अन्न की बर्बादी अपराध है

अन्न की बर्बादी अक्षम्य अपराध है

तकरीबन हर घर-परिवार में यह नियम होता है कि कोई भी अपनी थाली में जूठा भोजन नहीं छोड़ेगा। जूठन छोड़ने से अन्न की बेकदरी होती है और यह अन्न दाता परमात्मा का निरादर माना जाता है।

एक परिवार के छोटे बच्चे, कड़े अनुशासन के बावजूद भी थाली में खाना छोड़ देते थे अर्थात उन्हें खाना फेंकने की आदत-सी हो गई थी। बच्चों की मां कहती, बच्चों, जितना खा सको उतना ही थाली में लो यदि और चाहिए तो दोबारा ले लो परंतु जब बच्चे बड़े हो गए तब भी उनकी यह आदत नहीं गई। बार-बार समझाने के बावजूद भी बच्चे हर बार खाना छोड़ देते और उसे फेंकना पड़ता। उनकी मां एक ऐसी गृहिणी थी, जो कचरे के डिब्बे में डालने की बजाय अनाज के एक-एक दाने को भी इकट्ठा कर या तो चिड़ियों को या चींटियों को डाल दिया करती थी।

अजीब तरह का दृश्य

एक बार यह परिवार गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों को लेकर अपने रिश्तेदारों के यहां ट्रेन द्वारा जा रहा था। एक स्टेशन से इन्हें दूसरी ट्रेन बदलनी थी, जो तीन घंटे बाद मिलनी थी। स्टेशन पर उन्होंने अपने घर से पैक करके लाया हुआ खाना निकाला और बच्चों के संग खाने लगे। बच्चों ने आदत के अनुसार प्लेट में खाना अधिक ले लिया, फिर प्लेट में छोड़ भी दिया और मां से नज़रें बचाकर बचा हुआ खाना नजदीक रखे डस्टबिन में डाल दिया। तभी एक अजीब तरह का दृश्य देखने को मिला। प्लेटफॉर्म पर घूमने वाले कुछ बच्चे तुरंत उस कचरे के डिब्बे में फेंका हुआ खाना निकालकर खाने लगे और बाकी बच्चे भी शायद अधिक खाना खोजने के प्रयास में आपस में लड़ते हुए उसी डस्टबिन को उलट-पुलट करने लगे।

मां व बच्चों की आंखें हुई सजल

दोनों बच्चे, जिन्होंने डस्टबिन में खाना फेंका था, टकटकी लगा कर यह दृश्य देख रहे थे। प्लेटफार्म की तमाम गंदगी भी उस डस्टबिन में पड़ी हुई थी। बच्चों को यह समझते देर नहीं लगी कि हम जिस खाने को जूठा छोड़कर अन्न की बर्बादी करते आएं हैं, वह किसी अन्य के लिए कितना अमूल्य है! यह सोचकर बच्चों का मन भर आया। क्या भूख ऐसी होती है? उनकी मां भी यह सब देख रही थी और अपने बच्चों को भी यह नजारा देखते हुए देख रही थी और कह रही थी, बच्चों, आज तक तुमने कितना अन्न बर्बाद किया है? मां व बच्चों की आंखें सजल हो रही थी। बच्चों ने प्रतिज्ञा करते हुए मां से कहा, मां, आज के बाद हम कभी भी खाने की बर्बादी नहीं करेंगे। एक-एक कण को बचाएंगे क्योंकि आज के इस दृश्य ने हमें जीवनभर की सीख दे दी अर्थात भोजन की कद्र करने की शिक्षा दे दी।

उपरोक्त घटना से सीख लेते हुए हम भी यह संकल्प लें कि हममें से हर कोई स्वयं भी अपने बच्चों को भी, अन्न के एक-एक दाने का सम्मान करना सिखाएंगे। एक भूखा व्यक्ति ही बता सकता है कि अन्न का वास्तविक मूल्य क्या है? जिस खाने को हम बहुत ही बेदर्दी से फेंक देते हैं, उसके कण-कण के लिए अनेक मोहताज होते हैं, इसलिए अन्न की कद्र करना सीखें।

अन्न का सदुपयोग करें

वर्तमान समय देखने को मिलता है कि बड़े-बड़े शादी-समारोह, धार्मिक आयोजनों, मांगलिक कार्यों आदि में खाने-खिलाने की एक प्रकार की हौड़ चल पड़ी है। खाना-खिलाना तो ठीक है, परंतु अन्न का दुरुपयोग भी बहुत हो रहा है। थाली में इतना छोड़ते हैं या बाद में बचा हुआ इतना भोजन फेंकते हैं कि कई भूखे लोगों का पेट भर सकता है। इसलिए अन्न का दुरुपयोग छोड़, अन्न का मान करें। अन्न ही मनुष्य व पशु-पक्षियों के लिए प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है। इसकी बर्बादी अक्षम्य अपराध भी है।

जैसा अन्न वैसा मन

वर्तमान समय मनुष्य करुणा, दया, सहानुभूति, संवेदनशीलता जैसे गुणों से वंचित है। ये गुण मनुष्य के अन्दर शुद्ध अन्न द्वारा ही पनपते हैं। कहावत है, जैसा अन्न वैसा मन। यदि मनुष्य केवल पेट भरने में जुटा है या केवल स्वाद-वश तला हुआ, अधिक मसाले वाला भोजन खाता है तो इस भूलवश बीमारियों से ग्रस्त रहने लगता  है। वह भूल जाता है कि अन्न रोगी भी बना सकता है। इसलिए अन्न केवल सात्विक तरीके से ही ग्रहण करें।

अन्न खाएं ईमानदारी के धन से

मनुष्य को चाहिए कि वह ईमानदारी से कमाया धन ही अन्न के लिए खर्च करे अन्यथा बेईमानी के धन से आया एक कण भी शरीर के अंदर जाकर हलचल मचाएगा। हजम ही नहीं हो पाएगा। अपच व मरोड़ जैसी बीमारियां सदा बनी रहेंगी। डॉक्टरों को मोटी रकम देकर भी इलाज नहीं हो पाएगा। एक के बदले सौ गुणा चुकाना पड़ेगा।

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