथा नैराश्य को दूर करने में हास्य के महत्व को रेखांकित करते हैं। क्योंकि, हंसने से एंडॉर्फिन नामक हैप्पी हार्मोन शरीर में प्रवाहित होता है।

हास्य कलाकार एवं मनोवैज्ञानिक डॉ ब्रायन किंग ने अपनी किताब ‘द लाफिंग क्योरः इमोशनल एंड साइकोलॉजिकल हीलिंग’ में बताया है कि किस तरह हास्य व्यंग्य से व्यक्ति की प्रतिकार शक्ति बढ़ती है और रक्तचाप घटता है। यहां तक जीवनशैली से पैदा हुई मधुमेह जैसी बीमारी को नियंत्रित रखने में सहायता मिलती है। हास्य से केवल हमारा मानसिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी ठीक होता है। इसलिए हमें अवश्य हंसते रहना चाहिए; लेकिन उफ! हम ऐसा करते नहीं हैं। हास्य योग के विशेषज्ञ डॉ मदन कटारिया कहते हैं कि बच्चे दिन में 300 से 400 बार हंसते हैं, जबकि वयस्क दिन में मुश्किल से 15 बार। वे आगे कहते हैं ‘‘बच्चे इसलिए ऐसा कर पाते हैं, क्योंकि हंसने के लिए उनकी कोई शर्त नहीं होती। वे स्वभावतया ही हंसमुख होते हैं। लेकिन, जैसे ही हम बड़े होते हैं, हंसने के लिए कारण खोजने लगते हैं।

ऐसा करने के लिए शायद हमें अपने नज़रिये में बदलाव लाना होगा। हमारा दिन अच्छा गुजरेगा या बुरा- यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम स्थिति का कैसे सामना करते हैं। हास्य कलाकारों पर जरा गौर करें। वे हमारे जैसे ही हैं, लेकिन सहज, सामान्य और रोजमर्रे की घटनाओं और स्थितियों में वे हास्य खोज लेते हैं। बेंगलुरु के हास्य कलाकार संजय मनकताला कहते हैं ‘‘हास्य कलाकार दुनिया को अलग नज़रिये से देखने में कुशल होते हैं। वे हर चीज में हास्य खोजते हैं, इसलिए अन्य लोगों के मुकाबले हम दुनिया को अलग नज़रिये से देखते हैं। आप देखते हैं कि सड़कें फिर से खोदी जा रही हैं और ट्रैफिक जाम हो रहा है। लेकिन मैं इसे दूसरे रूप में देखता हूं और यह कहकर लोगों को हंसा देता हूं कि कैसे हम मंद गति से चलने वाले मरियल टट्टू बन गए हैं। हास्य कलाकार बनकर मैं तो बेहतर आदमी बन गया हूं।’’

जैसा भी हो सके, प्रयास करें। सच है कि हर घड़ी हास्य व्यंग्य खोजना इतना आसान नहीं होता। पहला कारण यह है कि सबके पास हंसने का कौशल नहीं होता। दूसरा कारण यह है कि संकट की घड़ियों में सब हास्य व्यंग्य नहीं खोज पाते। तो फिर हम क्या करें? डॉ मदन कटारिया इसका समाधान पेश करते हैं। वे कहते हैं, हमारा शरीर बनावटी हंसी और स्वाभाविक हंसी में अंतर नहीं कर पाता। वे आगे कहते हैं ‘‘इतने सालों में मैंने पाया है कि हंसी और ठहाके आवर्ती प्रक्रिया है। जितना हम हंसे (कुछ रोचक हो या न हो), उतना हममें हास्य व्यंग्य भाव जागृत होगा।’’

कई लोग कहते हैं कि हास्य मूल कारण है और ठहाका उसका परिणाम। यह भी जान लेना चाहिए कि इसका अन्य तरीके से भी असर होता है। केवल हंसने की आदत भर (व्यायाम के रूप में) डाल देने से हम अपने हास्य भाव में सुधार ला सकते हैं! वस्तुतः मनोविज्ञान के पितामह विलियम जेम्स ने एक बार कहा था ‘‘हम इसलिए नहीं हंसते; क्योंकि हम खुश हैं। हम खुश इसलिए हैं; क्योंकि हम हंसते हैं।’’ संक्षेप में कहें तो हास्य और ठहाके तनाव कम कर सकते हैं, शारीरिक स्वास्थ्य ठीक कर सकते हैं, और जीवन की समस्याओं का और अधिक सकारात्मक ढंग से सामना करने में सहायता कर सकते हैं।

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