ग्रामीण बच्चे, ग्रामीण शिक्षा

भारत के ग्रामीण बच्चों को शिक्षित करने के लिए एडु-लीडर्स का निर्माण

सोलवेदा के साथ एक खास बातचीत में रवि धानुका ने आई-सक्षम के सफर के बारे में बताया। हमने जाना कि वह कौन सा माध्यम है, जिससे वे शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।

“शिक्षा जीवन के लिए की जाने वाली तैयारी नहीं है; बल्कि शिक्षा ही संपूर्ण जीवन है।” – जॉन डेवी

शिक्षा सिर्फ वह नहीं है, जो हम स्कूलों में पढ़ते हैं। शिक्षा उससे भी कहीं आगे की चीज़ है। शिक्षा सबके लिए ज़रूरी है। शिक्षा ही हमें सही और गलत में फर्क समझने में मदद करता है और जीवन को सफलता के मार्ग पर ले जाता है। शिक्षा ना सिर्फ वर्तमान के लिए उपयोगी है, बल्कि आपके भविष्य का आधार भी बनता है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज़ादी के सात दशक बाद भी कई ग्रामीण इलाकों तक शिक्षा का महत्व नहीं पहुंच पाया है और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे आज भी इससे दूर हैं।

1.38 अरब से अधिक लोगों का देश है भारत। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में भारत की साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है। अब अगर इस प्रतिशत को शहर और ग्रामीण शिक्षा के हिसाब से बांटें तो शहरी क्षेत्र में साक्षरता 87.7 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 73.5 प्रतिशत है। इसके पीछे का मुख्य कारण देश में शिक्षकों की कमी, इन्फ्रॉस्ट्रक्चर और सही सलाह देने वालों की कमी है। शहर तक तो फिर भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा धीरे-धीरे पहुंच रही है, लेकिन ग्रामीण शिक्षा तक इसकी पहुंच उतनी नहीं है। लेकिन जिस तरह से हर अंधेरे में प्रकाश की एक किरण काफी होती है, वैसे ही कुछ लोगों ने ग्रामीण शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने का जिम्मा अपने कंधों पर उठा रखा है।

प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास पर शोध करने वाले रवि धानुका, श्रवण कुमार झा और आदित्य त्यागी ने 2015 में आई-सक्षम एजुकेशन एंड लर्निंग फाउंडेशन की स्थापना की। आई-सक्षम के सह-संस्थापक और बोर्ड के सदस्य धानुका बताते हैं कि, “संगठन को 2015 में सरकारी मान्यता मिली थी। जिसके बाद हमने 2016 के अंत आई-सक्षम को पूरी तरह से शुरू कर दिया।” आई-सक्षम का मुख्य उद्देश्य स्थानीय युवाओं को एडु-लीडर्स के रूप में तैयार करना है। जो ऐसी जगहों तक शिक्षा का प्रसार करे, जहां पर शिक्षा नहीं पहुंचती हो। आई-सक्षम वेबसाइट के मुताबिक, “एडु-लीडर वह व्यक्ति है, जो किसी समुदाय और दूसरे असक्षमों तक ज्ञान और शिक्षा को शक्तिशाली माध्यम से पहुंचा सके।”

इस संस्था ने अब तक लगभग 7000 बच्चों के जीवन में शिक्षा का दीपक प्रज्जवलित किया है। संस्था ने अब तक 200 एडु-लीडर्स की एक टीम तैयार की है, जो 100-120 गांवों तक ग्रामीण शिक्षा पहुंचाने की दिशा में कार्यरत है। धानुका कहते हैं कि, “हमारा विश्वास समुदाय की समस्याओं को सिर्फ सुनने में नहीं, बल्कि उन्हें हल करने में हैं।”

सोलवेदा के साथ एक खास बातचीत में रवि धानुका ने आई-सक्षम के सफर के बारे में बताया। वह कौन सा माध्यम है कि जिससे वे ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, आदि सवालों के जवाब आगे जानें –

आई सक्षम भारत के सुदूर स्थानों तक शिक्षा पहुंचाता है। इसके लिए आपको प्रेरणा कहां से मिली?

आई-सक्षम एक कदम नहीं, बल्कि यह एक विचार था। जिसे सरलता के साथ धरातल पर उतारना था। ताकि हम किसी भी समुदाय के लोगों की समस्याओं का समाधान उनके अनुसार ही कर पाएं। हमारा उद्देश्य उनके प्रभावशीलता और आत्मविश्वास को बढ़ाना था, जिससे वे आने वाले समय में अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकें। इसलिए, आई-सक्षम मॉडल को दो उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बनाया गया है – कैसे लोगों तक गुणवत्ता वाली ग्रामीण शिक्षा पहुंचाई जाए और कैसे उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए।

सरकार द्वारा आज कई ग्रामीण योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने और उनके विकास के लिए हैं। लेकिन जागरूकता ना होने के कारण उसका सही परिणाम धरातल पर नहीं दिख रहा है। यहीं से आई-सक्षम के लिए प्रेरणा मिली।

ग्रामीण शिक्षा के लिए कौन सी चुनौतियां हैं?

ग्रामीण शिक्षा में सबसे बड़ी चुनौती आपूर्ति है। हमने स्कूल में ग्रामीण शिक्षा और नामांकन के दौरान ऐसी कई स्कूलों को देखा है, जो आकार में छोटे हैं। उनमें पर्याप्त संसाधन की कमी है। कहीं-कहीं तो कक्षाओं के अनुसार शिक्षक की संख्याओं में कमी है। एक शिक्षक को लगभग 40-50 बच्चों को पढ़ाना है और समय भी सीमित है। शिक्षकों के ऊपर सिर्फ बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि उन पर प्रशासनिक और अन्य कार्यों की जिम्मेदारियां भी होती हैं। इसलिए बच्चों के साथ शिक्षा और सीखने का संतुलन नहीं बन पाता है, जो बच्चों के भविष्य को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। कई जगहों पर हमने ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को बिल्कुल निरस देखा है। शिक्षा व्यवस्था को उत्साही बनाना भी हमारे लिए एक चुनौती ही है।

ग्रामीण बच्चों पर कई सामाजिक जिम्मेदारियां व बाधाएं होती हैं, इसके बावजूद उन्हें शिक्षा जारी रखने के लिए कैसे सक्षम बनाते हैं?

ग्रामीण शिक्षा में सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्कूलों में उपस्थिति का अनुपात नामांकन की तुलना में कम होता है। स्कूलों में कई मौसमों के दौरान ड्रॉपआउट भी देखा गया है। खानाबदोश माता-पिता के पलायन के कारण भी बच्चे स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं। किशोरी लड़कियां घर-परिवार और छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारियां उठाने के चलते स्कूल नहीं आ पाती हैं। ऐसी स्थिति में अहम कदम यह होता है कि बच्चों का विश्वास कैसे जीता जाए। बच्चे कम्फर्ट जोन में आए और खुद को सुरक्षित हाथों में महसूस करें। हम सिखाने के मनोरंजक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें बच्चे मजे के साथ शिक्षक से मित्रता भाव से सीखते हैं।

हमें बताएं कि आप एक स्थानीय युवा को एडु-लीडर में कैसे बदलते हैं ?

हम अपनी संस्था द्वारा दो साल का फेलोशिप प्रोग्राम संचालित करते हैं, जिसमें उन्हें 3 मुख्य मानकों पर खरा उतरना सिखाया जाता है। पहला मानक है – निर्णय लेने की क्षमता। युवा अपने स्वविवेक और आत्म-जागरूकता के आधार पर अपने आस-पास के लोगों में विश्वास विकसित करें और लोगों को उनके हिसाब से संतुष्ट और खुश रखें। यह मानक युवा, समाज और छात्रों के जीवन में परिवर्तन लाने में सक्षम होता है।

दूसरा मानक है – शैक्षिक मार्ग। जहां पर हमारे युवा प्रशिक्षु विभिन्न शिक्षण संसाधनों के जरिए प्रारंभिक ग्रेड हिंदी, इंग्लिश, गणित विषयों में शिक्षण कौशल का विकास करते हैं।

तीसरा मानक सीखी गई चीज़ों को धरातल पर लाना है। इसके तहत अनुसंधान परियोजनाएं बनाई जाती हैं, जिसके बाद उन योजनाओं को समुदाय के बीच में जाकर उन पर अमल कराना होता है। इससे प्रशिक्षु में नेतृत्व की क्षमता का विकास होता है। इन मानकों के आधार पर फेलोशिप कार्यक्रम को पूरा करने वाले युवा को एडु-लीडर के रूप में जाना जाता है।

विभिन्न क्षमता वाले बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो सकता है। इसके समाधान के लिए आप क्या कर सकते हैं?

हमारी संस्था हाई-टेक हैंड-होल्डिंग सपोर्ट प्रदान करती हैं यानी कि हाथों में हाथ लेकर सबको आगे बढ़ाना। हमारे पास 200 घंटे से ज्यादा का प्रशिक्षण हैं, जो एक वर्ष का होता है। इस कार्यक्रम में हम छोटे-बड़े शिक्षण संस्था, कक्षा का दौरा, स्कूल के शिक्षकों से मिलना, एडु-लीडर के माता-पिता, बच्चों के माता-पिता के साथ संपर्क बनाते हैं। हम जो भी करते हैं उसके इर्द-गिर्द एक इको-सिस्टम का विकास करते हैं, जो हमारे एडु-लीडर की की स्किल में सुधार करता है। साथ ही, बच्चों के साथ अभ्यास करना, उनके कॉन्सेप्ट को स्पष्ट करना और कक्षा को उत्साही और ऊर्जावान बनाने पर जोर दिया जाता है।

महामारी में वर्चुअल क्लासेस न्यू नॉर्मल हो गया था। आपकी संस्था ने इस बदलाव के साथ ऑनलाइन क्लासेस कितनी प्रभावी है?

यह बदलाव बहुत चुनौतीपूर्ण है, खासकर उन इलाकों में जो आधुनिक सुविधाओं से दूर है। 50 प्रतिशत से ज्यादा परिवारों के पास आज भी स्मार्टफोन नहीं है। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन क्लासेस तक पहुंचना बहुत कठिन या नामुमकिन हो जाता है। लेकिन हमने एक संगठन के रूप में ऑनलाइन कंटेंट पर फोकस नहीं किया। ऑनलाइन क्लासेस में सिर्फ हम बच्चे को पढ़ाते हैं, लेकिन उनसे जुड़ाव स्थापित करना कठिन होता है। लेकिन हमने अलग-अलग तरीकों से बच्चों से जुड़ने की कोशिश की है। उदाहरण के तौर पर हम पांच-सात बच्चों को बुलाते थे। उन्हें स्मार्टफोन आधारित शिक्षा देते थे, कहानियां सुनाते थे, कहानियों से जुड़े सवाल पूछते थे, बच्चों की छोटी एक्टिविटी को प्रोत्साहित करते थे। हमने न सिर्फ बच्चों को बल्कि उनके माता-पिता को भी आभाव में प्रभाव का तर्क समझाया। उन्हें यह बताया कि वे अपने बच्चों को अपने घर की वस्तुओं से और कहानी के जरिए ग्रामीण बच्चे को कैसे ज्ञान और ग्रामीण शिक्षा दे सकते हैं। इस दौरान हमने किताबें बांटी, ताकि बच्चे माता-पिता के मदद से घर पर ही सीख सकें। कोविड के दौरान भी हमने तकनीक पर निर्भर रहने की बजाय एक इको-सिस्टम तैयार किया।

ग्रामीण भारत में इस तरह की पहल करना आसान काम नहीं है। इसे निरंतर जारी रखने के लिए आप कैसे प्रेरित रहते है?

धानुका कहते हैं कि ये प्रेरणा किसी एक से नहीं मिलती है, बल्कि हमारे सैकड़ों एडु-लीडर्स का दृढ़ संकल्प हमें सफल बनाता है। हमारे एडु-लीडर्स प्रत्येक सप्ताह बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक लंबी दूरी तय करते हैं। उन्हें ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में जाना होता है, जहां शिक्षा पहुंचना सपने जैसा है। वे अपने रोजमर्रा कामों के साथ ग्रामीण शिक्षा की जिम्मेदारी निभाते हैं। उनकी प्रतिबद्धता ही है कि आज हम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। इसका श्रेय सिर्फ मुझे या मेरे टीम के किसी सदस्य को नहीं बल्कि एडु-लीडर्स को जाता है।

  • रवि धानुका एक डेवलपमेंट प्रोफेशनल और एक उद्यमी हैं, जिनके पास शिक्षा क्षेत्र, गरीबी उन्मूलन योजना, आजीविका में सरकारी, गैर सरकारी संगठनों और बहुपक्षीय संस्थानों में एक दशक से अधिक का अनुभव है। उन्होंने भारत में शिक्षा से वंचित क्षेत्रों में शैक्षिक और अन्य विकासात्मक काम करने के लिए आई-सक्षम की सह-स्थापना की है।
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